नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में मंगलवार को मुस्लिम समुदाय में प्रचलित एक बार में ‘तीन तलाक’ कह कर तलाक देने की 1400 साल पुरानी प्रथा खत्म करते हुये इसे पवित्र कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ और इससे इस्लामिक शरिया कानून का उल्लंघन करने सहित अनेक आधारों पर निरस्त कर दिया।
पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने , 3:2 के बहुमत से जिसमें प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर अल्पमत में थे, ने एक पंक्ति के आदेश में कहा, ‘‘3:2 के बहुमत में रिकार्ड की गयी अलग अलग राय के मद्देनजर तलाक-ए-बिद्दत् (तीन तलाक) की प्रथा निरस्त की जाती है।’’ संविधान पीठ के 395 पेज के फैसले मे तीन अलग अलग निर्णय आये। इनमें से बहुमत के लिये लिखने वाले न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति एस ए नजीर के अल्पमत के इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं थे कि ‘तीन तलाक’ धार्मिक प्रथा का हिस्सा है और सरकार को इसमें दखल देते हुये एक कानून बनाना चाहिए।
न्यायमूर्ति जोसेफ, न्यायमूर्ति नरीमन और न्यायमूर्ति उदय यू ललित ने इस मुद्दे पर प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति नजीर से स्पष्ट रूप से असहमति व्यक्त की कि क्या तीन तलाक इस्लाम का मूलभूत आधार है।
सरकार, राजनीतिक दलों, कार्यकर्ताओं और याचिकाकर्ताओं ने तत्काल ही इस निर्णय का स्वागत किया। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे ‘ऐतिहासिक’ बताते हुये कहा कि इसने मुस्लिम महिलाओं को बराबर का हक प्रदान किया है।
विधिवेत्ता सोली सोराबजी ने कहा, ‘‘यह प्रगतिशील फैसला है जिसने महिलाओं के अधिकारों को संरक्षण दिया है और अब कोई भी मुस्लिम व्यक्ति इस तरीके से अपनी पत्नी को तलाक नहीं दे सकेगा।’’ तीन तलाक की प्रथा निरस्त होने के बाद अब, सुन्नी मुस्लिम, जिनमे तीन तलाक की प्रथा प्रचलित थी, इस तरीके का इस्तेमाल नहीं कर सकेगे क्योंकि शुरू में ही यह गैरकानूनी होगा।
शीर्ष अदालत द्वारा तलाक ए बिद्दत या एकबारगी तीन तलाक कह कर तलाक देने की प्रथा निरस्त किये जाने के बाद अब इनके पास तलाक लेने के दो ही तरीके-तलाक हसन और तलाक अहसान ही उपलब्ध हैं।
तीन तलाक मामला : घटनाओं का कालक्रम
उच्चतम न्यायालय ने बहुमत के फैसले में कहा कि तीन तलाक अमान्य, गैरकानूनी और असंवैधानिक है। तीन तलाक की घटनाओं के कालक्रम इस प्रकार है : 16 अक्तूबर 2015 : उच्चतम न्यायालय की पीठ ने हिंदू उत्तराधिकार से संबधित एक मामले की सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश से उचित पीठ का गठन करने के लिए कहा ताकि यह पता लगाया जा सकें कि क्या तलाक के मामलों में मुस्लिम महिलाएं लैंगिक भेदभाव का सामना करती हैं।
पांच फरवरी 2016 : उच्चतम न्यायालय ने तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत की मदद करने के लिए कहा।
28 मार्च : उच्चतम न्यायालय ने ‘महिलाओं और कानून : शादी, तलाक, संरक्षण, वारिस और उत्तराधिकार से संबंधित कानूनों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ पारिवारिक कानूनों के आकलन’ पर उच्च स्तरीय पैनल की रिपोर्ट दायर करने के लिए केंद्र से कहा।
उच्चतम न्यायालय ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) समेत विभिन्न संगठनों को पक्षकार बनाया।
29 जून : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम समाज में ‘तीन तलाक’ को ‘‘संवैधानिक रूपरेखा की कसौटी’’ पर परखा जाएगा।
सात अक्तूबर : भारत के संवैधानिक इतिहास में पहली बार केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में इन प्रथाओं का विरोध किया और लैंगिक समानता तथा धर्मनिरपेक्षता जैसे आधार पर इस पर विचार करने का अनुरोध किया।
14 फरवरी 2017 : उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न याचिकाओं पर मुख्य मामले के साथ सुनवाई करने की अनुमति दी।
16 फरवरी : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ‘तीन तलाक’, ‘निकाह हलाला’ और बहुविवाह को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी और फैसला देगी।
27 मार्च : एआईएमपीएलबी ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि ये मुद्दे न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार के बाहर है इसलिए ये याचिकाएं विचार योग्य नहीं हैं।
30 मार्च : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ये मुद्दे ‘‘बहुत महत्वपूर्ण’’ हैं और इनमें ‘‘भावनाएं’’ जुड़ी हुई है और संविधान पीठ 11 मई से इन पर सुनवाई शुरू करेगी।
11 मई : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह इस मुद्दे पर विचार करेगी कि क्या मुस्लिमों में तीन तलाक की प्रथा उनके धर्म का मूल सिद्धान्त है।
12 मई : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि तीन तलाक की प्रथा मुस्लिमों में शादी तोड़ने का सबसे खराब और गैर जरुरी तरीका है।
15 मई : केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि अगर तीन तलाक खत्म हो जाता है तो वह मुस्लिम समुदाय में शादी और तलाक के लिए नया कानून लेकर आएगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत यह देखेगा कि क्या तीन तलाक धर्म का मुख्य हिस्सा है।
16 मई : एआईएमपीएलबी ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि आस्था के मामले संवैधानिक नैतिकता के आधार पर नहीं परखे जा सकते। उसने कहा कि तीन तलाक पिछले 1,400 वर्षों से आस्था का मामला है।
तीन तलाक के मुद्दे को इस आस्था के बराबर बताया कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था।
17 मई : उच्चतम न्यायालय ने एआईएमपीएलबी से पूछा कि क्या एक महिला को ‘निकाहनामा’ के समय तीन तलाक को ‘ना’ कहने का विकल्प दिया जा सकता है।
केंद्र ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि तीन तलाक ना तो इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है और ना ही यह ‘‘अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक’’ का मामला है बल्कि यह मुस्लिम पुरुषों और वंचित महिलाओं के बीच ‘‘अंतर सामुदायिक संघर्ष’’ का मामला है।
18 मई : उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक पर फैसला सुरक्षित रखा।
22 मई : एआईएमपीएलबी ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर करते हुए कहा कि वह दूल्हों को यह बताने के लिए ‘‘काज़ियों’’ को एक परामर्श जारी करेगा कि वे अपनी शादी तोड़ने के लिए तीन तलाक का रास्ता ना अपनाए।
एआईएलपीएलबी ने उच्चतम न्यायालय में विवाहित दंपतियों के लिए दिशा निर्देश रखे। इनमें तीन तलाक देने वाले मुस्लिमों का ‘‘सामाजिक बहिष्कार’’ करना और वैवाहिक विवादों को हल करने के लिए एक मध्यस्थ नियुक्त करना भी शामिल था।
22 अगस्त : उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ दो के मुकाबले तीन के बहुमत से फैसला दिया कि तीन तलाक के जरिए तलाक देना अमान्य, गैरकानूनी और असंवैधानिक है और यह कुरान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है
महिलाओं ने कहा – जीने का हक मिला
दिल्ली से करीब 350 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के एक गांव में रहने वाली 26 साल की रजिया के लिए फौरी तीन तलाक पर उच्चतम न्यायालय का फैसला उस इंसाफ की तरफ एक अहम कदम है, जिसके लिए वह सालों से लड़ाई लड़ रही है । उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में फौरी तीन तलाक पर पाबंदी का फरमान सुनाया ।
रजिया ने पूछा, ‘‘तो क्या इसका मतलब यह हुआ कि अब आखिकार मेरे मामले पर सुनवाई होगी ? क्या इसका मतलब यह है कि जिन पुलिसकर्मियों ने मुझे थाने से भगाया था, उन पर कार्रवाई होगी ? क्या मुझे अब न्याय मिलेगा ?’’ करीब दो साल पहले रजिया की जिंदगी में उस वक्त भूचाल आ गया था, जब शादी के आठ साल बाद उसका पति उसे फौरी तलाक देकर कथित तौर पर सऊदी अरब चला गया । दो बेटियों, जिसमें एक दिव्यांग थी, के जन्म के मुद्दे पर रजिया के पति ने उसे तलाक दिया था।
रजिया ने कहा, ‘‘जब मैं स्थानीय पुलिस थाने गई थी तो मुझे भगा दिया गया । पुलिस ने कहा कि मेरा मामला मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा है । मुझे अदालत जाने को कहा गया ।’’ सलाह के मुताबिक रजिया अदालत गई, लेकिन यह धीमी प्रक्रिया थी । रजिया ने शाहजहांपुर से फोन पर बातचीत में पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘स्थानीय अदालत में कोई प्रगति नहीं हुई है ।’
उच्चतम न्यायालय में तीन तलाक के खिलाफ याचिकाकर्ताओं में शामिल ‘बेबाक कलेक्टिव’ की हसीना खान ने कहा कि अब चुनौती यह है कि इस बड़े फैसले पर जागरूकता फैलाने की जरूरत है कि रजिया जैसी हजारों महिलाओं के मामलों को कैसे मजबूत किया जा सके ।
खान ने कहा, ‘‘पहली बार संविधान के चश्मे से इस मुद्दे को देखा गया है । इसे जमीनी स्तर पर उतारने में वक्त लगेगा । लेकिन न्यायिक प्रक्रिया के अलावा, समाज में गहरे पैठे पूर्वाग्रहों पर इसका गहरा असर पड़ेगा ।’’ लखनऊ की रहने वाली 24 साल की रुबीना भी तीन तलाक की पीड़ित रही हैं । उनका कहना है कि यह फैसला उनके लिए राहत लेकर आया है जिन्हें फौरी तलाक की धमकी दी जाती है और परेशान किया जाता है ।
तीन तलाक का मुद्दा पिछले साल फरवरी में उस वक्त सामने आया था जब फौरी तीन तलाक का शिकार हुई शायरा बानो ने उच्चतम न्यायालय में अर्जी दायर कर फौरी तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला पर पाबंदी की गुहार लगाई । निकाह हलाला वह प्रथा है जिसके तहत यदि कोई तलाकशुदा महिला अपने पूर्व पति से फिर शादी करना चाहती है तो उसे पहले किसी अन्य पुरूष से शादी करनी होगी । शायरा की अर्जी के बाद देश की हजारों मुस्लिम महिलाओं ने दबाव समूहों का गठन किया और हस्ताक्षर अभियान चलाकर तीन तलाक खत्म करने की मांग की । इस बीच, ओड़िशा में रहने वाली तीन तलाक की पीड़िताओं ने भी न्यायालय के फैसले की जमकर तारीफ की है ।
21 साल की नजमा बेगम ने कहा, ‘‘इस फैसले ने मुझे लड़ने की हिम्मत दी है । आठ महीने पहले जब मेरे पति ने सऊदी अरब से फोन पर मुझे तीन बार तलाक कहा तो मेरी जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई । चार साल के वैवाहिक जीवन के बाद एक झटके में मैं उनसे अलग हो गई । मेरे माता-पिता ने मौलानाओं के पास इस मामले को उठाया, लेकिन मुझे बताया गया कि मेरी शादी खत्म हो चुकी है ।’’ लाली बीवी और रिजवाना बेगम ने भी न्यायालय के फैसले की तारीफ की ।
राजनीतिक दलों ने तीन तलाक पर न्यायालय के फैसले का स्वागत किया
भाजपा और कांग्रेस ने तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक ठहराने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह लैंगिक न्याय और समानता की दिशा में बढ़ाया गया एक कदम है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक आधुनिक समाज की तरक्की में अवरोधक माने जाने वाले इस मुद्दे पर आए न्यायालय के फैसले का स्वागत किया और केंद्र सरकार से इसपर जल्दी ही एक कानून लेकर आने को कहा।
चौहान ने ट्विटर पर कहा, ‘‘हम तीन तलाक के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं और केंद्र सरकार से अपील करते हैं कि वह जल्दी ही एक कानून लेकर आए। तीन तलाक जैसी परंपराएं हमारी बहन-बेटियों के लिए मानसिक और सामाजिक प्रताड़ना जैसी हैं और आधुनिक भारतीय समाज की प्रगति में रोड़ा हैं।’’ कांग्रेस के नेता सलमान खुर्शीद ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि ‘‘यह एक अच्छा फैसला है।’’ हालांकि उन्होंने यह कहा कि जितना अहम फैसला है, उतनी ही अहम उसके पीछे की तर्कशीलता भी है। किसी को भी किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले इस तर्कशीलता को देखना चाहिए।
केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने भी इसे ‘अच्छा फैसला’ बताते हुए कहा , ‘‘हम इसका स्वागत करते हैं। यह लैंगिक न्याय और लैंगिक समानता की दिशा में आगे की ओर बढ़ते हुए उठाया गया कदम है। यह महिलाओं के लिए अच्छा है।’’ जब उनसे पूछा गया कि क्या सरकार जल्दी ही इसपर एक कानून लाएगी, तो उन्होंने कहा कि सरकार इसपर कानून बनाने पर विचार करेगी।
भाजपा के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी इसका स्वागत करते हुए कहा कि इसने सुधार लाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।
स्वामी ने ट्विटर पर कहा, ‘‘प्रधान न्यायाधीश ने एक समझदार फैसला दिया है। उन्होंने तीन तलाक पर छह माह के लिए रोक लगाई है और संसद से कहा है कि वह इसकी खामियों को हटाए और कानून लेकर आए।’’ स्वामी ने कहा कि इससे हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच नजदीकी आएगी और यह मुस्लिम महिलाओं के लिए एक बड़ा दिन है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम खुश हैं कि हिंदू और मुस्लिम दोनों ही महिलाएं सुधार के लिए एकसाथ खड़ी हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह मुस्लिम महिलाओं के लिए एक बड़ा दिन है। उनके साहस और निर्भीकता को सलाम। वे असल सुधार के लिए खड़ी रही हैं और हमें उन्हें सलाम करना चाहिए और उनके साथ खड़े होना चाहिए।’’ भाजपा के प्रवक्ता और वरिष्ठ वकील अमन सिन्हा ने कहा कि इस फैसले ने नरेंद्र मोदी सरकार के रूख को दोषमुक्त कर दिया है।
सिन्हा ने कहा कि पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ की ओर से मुस्लिमों के बीच तीन तलाक की प्रथा को ‘असंवैधानिक’ घोषित किए जाने से मुस्लिम महिलाओं को एक सम्मानित जीवन जीने का अधिकार मिलेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने भारत सरकार के इस रूख को बरकरार रखा है कि तीन तलाक असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण है।’’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस के भाषण का हवाला देते हुए वरिष्ठ वकील ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री ने तीन तलाक की प्रतिगामी प्रथा के कारण महिलाओं की दुखदायी स्थिति के मुद्दे को उठाया था और आज इसे असंवैधानिक ठहरा दिया गया है।’’ सिन्हा ने कहा, ‘‘तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार का रूख दोषमुक्त हो गया है। यह मुस्लिम महिलाओं को सम्मान एवं गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार देगा।’’ उच्चतम न्यायालय ने आज एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मुस्लिमों में तीन तलाक की प्रथा को ‘अमान्य’, ‘अवैध’ और ‘असंवैधानिक’ घोषित कर दिया।