“साहित्यिकी” द्वारा भारतीय भाषा परिषद में राहुल सांकृत्यायन की 125वीं जयंती मनायी गयी। इस उपलक्ष्य में आयोजित संगोष्ठी में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए किरण सिपानी ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को राहुल से प्रेरणा लेने की जरूरत है। राहुल के काम को जितना महत्व मिलना चाहिए था, नहीं मिला है। राहुल में अद्भुत ज्ञान पिपासा थी और संकीर्णता जरा भी न थी।साथ ही वह एक सहज मनुष्य भी थे। अतिथियों का स्वागत करते हुए गीता दूबे ने राहुल सांकृत्यायन के बहुआयामी व्यक्तित्व को रेखांकित किया।
डा रेशमी पांडा मुखर्जी ने कहा कि राहुल ने लेखन के अतिरिक्त एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी जमीनी स्तर पर काफी काम किया था। किसानों और मजदूरों के हक के लिए वह सामंतों से टकराने से भी नहीं घबराए। राहुल आर्यसमाज से प्रभावित थे और कुसंस्कारों का विरोध किया । राहुल बहुभाषाविद थे। उनके ऐतिहासिक उपन्यासों में यथार्थ और कल्पना का सुंदर सम्मिश्रण हुआ है।
रंजीत कुमार ने कहा कि राहुल से हम सीखते हैं कि हम कैसे महान बन सकते हैं। मार्क्सवाद उनके चिंतन का घर था। राहुल जी ने तत्वज्ञान, दर्शन और इतिहास की गूढ़तम बातों को बिलकुल सहज भाषा में लिखा है। राहुल से हमें यह सीखने को मिलता है कि महान लोगों का जीवन अपने लिए नहीं आम जनता के लिए होता है। उनमें ज्ञान की प्रबल भूख थी और उन्होंने विपुल साहित्य की रचना भी की।
सुषमा हंस ने कहा कि राहुल की भाषा बड़ी सशक्त थी। संगोष्ठी का संचालन गीता दूबे और धन्यवाद ज्ञापन विजयलक्ष्मी मिश्रा ने किया।