कोलकाता : साहित्यिकी की ओर से 23 जून 2018 की शाम को भारतीय भाषा परिषद के सभाकक्ष में संस्था की संस्थापक एवं अध्यक्ष सुकीर्ति गुप्ता की पांचवीं पुण्य तिथि के अवसर पर सुप्रसिद्ध गांधीवादी आलोचक भगवान सिंह की सद्यप्रकाशित पुस्तक “गांव मेरा देस” पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। सचिव गीता दूबे ने अतिथियों का स्वागत करते हुए सुकीर्ति जी पुण्य स्मृति को नमन किया एवं संस्था के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। अनीता ठाकुर ने अपने वक्तव्य में पुस्तक को स्मृति चारण का अन्यतम नमूना बताया जिसमें गांव के वैशिष्ट्य और स्वरूप को समग्रता से उभारा गया है। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक हिन्दी साहित्य की अनुपम कृति है। श्री सुधांशु शेखर ने अपने वक्तव्य में श्रीभगवान सिंह की ओर संकेत करते हुए कहा यह आदमी गांव पर लिखनेवाला एक उपयुक्त आदमी है। लेखन और जीवन दोनों ही स्तर पर वह पुरानी परंपराओं को बचाने के प्रति प्रयासरत हैं। वह अपनी स्मृतियों से ताकत बटोरकर जगत से मुठभेड़ करते हैं। इन्होंने भारतीय कृषक के जीवन को गांधी दर्शन के माध्यम से व्याख्यायित किया है। गंवई संस्कृति पर छाए संकट को लेखक बखूबी रेखांकित करता है।
ऋषिकेश राय ने कहा कि डाॅ. सिंह की किताब पर नेस्टालाजिया या स्मृति का गहरा दबाव है। डा. सिंह ने पश्चिमी आधुनिकता के बरक्स देशज आधुनिकता को ग्राम संस्कृति और कृषि संस्कृति में खोजने का प्रयास किया है। गांव के अपने अंतर्विरोध हैं पर कृषि संस्कृति के मूल्य इन सारे अंतर्विरोधों का अतिक्रमण कर जाते हैं। इस पुस्तक को पढ़ते हुए कभी ललित निबंध पढ़ने का आनंद आता है तो कभी उपन्यास का। ग्राम संस्कृति के प्रति उनका अनवरत अनुराग इस पुस्तक में परीलक्षित होता है।
इस पुस्तक को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि आप संस्कृतिलोक की यात्रा कर रहे हैं। भगवान सिंह ने अपने लेखकीय वक्तव्य में कहा कि कलकत्ता आकर मुझे हमेशा अच्छा लगता है। गांधी और उनके हिंद स्वराज्य को पढ़कर गांव पर लिखने की प्रेरणा मिली। गांव को बचाना जरूरी है और मैं अपने तई गंवई संस्कृति और मूल्यों को बचाने के लिए निरंतर प्रयासरत हूं। अमरनाथ जी ने गांव से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा सरकार कि नीतियां किसानों के बिल्कुल विरुद्ध हैं।
अध्यक्षीय वक्तव्य में रेणु गौरीसरिया जी ने कहा कि इस कृति को पढ़ते हुए एक उपन्यास पढ़ने का सुख मिलता है। यह एक उद्देश्यपरक कृति है। लेखक की शैली अद्भुत है और उन्होंने कहावतों और लोकोक्तियों को बेहद सरस शैली में पिरोया है। व्यवस्था को पलटने की तड़प भी पुस्तक में दिखाई देती हैं। कार्यक्रम का संचालन गीता दूबे एवं धन्यवाद ज्ञापन सरोजिनी शाह ने किया। इस परिसंवाद में शहरभर के बुद्धिजीवी , रचनाकार और संस्कृति प्रेमी बड़ी संख्या में मौजूद थे।