हिमाच्छादित हिमालय के हिमनद से आरम्भ होकर गंगा नदी, पर्वतों से नीचे उतरती है, और हरिद्वार से मैदानी स्थानों पर पहुँचती है| आगे बढ़ते हुए प्राचीन बनारस व प्रयाग से प्रवाहित होती हुई, बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। बंगाल में हुगली नदी के मुहाने पर जहाँ गंगा सहस्रों जलधाराओं में फूट पड़ती है तथा वहाँ पहुँचकर समुद्र में बह जाती है, उस स्थान को सागर द्वीप कहा जाता है|
गंगासागर मेला पश्चिम बंगाल में आयोजित होने वाले सबसे बड़े मेलों में से एक है। इस मेले का आयोजन कोलकाता के निकट हुगली नदी के तट पर ठीक उस स्थान पर किया जाता है, जहाँ पर गंगा बंगाल की खाड़ी में मिलती है। इस द्वीप में ही रॉयल बंगाल टाइगर का प्राकृतिक आवास है। यहां मैन्ग्रोव की दलदल, जलमार्ग तथा छोटी छोटी नदियां,नहरें है| इस द्वीप पर ही प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है। प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर लाखों हिन्दू श्रद्धालुओं का तांता लगता है, जो गंगा नदी के सागर से संगम पर नदी में स्नान करने के इच्छुक होते हैं। इसीलिए इस मेले का नाम गंगासागर मेला है। यह मेला विक्रमी संवत के अनुसार प्रतिवर्ष पौष मास के अन्तिम दिन लगता है। यह मकर संक्रान्ति का दिन होता है|
यहाँ एक मंदिर भी है जो कपिल मुनि के प्राचीन आश्रम स्थल पर बना है।यहाँ लोग कपिल मुनि के मंदिर में पूजा अर्चना भी करते हैं। पुराणों के अनुसार कपिल मुनि के श्राप के कारण ही राजा सगर के ६० हज़ार पुत्रों की इसी स्थान पर तत्काल मृत्यु हो गई थी। उनके मोक्ष के लिए राजा सगर के वंश के राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे और गंगा यहीं सागर से मिली थीं। कहा जाता है कि एक बार गंगा सागर में डुबकी लगाने पर 10 अश्वमेध यज्ञ और एक हज़ार गाय दान करने के समान फल मिलता है। जहां गंगासागर का मेला लगता है, वहां से कुछ दूरी पर उत्तर वामनखल स्थान में एक प्राचीन मंदिर है। उसके पास चंदनपीड़िवन में एक जीर्ण मंदिर है और बुड़बुड़ीर तट पर विशालाक्षी का मंदिर है|
गंगासागर में स्नान का महत्व
मकर संक्रांति के दिन किसी भी पवित्र नदी एवं तालाब में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। विशेष तौर पर इस दिन गंगा स्नान का खास महत्व है। इसलिए हर वर्ष गंगा तटों पर खासतौर पर हरिद्वार एवं प्रयाग में मकर संक्रांति के दिन मेला लगता है। लेकिन इससे कोलकाता स्थित गंगासागर का महत्व कमतर नहीं हुआ है। गंगा के सागर में मिलने के स्थान पर स्नान करना अत्यन्त शुभ व पवित्र माना जाता है। स्नान यदि विशेष रूप से मकर संक्रान्ति के दिन किया जाए, तो उसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है।
मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस अवसर पर यह स्थान बड़े मेले का केन्द्र बन जाता है। यहाँ पर यात्री व सन्न्यासी पूरे देश से आते हैं। गंगा में स्नान कर ये लोग सूर्य देव को अर्ध्य देते हैं। मान्यतानुसार यह स्नान उन्हें पुण्य दान करता है। अच्छी फ़सल प्रदान करने के लिए धन्यवाद स्वरूप सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है। इस त्यौहार पर तिल व तेल का विशेष महत्व है, इसलिए लोग इस दिन चावल का ही विशेष भोजन करते हैं| शास्त्रों में कहा गया है कि मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में स्नान और दान का जो महत्व है वह कहीं अन्यत्र नहीं है। इसलिए कहा जाता है “सारे तीरथ बार-बार गंगा सागर एक बार”। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी तीर्थों में कई बार यात्रा का जो पुण्य होता है वह मात्र एक बार गंगा सागर में स्नान और दान करने से प्राप्त हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार गंगा सागर में एक डुबकी लगाने से 10 अश्वमेघ यज्ञ एवं एक हजार गाय दान करने का पुण्य मिलता है|
गंगासागर के संगम पर श्रद्धालु ‘समुद्र देवता’ को नारियल और यज्ञोपवीत भेंट करते हैं। पूजन एवं पिण्डदान के लिए बहुत से पंडागण गाय–बछिया के साथ खड़े रहते हैं, जो उनकी इच्छित पूजा करा देते हैं। समुद्र में पितरों को जल अवश्य अर्पित करना चाहिए तथा स्नान के बाद कपिल मुनि का दर्शन कपिल मन्दिर में करना चाहिए। गंगासागर में स्नान–दान का महत्व शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है| स्थानीय मान्यतानुसार जो युवतियाँ यहाँ पर स्नान करती हैं, उन्हें अपनी इच्छानुसार वर तथा युवकों को स्वेच्छित वधु प्राप्त होती है।अनुष्ठान आदि के पश्चात् सभी लोग कपिल मुनि के आश्रम की ओर प्रस्थान करते हैं तथा श्रद्धा से उनकी मूर्ति की पूजा करते हैं। मन्दिर में गंगा देवी, कपिल मुनि तथा भागीरथी की मूर्तियाँ स्थापित हैं|