कोलकाता : राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने कहा है कि पत्रकार समाचार संकलन और संपादन ही नहीं करता बल्कि इससे आगे बढ़कर वह शिक्षक की भूमिका भी निभाता है। भारतीय भाषा परिषद तथा माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा दो दिवसीय पत्रकारिता पर राष्ट्रीय विमर्श भारतीय भाषाओँ में अंतर्संवाद का उद्घाटन करते हुए उन्होंने उक्त बातें कहीं। राज्यपाल ने कहा कि पत्रकारिता का लक्ष्य राष्ट्रहित होना चाहिए और मर्यादित भाषा का प्रयोग करना चाहिए। कार्यक्रम के प्रथम सत्र में भारत में भाषाई विविधता पर बोलते हुए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाल ने कहा कि पत्रकार में उसके शब्दों के प्रति दायित्वबोध नहीं होना चाहिए। भारतीय भाषाओं की शब्दावलियों से सर्वश्रेष्ठ शब्दों का चयन कर उनको उपयोग में लाने की जरूरत है। राज्यसभा सांसद तथा सन्मार्ग हिन्दी दैनिक के प्रधान संपादक विवेक गुप्त ने कहा कि भारतीय भाषाओँ का अपना स्वाद और विविधता है और उसे व्यवहार में लाना होगा। सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ लेखक रामकुमार मुखोपाध्याय ने मीडिया को उन भाषाओँ को सामने लाने की जरूरत हैं जो छूट गयी हैं। उद्घाटन सत्र का संचालन कलकत्ता विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. राजश्री शुक्ला ने किया। स्वागत भाषण भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष कुसुम खेमानी ने किया जबकि धन्यवाद भारतीय भाषा परिषद के मंत्री नन्दलाल शाह ने दिया। परिसंवाद के दूसरे सत्र में भारतीय पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियाँ विषय पर बोलते हुए छपते – छपते के प्रधान संपादक विश्वम्भर नेवर ने कहा कि आज पत्रकारिता पूंजी और बाज़ार के पंजे में हैं और मीडिया पर दबाव रहता है। सत्र की अध्यक्षता वाराणसी के पूर्व प्रोफेसर राममोहन पाठक ने पत्रकारिता समाज का एजेंडा तय करती रही है और पत्रकार को अपने पेशे और समाज के प्रति जवाबदेह होनी चाहिये। प्रथम सत्र का संचालन प्रो. संजय जायसवाल ने किया। तीसरे सत्र में भाषाई पत्रकारिता में अंग्रेजी शब्दों का प्रदुषण विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि हिन्दी देश की सर्वोत्तम भाषा हिन्दी है, ये मैं नहीं मानता। अन्य भाषाओँ से शब्द लेना और आत्मसात करना भाषा को समृद्ध करता हो पर यह ध्यान रखें कि मूल भाषा का अस्तित्व खतरे में न पड़े। हिन्दी को मृत अवस्था तक ले जाने में मीडिया की भूमिका है। बांग्ला के वरिष्ठ पत्रकार स्नेहाशीष सूर ने कहा कि हिंगलिश भाषा को बिगाड़ रही है। भाषा की शुद्धता पर जोर दिया जाना चाहिए। हिन्दी की एकमात्र भाषा है जो जोड़ने का काम कर रही है। कलकत्ता विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. राजश्री शुक्ला ने कहा कि मालिक और विज्ञापन की बढ़ती माँग ने पत्रकारिता की भाषा को बिगाड़ दिया है। सत्र का संचालन ममता पाण्डेय ने की। कार्यक्रम के दूसरे दिन सामजिक समरसता में पत्रकारिता की भूमिका विषय में वक्तव्य रखते हुए साधना पत्रिका के संपादक मुकेश शाह ने कहा कि लेखन समाज को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सभी भाषाओँ को सीखने की जरुरत है। पोंडिचेरी विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर सी. जयशंकर बाबू ने कहा कि समरसता का मतलब एकता की भावना है। मिली – जुली संस्कृति को विकसित करने की जरूरत है। भाषा जोड़ने का माध्यम है। अध्यक्षीय भाषण में आलोचक डॉ. शम्भुनाथ ने कहा कि हिन्दी सिर्फ संपर्क की ही नहीं संवाद और ह्रदय की भाषा है। सामजिक समरसता के लिए अतीत का बोझ छोड़ने की जरुरत है। सत्र का संचालन सुषमा त्रिपाठी ने किया।दूसरे दिन परिसंवाद में पत्रकारिता के माध्यम से भारतीय साहित्य में अंतर्संवाद विषय पर बोलते हुए दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक जयकृष्ण वाजपेई ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता के बीच दूरी का कारण तात्कालिकता का दबाव है। अब दैनिक अखबारों में साहित्य का प्रकाशन सिमटकर रविवारीय परिशिष्ट में एक या दो पन्नों का हो गया है। वरिष्ठ पत्रकार गौरांग अग्रवाल ने कहा कि पत्रकारिता में नई चीजें आ गई हैं। भारी- भरकम बातों के बदले लोग हल्की- फुल्की चीजें चाहते हैं। बेहतर साज – सज्जा और प्रस्तुति पर जोर अधिक है। अखबार नई जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। सत्र का संचालन वरिष्ट पत्रकार अभिज्ञात ने किया। कार्यक्रम के अंतिम सत्र में परिसंवाद के संयोजक डॉ. अविनाश वाजपेई ने दो दिनों के कार्यक्रम की रपट पेश की। महात्मा गांधी चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा ने कहा कि हमें अंग्रेजी के शब्दों की जगह हिन्दी के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। शब्द भारतीय शब्दों से लिए जाएँ जिससे भारतीय भाषाओँ की मिठास बनी रहे।