हिंदी बाल साहित्य के विकास में ‘शिवपूजन सहाय’ की भूमिका   

इबरार

सं 1893 में बिहार के शाहाबाद जिले में जन्मे ‘ शिवपूजन सहाय ‘ हिंदी गद्य साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं । ‘ पद्मभूषण ‘ एवं ‘ वयोवृद्ध साहित्यिक सम्मान ‘ से सम्मानित ‘ शिवपूजन सहाय ‘ हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार , कहानीकार , संपादक और पत्रकार थें । जिनकी लेखनी राष्ट्रवादी एवं सुधारवादी विचारधारा से प्रभावित थी । उन्होंने ‘देहाती दुनिया’ , ‘विभूति’ ,’मेरा जीवन’, ‘स्मृति शेष’, ‘जीवन दर्पण’, ‘मैं धोबी हूँ’, ‘राष्ट्र भाषा और उर्दू’, ‘हिंदी गद्य की विकास यात्रा’, ‘कहानी का प्लॉट’,’मुंडमाल’, ‘ग्राम सुधार’ आदि कई महत्वपूर्ण साहित्य रचा। इनके विभिन्न रचनाओं को, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद (पटना) ने चार खंडों में ‘शिवपूजन रचनावली’ नाम से प्रकाशित किया है। वहीं इन्होंने मारवाड़ी सुधार ,मतवाला, माधुरी, गंगा, जागरण, बालक, हिमालया आदि पत्रिकाओं का संपादन भी किया है । शिवपूजन सहाय को पत्रकारिता का स्तम्भ कहा जाता है, जो साहित्यिक सरोकारों को पत्रकारिता से जोड़ने के लिए जाने जाते हैं। परंतु इन सबके साथ साथ वे एक बाल साहित्यकार भी थे, जिनकी बाल सुलभ रचनाओं की बाल साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। परंतु जिस तरह हिंदी साहित्य के इतिहास में बाल साहित्य उपेक्षित है उसी प्रकार शिवपूजन सहाय द्वारा बड़ो के लिये लिखे गए साहित्य के तले उनका बाल साहित्यकार रूप कही दब सा गया है। मैनेजर पांडेय ने कहा है – “हिंदी में बाल साहित्य की स्थिति बहुत विचित्र है। बाल साहित्य और बाल साहित्य के लेखकों को मुख्य धारा के लेखक गंभीरता से नही लेते।… शिवपूजन सहाय बाल साहित्य के लेखक भी थे और बालको से संबंधित साहित्य के संपादक भी थे । “(१)

शिवपूजन सहाय ने बाल साहित्य का सृजन ‘बालक’ पत्रिका के संपादन एवं ‘बालोद्यान’ पुस्तक के रूप में किया। उन्होंने बालक का संपादन कर हिंदी बाल साहित्य के प्रकाशन और लेखन को नई दिशा दी। वहीं उनकी बालोपयोगी साहित्य ‘बालोद्यान’ नाम से ‘शिवपूजन रचनावली’ खण्ड २ में संकलित है, जिसमें ‘बालक प्रह्लाद का सिद्धांत’,’ प्राचीन भारत की हवाई लड़ाई’,’ महाभारत कैसे लिखा गया?’, ‘उपनिषद की एक कहानी’, ‘धनुष-भंग’ आदि ऐसे लेख हैं जिसके माध्यम से शिवपूजन सहाय ने बच्चो को अपने क्लासिक ग्रंथो का एक उत्सुकता युक्त और आदर भरा परिचय दिया है एवं अपने बाल रचनाओं द्वारा बच्चो को भारतीय संस्कृति एवं परंपरा में ढालने का प्रयास किया है। यह सत्य है कि उनकी लेखनी धर्म से काफी प्रभावित रही है। उन्होंने रामायण, महाभारत अर्थात पौराणिक चरित्रों जैसे भीष्म, भीम, अर्जुन, अभिमन्यु, लव, कुश, सीता, राधा आदि को आधार बनाकर रचनाएँ की है एवं बाल रचनाओं के जरिये बच्चो के भीतर ऐसे संस्कारों को डालने की प्रबल इच्छाओं को उन्होंने पर्दे में भी नहीं रखा है। उनमें नैतिक आग्रह हठ की सीमा तक दिखाई देती है इसलिए बाल साहित्य रचते समय भी वह इससे अछूता नही रह सके। धार्मिकता से अनुप्राणित संस्कारों वाले बच्चों का समाज बनाना भावी भारत के लिये कितना सही है यह विचार का विषय है। परंतु ” बालक प्रहलाद’ का सिद्धांत के अंत मे वे लिखते हैं – ” हे देव ! मुनिजन प्रायः अपनी ही मुक्ति की इच्छा से एकांत में रहकर मौन व्रत धारण कर लेते हैं । वे दूसरे के हित मे तत्पर नहीं होते। किन्तु मुझे इन बेचारे गरीबों को छोड़ कर अकेले ही मुक्त होने की इच्छा नहीं है “(२) अर्थात उनकी लेखनी का झुकाव धर्म की और अवश्य था परंतु उनमे पाखंड नहीं था एवं धर्म के साथ साथ सामाजिक आग्रह भी उनमे मौजूद थी। उनकी यह रचनाएँ बच्चों में चारित्रिक गुण, अनुशासन एवं मनुष्यता के बीज बोने का कार्य करते हैं ‘बालोद्यान’ के अन्य लेखों जैसे विधा की महिमा, विनय, नेक-वर्ताव, स्वयं सेवक, आदर्श बालक के लक्षण आदि में उनका नैतिक आग्रह एवं आदर्शवादी सोच साफ दिखाई देता है। उनका लेख ‘भाई-बहन’ जहाँ बच्चों में भारतीय संस्कार बोध उत्पन्न करता है तो वहीं ‘नख और दांत’ एवं’ दंड-बैठक’ जैसे लेख बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा देते हैं। अतः इसमे कोई संदेह नहीं कि हिंदी बाल सहित्य के विकास में ‘ शिवपूजन सहाय ‘ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है।

१) पांडेय मैनेजर, बालसाहित्य और आलोचना ,सं० – अनुज कुमार, वाणी प्रकाशन , संस्करण -२०१६, पृ० सं० – ३६ ।२) सहाय शिवपूजन, पत्रकारिता के युग निर्माता – शिवपूजन सहाय, कर्मेंदु शिशिर, प्रभात प्रकाशन ,संस्करण २०१०,पृ०सं०- ८७ ।

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