13 देशों के राष्ट्राध्यक्ष और एक लाख से अधिक लोग इस पल के गवाह बने। भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी समारोह में भाग लिया। समारोह में पहुंचे भारतीयों ने तिरंगा भी लहराया। भारत के गिरजाघरों में इस मौके पर विशेष प्रार्थना सभाएं हुईं।
सुबह सेंट पीटर्स बैसीलिका के सामने दया की प्रतिमूर्ति के सम्मान में प्रार्थना सभा आयोजित की गई। यहां पर मदर टेरेसा की पहचान बनी नीले बॉर्डर वाली साड़ी में उनकी आदमकद प्रतिमा लगी थी। इस मौके पर पोप फ्रांसिस ने कहा, “मदर टेरेसा ने वंचितों की सेवा करके चर्च की परंपरा को आगे बढ़ाया। सेवा कार्य से उन्हें ईश्वरीय शक्ति प्राप्त हुई, उसे उन्होंने लोगों की भलाई में लगाया।” समारोह में पूरे इटली से करीब 1,500 बेघर लोगों को बस से रोम लाया गया। सिस्टर्स ऑफ चैरिटी की 250 ननों और पादरियों ने इन्हें पिज्जा भोज परोसा।
डाक टिकट जारी
मदर टेरेसा के नाम पर केंद्र सरकार ने डाक टिकट जारी किया। मुंबई में आयोजित समारोह में केंद्रीय संचार राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने यह डाक टिकट जारी किया। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने एक सड़क का नामकरण मदर टेरेसा के नाम पर किया।
इन दो चमत्कारों से बनीं संत
कैथोलिक चर्च की परंपरा में माना जाता है कि ईश्वर कुछ पवित्र आत्माओं को धरती पर लोगों की सेवा और चमत्कार करने के लिए भेजता है। ऐसे लोगों को संत की उपाधि देने से पहले चर्च उनसे कम से कम दो चमत्कारों की अपेक्षा करता है। मदर टेरेसा से जुड़े मामलों में दो को चमत्कार माना जाता है।
पहला मामला बंगाल की महिला मोनिका बेसरा का है, जिसने बताया कि 2002 में मदर की प्रार्थना से उसके पेट का कैंसर ठीक हुआ था। दूसरे चमत्कार के विषय में ब्राजील के मार्सीलिओ हेडाड एंड्रीनो ने बताया कि 2008 में पत्नी फरनांडा द्वारा मदर की प्रार्थना करने से उनका ब्रेन ट्यूमर खत्म हो गया था।
खास बातें
-10,000 से अधिक संत हैं कैथोलिक चर्च के
-29 लोगों को पोप फ्रांसिस ने घोषित किया संत
-1234 में संत बनाने की प्रक्रिया को पोप ग्रेगोरी नौवें ने अंतिम रूप दिया था
-1588 से प्रक्रिया में आंशिक परिवर्तन किया गया। तब से लगातार जारी है
संत यानी क्या
संत यानी सीधे ईश्वर का हिस्सा। इसका अर्थ है कि व्यक्ति ने पूरा जीवन इतने पवित्र तरीके से जिया कि अब वह स्वर्ग में स्थान पा गया है। अब वह ईश्वर के साथ मध्यस्थता कर चमत्कार करता है। उस व्यक्ति के आदर्श और बातें सीधे ईश्वर की बातें मानी जाती हैं। संत घोषित होने पर अब मदर टेरेसा को औपचारिक रूप से कैथोलिक धर्म सिद्धांतों में स्थान मिल जाएगा।
मदर टेरेसा के बारे में जाने कुछ खास बातें
मदर टेरेसा को 1971 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किया गया था। 1988 में ब्रिटेन ने ‘आर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर’ की उपाधि प्रदान की।
कोलकाता से शुरू हुए मिशनरीज ऑफ चैरिटी का लगातार विस्तार होता रहा। मदर टेरेसा के निधन के समय तक इसका प्रसार 610 मिशन के तहत 123 देशों में हो चुका था। दुनियाभर में तीन हजार से ज्यादा नन इससे जुड़ी हुई हैं।
मदर टेरेसा ने कई आश्रम, गरीबों के लिए रसोई, स्कूल, कुष्ठ रोगियों की बस्तियां और अनाथ बच्चों के लिए घर बनवाए। 5 सितंबर, 1997 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। निधन के पश्चात पॉप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें ‘धन्य’ घोषित किया था।
जानें संत घोषित करने की पूरी प्रक्रिया
संत घोषित करने की प्रक्रिया की शुरुआत उस स्थान से होती है, जहां वह रहे या जहां उनका निधन होता है। मदर टेरेसा के मामले में यह जगह है कोलकाता। प्रॉस्ट्यूलेटर प्रमाण और दस्तावेज जुटाते हैं और संत के दर्जे की सिफारिश करते हुए वेटिकन कांग्रेगेशन तक पहुंचाते हैं।
कांग्रेगेशन के विशेषज्ञों के सहमत होने पर इस मामले को पोप तक पहुंचाया जाता है। वे ही उम्मीदवार के ‘नायक जैसे गुणों’ के आधार पर फैसला लेते हैं।
अगर प्रॉस्ट्यूलेटर को लगता है कि उम्मीदवार की प्रार्थना पर कोई रोगी ठीक हुआ है और उसके भले-चंगे होने के पीछे कोई चिकित्सीय कारण नहीं मिलता है, तो यह मामला कांग्रेगेशन के पास संभावित चमत्कार के तौर पर पहुंचाया जाता है, जिसे धन्य माने जाने की जरुरत होती है।
संत घोषित किए जाने की प्रक्रिया का यह पहला पड़ाव है। चिकित्सकों के पैनल, धर्मशास्त्रियों, बिशप और चर्च के प्रमुख (कार्डिनल) को यह प्रमाणित करना होता है कि रोग का निदान अचानक, पूरी तरह से और दीर्घकालिक हुआ है और ऐसा संत दर्जे के उम्मीदवार की प्रार्थना के कारण हुआ है।
इससे सहमत होने पर कांग्रेगशन इस मामले को पोप तक पहुंचाता है और वे फैसला लेते हैं कि उम्मीदवार को संत घोषित किया जाना चाहिए। मगर, संत घोषित किए जाने के लिए दूसरा चमत्कार भी होना चाहिए।
मदर की प्रशंसा में ममता ने गाए टैगोर के गीत
मदर टेरेसा के शहर कोलकाता का प्रतिनिधित्व कर रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खास अंदाज में साथ गए लोगों के साथ संत घोषणा के समारोह में शिरकत की। मदर टेरेसा की पहचान बनी नीले बॉर्डर की साड़ी पहने ममता ने रोम से सेंट पीटर्स बैसीलिका तक का छह किलोमीटर का सफर पैदल प्रभातफेरी के रूप में पूरा किया।
इस दौरान उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं का गायन भी किया। इस दौरान उनके साथ बंगाली स्टाइल के कुर्ता-धोती में सांसद डेरेक ओब्रायन और कुर्ता-पायजामा में सुदीप बंद्योपाध्याय भी थे। ममता ने टैगोर के जिन बांग्ला गीतों का गायन किया उनमें- अगुनेर पोरोसमोनी…, बिश्वपिता तुमी हे प्रभू… और मंगलदीप जेले…थे। इन गीतों में मदर टेरेसा के किए कार्यों और उनसे पैदा हुई प्रसिद्धि की झलक मिलती है।
सोनिया ने जताई खुशी
नई दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि संत की उपाधि मदर टेरेसा द्वारा किए गए सेवा कार्य पर दुनिया की मुहर जैसी है।
“कोलकाता की मदर टेरेसा को हम संत घोषित करते हैं। अब सभी चर्च उनका संत के रूप में सम्मान करेंगे।”
– पोप फ्रांसिस, रोमन कैथलिक समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरु
“मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभूषित किया जाना एक यादगार और गौरवपूर्ण क्षण है।”
– नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
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