बैंकिंग सुविधाओं को लोगों तक पहुंचाने की सरकार की कोशिश और नतीजा यह कि देश में आज 35.8 करोड़ यानी 61 प्रतिशत महिलाएं बैंक खाता धारक हैं। वर्ष 2014 में यह आंकड़ा 28.1 करोड़ था. वैश्विक कंसल्टेंसी ‘इंटरमीडिया’ द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के मुताबिक आठ दक्षिण एशियाई देशों और अफ्रीकी देशों में ‘खाताधारक’ महिलाओं में यह सबसे बड़ा उछाल है।
सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत में और अधिक महिलाएं बैंकिंग प्रणाली में शामिल हुई हैं। पुरुषों की तुलना में अंतर के मामले में भी महिलाओं ने चार प्रतिशत अंकों से यह फासला पार किया है, जो सर्वेक्षण में शामिल सभी देशों में सबसे तीव्र दर है।
इंटरमीडिया की वरिष्ठ सहयोगी निदेशक, नैथनील क्रेचन ने इंडिया स्पेंड को बताया, ‘भारत और बांग्लादेश में महिलाओं में वित्तीय समावेशन मुख्य रूप से बैंक खातों तक पहुंच द्वारा संचालित होता है, जबकि ज्यादातर तंजानियाई महिलाएं अपनी वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए मोबाइल धन पर भरोसा करती हैं. यह चलन भारत और बांग्लादेश की तुलना में तंजानिया में महिलाओं द्वारा मोबाइल फोन के ज्यादा प्रयोग के कारण हैं।.’
भारत और तंजानिया ने लैंगिक अंतर को एक साल (2014-15) में सफलतापूर्वक कम किया है। भारत में यह अंतर 12 प्रतिशत से गिरकर आठ प्रतिशत और तंजानिया में 11 प्रतिशत से नौ प्रतिशत रह गया है।
क्रेचन ने कहा है कि हालांकि पहले के मुकाबले भारतीय महिलाओं के ज्यादा बड़े वर्ग तक वित्तीय सेवाओं की पहुंच हो गई है, लेकिन तंजानिया या बांग्लादेश के मुकाबले ‘बेहद कम’ महिलाएं औपचारिक वित्तीय सेवाओं पर भरोसा करती हैं। इस निष्कर्ष का अर्थ है कि भारतीय ज्यादातर साहूकारों, दोस्तों या परिवारों जैसे अनौपचारिक वित्तीय सेवाओं पर भरोसा करते हैं।
इंडिया स्पेंड की जुलाई 2016 की रपट बताती है कि हालांकि कृषि क्षेत्र में ऋण के प्रवाह में वृद्धि हुई है, लेकिन औपचारिक संस्थानों से छोटे ऋण की हिस्सेदारी में तेजी से गिरावट आई है। क्रेचन के मुताबिक, मुख्य रूप से ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’ (पीएमजेडीवाय) के कारण भारत में वित्तीय समावेशन में वृद्धि हुई है. इंडिया स्पेंड की जून 2016 की रपट के मुताबिक, पिछले 21 महीनों में जन धन यानी बुनियादी बचत खातों में 118 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।
क्रेचन ने कहा, ‘इसमें मजेदार यह है कि यह कार्यक्रम मुख्य रूप से महिलाओं पर केंद्रित नहीं था, फिर भी पीएमजेडीवाय के तहत पुरुषों की तुलना में महिलाओं में वित्तीय समावेशन में ज्यादा तेज गति से वृद्धि हुई है।’
दिल्ली के ‘इंडिकस एनलिटिक्स’ में मुख्य अर्थशास्त्री सुमिता काले ने मई 2016 में समाचार पत्र ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ में लिखा था, ‘यह देखना सुखद है कि पीएमजेडीवाई मिशन निदेशालय ने इस मामले में प्रगति की है कि अब वह सिर्फ खातों की संख्या पर नजर नहीं रख रहा है, बल्कि कई सारे संकेतकों पर भी नजर बनाए हुए है.’
इनमें बैंक खातों को आधार कार्ड्स से जोड़ना, रुपे कार्ड्स, जनधन बैंक खातों में ओवरड्राफ्ट्स के इस्तेमाल के तरीके, बैंक मित्रों को भुगतान और उनकी प्रौद्योगिकी तैयारी जैसे कई संकेतक शामिल हैं।