अंतर्बोध पेड़

*निखिता पाण्डेय*

खड़ा हूं अपने सिद्धान्तों की जड़ों पर,
हर रोज़ संघर्ष की शाखा फैल रही है मेरी,
हुआ हूं शिकार हिंसा का,
न किया किसी पर वार कभी।
खुद के जीवन से प्रेम बहुत
पर को मुर्दा न किया कभी,
अधिकार बोध,कर्तव्य बोध,
मानवता और संस्कार बोध,
चर और चराचर चक्रबोध
हां भाव-बुद्धि का युगल बोध।
मानव-मानवता अंतर्बोध,
स्वीकार-नकार का अंतर्बोध,
सत्य और असत्य का अंतर्बोध,
मुक और हुंकार का अंतर्बोध,
सब देख समझ कर खड़ा हूं मैं।
अपने विवेक पर अड़ा हूं मैं
तू काटा या आग से जला मुझे,
जितना हो ज़ोर,आ मिटा मुझे।
मैं विचार हूं,मेरी शक्ति प्रबल,
न अधीर,धीर हूं और प्रखर।
मेरी शाखा पर बैठ मुझे,
ज्यों बांट रहा थोड़ा-थोड़ा तू,
मुझे या अपनी मानवता को
काट रहा थोड़ा-थोड़ा तू….।

(चित्र – नमिता सिंह)

 

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