एक लड़की, जिसे अंग्रेजी नहीं आती थी आज वह ब्रिटेन की सबसे मशहूर शिक्षाविदों में शामिल हैं। बिहार के एक छोटे से शहर सीतामढ़ी की आशा खेमका को अपने जीवन के 25 वर्षों तक अंग्रेजी का ज्ञान तक नहीं था, लेकिन आज उन्होंने आज हजारों अंग्रेज छात्रों की जिंदगियों को बदल दिया। वर्तमान में आशा खेमका ब्रिटेन के प्रख्यात कॉलेज वेस्ट नाटिंघमशायर कॉलेज की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और प्रिंसिपल हैं। उन्हें ‘एशियन बिजनेस विमन ऑफ द इयर’ के सम्मान से नवाजा गया है।
आशा खेमका ने यह बात साबित की है कि अगर मन में चाह है तो कोई भी बाधा मनुष्य को रोक नहीं सकती है। वह कहती हैं, ‘शिक्षा को लेकर अपने जुनून को मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती और यह जुनून हर दिन बढ़ता जा रहा है। मैं इस शानदार क्षेत्र का हिस्सा बन कर बहुत गौरवान्वित महसूस करती हूं।’उनका जन्म बिहार के सीतामढ़ी जिले में एक व्यवसायी परिवार में 21 अक्तूबर 1951 को हुआ था।
आपको जान कर हैरानी होगी कि उन्हें महज 13 वर्ष की उम्र में पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। एक दिन अचानकवालों ने आशा से कहा कि वह साड़ी पहन कर तैयार हो जाएं। उसे शादी के लिए लड़के वाले देखने आ रहे हैं। आशा खूब रोई, लेकिन घर वालों की इच्छा के सामने उनकी एक न चली और 15 साल की उम्र में उनकी सगाई होगी। उनके होने वाले पति शंकर लाल खेमका तब मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे। शादी के करीब 50 वर्ष बाद भी उनका यह प्रेम जस का तस है। डॉ. शंकर लाल खेमका आज ब्रिटेन के प्रसिद्ध ऑर्थोपेडिक सर्जन हैं।
1978 में आशा खेमका अपने पति और तीन बच्चों- बेटी शालिनी वथा दो बेटों शील और स्नेह के साथ इंग्लैंड आ गई। जब वह इंग्लैंड आईं तो अंग्रेजी का ज्ञान नहीं था। उनकी शिक्षा भी कुछ खास नहीं थी। यहां आकर वह कई सालों तक अपने घर के कामकाज में ही मशगूल रहीं। साथ ही अपने जैसी महिलाओं के साथ अंग्रेजी में बात करके अंग्रेजी को बेहतर बनाती रहीं।
जब बच्चे कुछ बड़े हो गए तो उन्होंने अपनी अधूरी पढ़ाई फिर शुरू की। फिर कार्डिफ यूनिवर्सिटी से बिजनेस डिग्री हासिल की और उसके बाद अध्यापन के क्षेत्र में कदम रखा। 2006 में वह वेस्ट नॉटिंघम कॉलेज की प्रिंसीपल बनीं। यह कॉलेज इंग्लैंड के सबसे बड़े कॉलेजों में से एक है।
आशा खेमका ‘एसोसिएशन ऑफ कॉलेजेज इन इंडिया’ की चेयरपर्सन भी हैं। उनका एक चैरिटेबल ट्रस्ट भी है ‘द इंस्पायर एंड अचीव फाउंडेशन’। इस ट्रस्ट का उद्देश्य है 16 से 24 साल के उन युवाओं को अपना भविष्य संवारने में मदद करना, जो शिक्षा, रोजगार से वंचित हैं और उनके पास किसी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं है।
शिक्षा के क्षेत्र में उनके बेहतरीन योगदान के लिए कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा चुका है। 2013 में उन्हें ब्रिटेन के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक ‘डेम कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर’ से सम्मानित किया जा चुका है। इस सम्मान को महिलाओं के लिए ‘नाइटहुड’ उपाधि के समान माना जाता है। महिलाओं के लिए यह सर्वोच्च ब्रिटिश सम्मान है। आशा इस सम्मान को पाने केवल दूसरी महिला हैं। यह सम्मान पाने वाली पहली भारतीय महिला धार की महारानी लक्ष्मी देवी थीं।