सावन की फुहार का रिश्ता राखी के त्योहार से बाजार तक

रेखा श्रीवास्तव 

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जनवरी से जून महीने तक तपते धूप से त्रस्त लोगों के लिये जुलाई महीना राहत की सांस लाता है। अगस्त महीने के आते-आते सुहाने मौसम के साथ वातावरण भी भक्तिमय  हो जाता है। होली के बाद खत्म हुए पर्व-त्योहार का आगमन भी वैसे इसी महीने से होता है। नागपंचमी, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, सावन इत्यादि सभी इस महीने में ही आता है। दुर्गा पूजा की शुरुआत यानी खूंटी पूजा भी इसी महीने हुई और पंडाल निर्माण कार्य शुरू हो गया है। इस सबके साथ इस महीने के मध्य यानी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस। हमारे देश को स्वतंत्र कराने वाले देशप्रेमी को हम याद करते हैं, और अपना झंडा फहराते हैं। यानी पूरी तरह से हर वर्ग के लोगों के लिए अगस्त महीना उत्साह से भरा है। माहौल में केसरिया, हरा एवं सफेद रंग पूरी तरह से भर जाता है। स्वतंत्रता दिवस के मौके के लिए हर तरफ केसरिया व हरे रंग के तिरंगे लहलहाते दिख रहे हैं। बाजारों में भी झंडे की मांग बढ़ गई है। स्कूल, कॉलेज में भी केसरिया रंग अपने बलिदानों, त्यागों के संदेश सुना रहा है। वहीं दूसरी तरफ सावन महीने में कांवड़ लेकर तारकेश्वर, बैद्यनाधाम जाने वाले श्रद्धालु भी केसरिया रंग के कपड़े पहनकर माहौल भक्तिमय कर रहे हैं। हरा रंग मन में हरियाली भर रहा है। एक तरफ झंडे में लहलहाता है, तो दूसरी तरफ सावन महीने में महिलाएँ हरी चूड़ी, हरी साड़ियां पहनकर शंकर भगवान की पूजा कर रही है। यानी कुल मिलाकर अगस्त महीने में माहौल केसरिया व हरा-भरा हो गया है। अभी तक फ्रेंडशीप का खुमार उतरा भी नहीं कि अगले हफ्ते में रक्षा-बंधन पर्व की तैयारी चल रही है। यह पर्व वैसे तो केवल भाई-बहनों  का है, पर समय के साथ इसने भी अपना दायरा बढ़ा लिया है। अब दो दोस्त भी एक दूसरे को रक्षा बंधन बांध कर अपनी दोस्ती को मजबूत कर रहे हैं। इसके अलावा एकल परिवार में अगर भाई न हो तो, बहनें  भी एक-दूसरे को बांध कर यह पर्व खुशी-खुशी मनाने की तैयारी चल रही है।  इसके लिए बाजारों में पिछले एक-डेढ़ महीने से ही रंग-बिरंगी राखियाँ सजी हुई है। पतले धागे से लेकर बड़े आकार का स्पंज, छोटा भीम, डोरेमन से लेकर कृष्ण तक की राखियाँ कलाई पर सजने के लिए तैयार है। वैसे तो गली-कुची के इलाके में भी राखियाँ खूब बिक रही है, पर बड़ाबाजार का सत्यनारायण पार्क, राममंदिर, हावड़ा एसी मार्केट जैसे हिंदी भाषी इलाकों में ज्यादा सजी दिख रही है। इस होड़ में मॉल भी पीछे नहीं है, पर वहाँ महंगी राखियाँ होने की वजह से सब लोग खरीद नहीं पा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ कूरियर सर्विस वाले भी रक्षा बंधन को लेकर नयी-नयी स्कीमें देते रहते हैं। इस बार एक कूरियर सर्विस ने तो हद कर दी। बिहार, यूपी या किसी भी राज्य में राखी भेजने वालों की लॉटरी करेगा और विजेता को विदेश जाने का टिकट गिफ्ट देगा। मतलब हद हो गई कि भेजिए राखी कहीं भी, पर हो सकता है कि आपको विदेश घूमने का मौका मिल जाये।

पिछले दो दिनों से कोलकाता के मेदिनीपुर की एक खबर पिता ने अपने बेटे की हत्या करवा दी ने तूल पकड़ लिया है। चाहे न्यूज पेपर हो या न्यूज चैनल इसी खबर को बार-बार प्रसारित किया जा रहा है और इस विषय पर चर्चाएं भी हो रही है। सही बात है कि हमारे घर का मुखिया अर्थात् पिता ही अगर धीरज खो ले तो फिर परिवार का क्या होगा। पर सोचिए यह हमारे समाज को क्या हो रहा है। हम किस तरफ जा रहे हैं। धीरज के रूप में सख्त जाने वाले पिता ने भी अपनी चुप्पी तोड़ ली है। अब वह भी अपराधी की कतार में खड़े हो रहे हैं। एक परिवार में सदियों से जाना जाता है कि माँ अपने बच्चों को मारती-पिटती भी है, और फिर उसे सीने से लगाकर प्यार भी करती है। पर जब वह अपना धीरज पर पिता तो केवल एक छत होता है जो अपने बच्चों की रक्षा करता है, पर अभी समय ऐसा आ गया है कि पिता का धैर्य भी खत्म होता जा रहा है। चाहे संपत्ति का मामला हो या कोई भी मुद्दा पर आज वह इतना गंभीर हो गया है कि अपने ही सुपुत्र को मौत के घाट उतारा जा रहा है। इस तरह की घटना हमें बता रही है कि हमारी मानसिक स्थिति की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। हम संयुक्त परिवार से एकल परिवार, मुहल्ले से फ्लैट तक तो जरूर पहुँच गये हैं, पर हमारे अंदर कितना खोखलापन होता जा रहा है कि हमारा धीरज खत्म के कगार पर है। हम छोटी-छोटी चीजों पर ही बेकाबू होने लगे हैं। पहले हम अपनी समस्याओं को शेयर करते थे, और मन हल्का हो जाता है पर आज स्थिति पूरी तरह से उलट गया है। फेसबुक और व्हाट्सअप जैसी सुविधा होने के बावजूद हम केवल अपने खुशी के पल को ही शेयर करते हैं, और मुश्किल और दुख में केवल अकेले रह जा रहे हैं और ऐसी स्थिति में ही हत्या या आत्महत्या जैसे हादसे हो रहे हैं। पिछले दिनों एक और खबर आयी थी कि एक पिता ने अपने बेटे को सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया क्योंकि बेटा  पितानुसार खेल में जीत हासिल नहीं दर्ज नहीं कर पाया था। यह खबर भी शर्मनाक है, पर आज की स्थिति यही करवा रही है। एक तरफ तो हमारी इच्छाएं, सपने और महत्वकांक्षाएं बढ़ गये हैं और उसके लिए जैसे हमारे पास धीरज  की कमी हो गई है।  आज की स्थिति यह है कि हम कम समय में ज्यादा कुछ पाने की चाह में लगे हैं। ऐसे में हम अपने धीरज को खोते जा रहे हैं और क्राइम जैसी घटनाएं बढ़ रही है। टीवी पर दिखाये जाने वाले क्राइम कार्यक्रम भी हमारी सोच को बदल नहीं पा रहा है। हम समझ रहे हैं कि हमारी प्रवृत्ति सही नहीं, पर फिर भी हम उसी होड़ में बढ़ते जा रहे हैं।

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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