प्रेम मंदिर उतर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले की प्रसिद्ध नगरी वृंदावन में एक स्थित एक विशाल और खूबसूरत मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण जगद्गुरु कृपालु महाराज ने भगवान कृष्ण और राधा के मन्दिर के रूप में करवाया था। इस मंदिर का निर्माण पूरे विश्व में प्रेम प्रेम का सन्देश देने के लिए भगवान श्रीकृष्ण व राधा रानी की दिव्य प्रेम लीलाओं की साक्षी वृंदावन नगरी में करवाया गया था। ये मंदिर लीलाधर श्री कृष्ण को समर्पित है. ये एक धर्मिक और आध्यात्मिक परिसर है जो मथुरा जिले के वृन्दावन के बाहरी इलाके में 54-एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस दिव्य मंदिर की निर्माण नींव जनवरी 2001 में श्री कृपालु जी महाराज द्वारा रखी गयी थी। इस मंदिर के निर्माण कार्य को समाप्त होने में 11 वर्ष का समय और लगभग 100 करोड़ की धनराशि का व्यय हुआ था। प्रेम मंदिर का उद्घाटन समारोह 15 फरवरी से 17 फरवरी 2012 के मध्य आयोजित किया गया था।
इस मंदिर के निर्माण में इटैलियन करारा संगमरमर का प्रयोग किया गया है। प्रेम मंदिर के भव्य भवन का निर्माण राजस्थान और उत्तर प्रदेश के हज़ारो शिल्पकारों ने मिल कर किया था. इस पुरे मंदिर का मंदिर का निर्माण सफ़ेद संगमरमर द्वारा किया गया है जिसकी रोशनी सफेद दूधिया रंग की है। प्रेम मंदिर दिल्ली-आगरा-कोलकाता के NH – 2 पर छटीकरा से लगभग 3 किलोमीटर वृंदावन की ओर भक्तिवेदांत स्वामी मार्ग पर स्थित है।
वृंदावन का ये मंदिर भारतीय शिल्पकला का एक अनूठा और नायाब उदाहरण है। यहाँ के पूज्य देवता श्री राधा गोविन्द (राधा कृष्णा) और सीता राम है। प्रेम मंदिर के नजदीक 73000 वर्ग फीट के क्षेत्रफल में फैला एक स्तंभ रहित, गुबंद आकार के सत्संग कक्ष (hall) का निर्माण किया गया है जिसमे एक समय से 25000 व्यक्ति समा सकते है।
इतिहास :-सं 1946, में जब कृपालु महाराज मात्र 24 वर्ष के थे, उन्होंने वृंदावन में एक विशाल मंदिर के निर्माण करने की शपथ ली थी। अपने अन्य दोस्त, गरगरा के श्री राम शंकर शर्मा, मानगढ़ के श्री लक्ष्मी नारायण और इटौरा के श्री सूर्य भूषण के साथ श्री महाराज जी मंदिरों के दर्शन करने के लिया वृंदावन गए। उस समय ये सभी मित्र संस्कृत व्याकरण का अध्ययन कर रहे थे। जब उन्होंने रंग जी मंदिर को देखा तो उन्होंने अपने मन में विचार किया की मुझे भी वृंदावन में एक विशाल मंदिर का निर्माण करना चाहिए। महाराज जी की ये बात सुनकर उनके मित्र उनका उपहास करने लगे और कहने लगे की मंदिर बनाना कोई बच्चों का खेल नहीं है।
कई बार उनके दोस्तों को ये एहसास हुआ था की वो कोई साधारण बालक नहीं है, बल्कि एक दैवीय शक्ति वाले व्यक्ति है लेकिन इस बार उन्हें यकीन नहीं हो रहा था की वास्तव में उनके लिए ये संभव है। 14 जनवरी 2001 को हज़ारो भक्तों की उपस्थिति में उन्होंने इस दिव्य मंदिर की नींव रखी। लगभग 12 वर्ष का समय और 1000 से अधिक श्रमिकों की मेहनत के बाद प्रेम मंदिर को एक आकार डिजाइन दिया गया। इसके अलावा छैनी और हथोड़े की मदद से इस विशाल मंदिर के भीतरी परिसर को तराशा गया था। इसके अतिरिक्त श्री राधा कृष्ण की अद्भुत लीलाओं को तराशने के लिए कुछ रोबोटिक्स मशीनों का भी प्रयोग किया गया था। इस तरह की विशेष मशीनों का प्रयोग इससे पूर्व भारत में नहीं किया गया था। वृंदावन स्थल का विकास स्वयं श्री कृपालु जी महाराज द्वारा किया गया था जिनका खुद का आश्रम वृंदावन में ही स्थित है।
वास्तुकला और डिजाइन :-
इस मंदिर का निर्माण और इसकी कल्पना केवल और केवल महाराज द्वारा की गयी थी। महाराज के विचार और दृष्टिकोण को प्रसिद्ध सोमपुरा परिवार के महान मूर्तिकार श्री सुमन राय त्रिवेदी और उनके पुत्र श्री मनोज सुमन राय त्रिवेदी द्वारा दोहराया गया जिन्हे गुजरात के महान मंदिर सोमनाथ के रचयता का सम्मान (गौरव) दिया जाता है। वृंदावन में स्थित श्री राधा कृष्ण और सीता राम का ये अनोखा मंदिर प्राचीन भारतीय कला और वास्तुकला को प्रदर्शित करता है। प्रेम मंदिर का पूर्ण निर्माण इटैलियन पत्थर से किया गया है, जिसमे अद्भुत नक्काशी और परिष्कृत शिल्पकला और कीमती पत्थरो से जडे हुए नमूने देखने को मिलते है।
ये मंदिर वृंदावन की एक अद्वितीय आध्यात्मिक संरचना है। इस मंदिर के ध्वज को मिलाकर इसकी ऊँचाई 125 फीट. है जिसमे 190 फीट लम्बा और 128 फीट चौड़ा चबूतरा है. मंदिर के चबूतरे पर एक परिक्रमा मार्ग का निर्माण किया गया है जिसके द्वारा श्री कृष्ण राधा की लीलाओं के 48 स्तंभों की खूबसूरती का दृश्य देखा जा सकता है जिनका निर्माण मंदिर की बाहरी दीवारों पर किया गया है। मंदिर की दीवारें 3.25 ft. मोटी है। मंदिर की गर्भ गृह की दीवार की मोटाई 8 फीट है जिस पर एक विशाल शिखर, एक स्वर्ण कलश और एक ध्वज रखा गया है। मंदिर की बाहरी परिसर में 84 स्तंभ है जो श्री कृष्ण की लीलाओं को प्रदर्शित करते है जिनका उल्लेख श्रीमद्भगवद में किया गया है।