रजोनिवृत्ति को हमेशा महिलाओं में उम्र के साथ आने वाले हार्मोन संबंधी बदलावों से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन ऐसा पुरुषों में भी हो सकता है। यह समस्या तब होती है, जब पुरुषों के अंडकोष से टेस्टोस्टेरोन का पर्याप्त उत्पादन नहीं होता। दरअसल टेस्टोस्टेरोन हार्मोन पुरुषों के विकास में अहम भूमिका अदा करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब हार्मोन का स्तर कम हो जाता है तो पुरुषों में मानसिक और शारीरिक बदलाव आते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि 40 साल की उम्र के बाद पुरुषों में एंड्रोपॉज या रजोनिवृत्तिकी शुरुआत हो जाती है। टेस्टोस्टेरोन हार्मोन में हर साल 2 से 3 प्रतिशत की कमी आती है। और 49 साल की उम्र तक टेस्टोस्टेरोन हार्मोन बहुत कम हो जाता है। पुरुषों में रजोनिवृत्ति के लक्षण थकान, मिजाज में बदलाव, बाल झड़ना, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता का कम होना और वजन बढ़ जाना आदि हो सकते है। आइए जानें इसके लक्षणों के बारे में।
पुरुष रजोनिवृति के लक्षण – युवावस्था में तेज रफ्तार गड़ियां, तीखा-सनसनाता संगीत, तेज गति की जीवन-शैली और संघर्ष करने की प्रवृत्ति ज्यादा नजर आती है, लेकिन पुरुष की रजोनिवृति होने पर वह इन सबसे दूर होने लगता है। पुरुष की रजोनिवृति के साथ ही स्वभाव की उग्रता, गुस्सा और तीखापन कम होता जाता है मगर चिड़चिड़ाहट बढ़ जाती है। खतरों की तुलना में सुरक्षा को ज्यादा तवज्जो दी जाने लगती है। याद्दाश्त कम होती है और भावुकता बढ़ने लगती है। पुरुष अपनी युवावस्था में कभी भी इतना कोमल, इतना भावुक नहीं रहता है, जितना की रजोनिवृति में होने लगता है। इस दौरान पुरुषों में सेक्सुड़अल डिजायर बढ़ जाती है। वे सेक्स के बारे में ज्यादा सोचने लगते हैं। उन्हें लगता है कि वे एक बार फिर पहले से ज्यादा रोमांटिक हो गए है। यह वही दौर है जब ज्यादातर पुरुष शादीशुदा होते हुए भी दूसरी महिलाओं से संबंध बनाने के लिए प्रेरित होते हैं। महिलाओं की तरह इनमें शारीरिक बदलाव नहीं होते लेकिन डिप्रेशन, थकान, मिजाज में बदलाव, ध्यान केंद्रित न कर पाना और वजन बढ़ना जैसे लक्षण पाए जाते हैं।
पुरुष रजोनिवृति पर शोध – कुछ पुरुषों में उम्र बढ़ने के साथ-साथ चिड़चिड़ापन, और झल्लाहट अधिक बढ़ती जैती है। इसकी एक वजह पुरुष रजोनिवृत्ति भी हो सकती है। कुछ अनुसंधानों से पता चला है कि लगभग एक तिहाई पुरुष इस स्थिति का सामना करते हैं। कुछ वर्ष पूर्व स्विडेन के कुछ शोधकर्ताओं ने एक शोध में पाया कि पचपन वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों में पसीना आने या गर्मी महसूस करने के लक्षण होना एक आम बात है। लिंकोपिंग विश्विद्यालय के वैज्ञानिकों के इस दल का यह भी बताया था कि सीजीआरपी के नाम से जाना जाने वाला प्रोटीन पुरुषों और महिलाओं दोनों में इस प्रकार के लक्षणों का कारण हो सकता है। दरअसल इस प्रोटीन की मौजूदगी से रक्त कोशिकाएं फैल जाती हैं जिससे पसीना अदिक आता है। लेकिन इसी दौरान कुछ सेक्स हार्मोनों में कमी भी आती है। वैज्ञानिकों का कहना था कि यदि इस प्रोटीन के स्तर पर नियंत्रण कर लिया जाए तो रजोनिवृत्ति के दौरान होने वाली तमाम परेशानियों से बचा जा सकता है। इस शोध में पचपन वर्ष से अधिक आयु के 1800 से अधिक पुरुषों से बातचीत कर उनसे पूछा गया कि क्या उनमें वे मेनोपॉज़ के दौरान पाए जाने वाले लक्षण हैं। उन्होंने पाया कि जिन पुरुष में सेक्स हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन की कमी पाई गई यह लक्षण उनमें अधिक थे। उनकी मांसपेशियां कमजोर पड़ गई थीं, उन्हें कम भूख लगती थी और वे थकान का अनुभव करते थे।
पुरुष रजोनिवृत्ति की पहचान – पुरुष रजोनिवृत्ति की पहचान करने के लिए डॉक्टर शारीरिक परीक्षण करता है व लक्षणों के बारे में पूछता है। वह कुछ अन्य नैदानिक परीक्षण कराने के लिए भी कह सकता है जो इसका कारण हो सकती हैं। इसके बाद वह कुछ रक्त परिक्षण कराने को भी कह सकता है जो कि टेस्टोस्टेरोन स्तर को मापने में सहायक हो सकते हैं।
पुरुष रजोनिवृत्ति का उपचार – यदि टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम होता है तो टेस्टोस्टेरोन रिप्लेसमेंट थेरेपी सेक्स में कमी (कामेच्छा में आई कमी), अवसाद और थकान जैसे लक्षणों से राहत देने में मदद कर सकती है। लेकिन महिलाओं में हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी की तुलना में टेस्टोस्टेरोन रिप्लेसमेंट थेरेपी संभावित जोखिमों और साइड इफेक्ट वाली होती है। उदाहरण के लिए टेस्टोस्टेरोन बदलने से, प्रोस्टेट कैंसर और खराब हो सकता है। यदि आप या आपका कोई प्रीय एण्ड्रोजन रिप्लेसमेंट थेरेपी पर विचार कर रहा है तो इसके बारे में अधिक जानने के लिए पहले चिकित्सक से बात करें।
आपका चिकित्सक आपको जीवनशैली में कुछ बदलाव करने की सलाह दे सकता है जैसे एक नया आहार या व्यायाम कार्यक्रम, या पुरुष रजोनिवृत्ति के लक्षणों में से कुछ को कम करने के लिए अन्य अवसादरोधी दवाएं आदि।
यूं तो यह एक स्वभाविक प्रक्रिया है लेकिन इस समस्या के साइड इफेक्टज से बचने के लिए पुरुषों को एक्स्रसाइज करना चाहिए क्योंकि टेस्टोस्टेरोन हार्मोन के कम होने से मांसपेशियां और हड्डियाँ प्रभावित होती हैं तथा टाइप टू डायबिटिज होने की आशंका बढ़ जाती है।
(साभार ओन्ली माई हैल्थ डॉट कॉम)