नाटकों का जश्न मनाता लिटिल थेस्पियन जश्न –ए – रंग….

लिटिल थेस्पियन का 7 वां राष्ट्रीय नाट्य उत्सव “जश्न-ए-रंग” (रंगमंच का उत्सव) आज से आरम्भ होने जा रहा है। यह नाट्योत्सव 3 से 8 नवम्बर 2017 तक चलेगा। नाट्योत्सव का उद्घाटन लिटिल थेस्पियन के नाटक रूहें के साथ होगा और इस दौरान नाटकों की स्थिति पर एक परिचर्चा भी आयोजित की जा रही है। जश्न –ए – रंग की पूरी कार्यक्रम सूची और तमाम नाटकों की संक्षिप्त जानकारी हम दे रहे हैं…अगर आप नाट्यप्रेमी है तो यह आपके लिए तोहफे की तरह है…जरूर जाइए..

 

3 नवम्बर 2017, शुक्रवार समय: शाम 6:30 बजे

नाटक: रूहें

संगीत: मुरारी रायचौधरी

वेशभूषा: उमा झुनझुनवाला

लेखक व निर्देशक : एस. एम. अज़हर आलम
नाट्यदल : लिटिल थेस्पियन, कलकत्ता

नाटक

रूहें नाटक में कई भिन्न परतें हैं जो संघर्ष के कई रूपों दर्शाती है। अतीत और वर्तमान के बीच संघर्ष, नए और पुराने, सही और ग़लत के बीच का संघर्ष, लोकतंत्र का एकतंत्र के खिलाफ संघर्ष। यह नाटक विभिन्न प्रकार की भावनाओं और मानवीय संघर्षों का एक कैनवास है, मिश्रण है जिसके केंद्र में एक कब्रिस्तान है जहाँ खोए हुए अतीत की कई रूहें भटक रही हैं जो आज कीं नई व्यवस्था को स्वीकार नहीं कर पा रही हैं।  वहीं एक मुजाविर है जो अतीत और वर्तमान को  आमने सामने आने से रोकने के लिये सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है ताकि एक अकल्पनीय त्रासदी को रोका जा सके।

 निर्देशक : लिटिल थेस्पियन के कलात्मक निर्देशक, अज़हर आलम कई प्रतिभाओं के धनी हैं, वे एक कुशल अभिनेता, निर्देशक और एक उत्कृष्ट सेट डिजाइनर होने के अलावा, ऊर्दू की सर्वप्रथम थियेटर पत्रिका “रंगरस” के संपादक भी हैं।

उन्होंने 46 से अधिक नाटकों में अभिनय और 21 नाटकों का निर्देशन किया हैं। इनके निर्देशन में धोखा, कबीरा खड़ा बाज़ार में, रेंगती परछाइयाँ, गैंडा, चेहरे, पतझड़, लोहार आदि कई नाटक हैं जिन्होंने लिटिल थेस्पियन को कलात्मक ऊँचाइयों पे पहुँचाया है |  इन्होंने नेपाली लोक कलाकारों के साथ भी दार्जिलिंग में काम किया और नेपाली में दो नाटकों, सृष्टी को रॉक्सी कर्ता (लियो टॉलस्टॉय कि कहानी पर आधारित स्व लिखित नाटक) और हयवदन (नाटक – गिरीश करनाड) का निर्देशन किया।

पश्चिम बंगाल नाट्य अकादमी द्वारा उन्हें 2001 में नमक की गुड़िया (उर्दू) के लिए सर्वश्रेष्ठ नाटककार और 2007 में सवालिया निशान के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक की उपाधि से सम्मानित किया गया।

मंच पर

नवाब ताहिर अली बेग– एस. एम. अज़हर आलम

सिपहसालार – शरत नायर

नायब सिपहसालार- फहीम बट

फरहाद हुसैन – तारिक अली नय्यर

जब्बार हुसैनी- दिलीप भारती 

मुजाविर- अभिषेक मिश्रा

दूत – अविक महतो

दास्तानगोह- रहीम पीरानी 

ख्वाजासिरा- अमर्त्य भट्टाचार्य

रूह 1 – राघव राय

रूह 2 – विप्लब स्वराज  

रूह 3 – ज़ैनुल आबेदीन

रूह 4 – शबरीन

बड़े नवाब की रूह- सागर सेनगुप्ता

नवाब 1 की रूह –  आकाश श्रीवास्तव

नवाब 2 की रूह – उमंग सिंह

बेग़म साहिबा की रूह- अर्पिता बोस

नवाबज़ादी की रूह- लीलाश्री अवला गुरिया

 

4 नवम्बर 2017, शनिवार समय: शाम 6:30 बजे

क़िस्सा ख्वानी (गुजराती)

कहानी: त्रिपान सिंघ चावडा जिवे छे:

लेखक : रमेश पारेख

प्रस्तुति: दिलीप दवे और दिनेश वदेरा

कहानी : ये एक बेतुकी शैली कहानी है जो एक ऐसे व्यक्ति की भावनाओं को अभिव्यक्त करती है जिसने अपने जीवन को शाही तरीके से जिया और अब अपने अतीत को पीछे नहीं छोड़ पा रहा जबकि वह जीवित भी नहीं हैं।

 दिनेश वदेरा मुद्रा आर्ट्स के संस्थापक हैं और उन्होंने कई नाटकों में अभिनय एवम निर्देशन किया है। उन्होंने कई नाटक लिखे हैं जैसे ‘अनंदधारा’, ‘अथ श्री आदिनाथ कथा’, ‘आचार्य स्थुलिभद्र’, ‘अरण्य रुदन’, थोड़ी सी ख़ुशी आदी। इसके अतिरिक्त उन्होंने माया (एस आर एफ टी आई), शंघाई, एहसास आदि फिल्मों में अभिनय भी किया है।

दिलीप दवे एक फ्रीलान्स अभिनेता हैं जिन्होंने ने आपने अभिनय का सफ़र 1980 में शुरू किया। उन्होंने 63 नाटकों, 8 फीचर फिल्मों, 2 लघु फिल्मों, 10 कॉर्पोरेट फिल्मों और 28 धारावाहिकों में अभिनय किया है।इसके अतिरिक्त उन्होंने 4 नाटकों का निर्देशन किया है और कोलकाता में गुजराती एवम हिंदी भाषा के अग्रणी वॉयसओवर कलाकार भी हैं।

शाम 7 बजे

नाटक: खारु का खरा क़िस्सा

भुवनेश्वर द्वारा लिखित कहानी ‘भेड़िये’ पर आधारित

नाटककार: सुमन कुमार

प्रकाश संरचना: टोनी सिंघ

संगीत: अमर सिंघ, प्रियंका चौहान

निर्देशन: प्रवीण शेखर

नाट्यदल: बैकस्टेज लैब, इलाहबाद

नाटक:

खारु का खरा क़िस्सा भुवनेश्वर द्वारा लिखित कहानी ‘भेड़िये’ पर आधारित है। यह कहानी है गरीबी, तंगी और उससे छुटकारा पाने की जद्दोजहद के बीच भयावह परिस्थितियों के टकराव की। सब कुछ दांव पर लगा कर भी, किसी भी कीमत पर ज़िंदा रहने का संघर्ष। यह कहानी जीवित रहने की तीव्र इच्छा से कुछ ज़्यादा है। खारू के पिता के पास अपने जूते और जीवन को छोड़कर देने के लिये कुछ भी नहीं है। यह कहानी एक भयंकर तर्क को भी दर्शाती है कि एक महिला एक वस्तु से अधिक और कुछ नहीं है। खारू के जीवन के माध्यम से, यह कहानी मानव जीवन की उन दर्दनाक परिस्थितियों को छूती है जो जीवन की कोमलता को मिटा देती है, भगवान और सुंदरता से सच्चाई को काट कर अलग कर देती है। ‘भेड़िये’ वास्तव में केवल भेड़िये नहीं हैं, अपितु वो सभी परिस्थितियाँ हैं जो इफ्तिखार को खरु में परिवर्तित कर देती हैं।

नाट्यदल के बारे में

1999 में स्थापित बैकस्टेज, सभी प्रकार के दृश्य और निष्पादन कलाओं के विकास के लिए समर्पित संगठन है। इसके कलाकार हमारे समाज के रोज़मर्रा की ज़िदगी में सामाजिक कल्याण और उत्थान के मूल्यों के बारे में चिंतित हैं। इसका उद्देश्य एक बेहतर माहौल तैयार करना है जहां एक सामान्य व्यक्ति भी रंगमंच की भाषा को समझ सके। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए यह संगठन युवाओं और बच्चों के लिए कार्यशालाओं का आयोजन करता है और नाटक भी प्रदर्शित करता है। बैकस्टेज ने एनएसडी के भारत रंग महोत्सव और जशान-ए-बचपन सहित पूरे भारत में कई थियेटर त्योहारों में भाग लिया है। बैकस्टेज ने अब तक 25 नाटक प्रोडक्शन के अलावा, 7 राष्ट्रीय सेमिनार, व्याख्यान, कार्यशालाएं, प्रदर्शनियों और कई अन्य गतिविधियों का आयोजन किया है। इसके संरक्षक हैं थियेटर दीर्घानुभवी श्री रतन थियम, श्री रुद्र प्रसाद सेनगुप्ता, भानु भारती, उर्दू आलोचक और संपादक शमसुर्रहमान फरूकी, गीतकार गोपाल दास “नीरज”, भोजपुरी लोक कलाकार प्रो शारदा सिन्हा, हिंदी आलोचक प्रो सत्य प्रकाश मिश्रा। बैकस्टेज ने इंडिया थियेटर फ़ोरम द्वारा आयोजित SMART (थिएटर कला में सामरिक प्रबंधन) स्नातक कार्यक्रम के पहले बैच को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है।

निर्देशक के बारे में

प्रवीण शेखर थिएटर निर्देशक, डिज़ाइनर और लेखक हैं। वे राष्ट्रीय पुरस्कार और राजकीय सम्मानों के साथ वरिष्ठ फेलो (संस्कृति मंत्रालय) क़े प्राप्तकर्ता हैं। उन्होंने 1 9 नाटकों में अभिनय किया है, 28 नाटकों का निर्देशन किया है और उन्होंने रतन थियम, रुद्र प्रसाद सेनगुप्ता, भानु भारती, बी.व्ही. करंथ, बी.एम. शाह, तपस सेन, बादल सरकार, स्वाजील सेनगुप्ता सरीखे दिग्गजों के साथ कार्य किया है। उनके निर्देशित नाटक एनएसडी के भारत रंग महोत्सव और जशन-ए-बचपन में प्रदर्शित किए गए हैं। वे एक कला आलोचक भी हैं जिन्होंने कई प्रकाशनों के लिए काम किया है। मास कम्युनिकेशन और हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर के अलवा उन्होंने फिल्म और टेलीविजन संस्थान, पुणे से “फिल्म लैंग्वेज” और राष्ट्रीय संग्रहालय, इलाहाबाद से कला सौंदर्यशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की है।

मंच पर

खरु- भास्कर शर्मा

खरु के पिता- सतीश तिवारी  

खरु का बेटा- अंजल सिंघ

भेड़िया 1 – सिद्धार्थ पाल

भेड़िया2 – अनुज कुमार  

भेड़िया 3 – अमर सिंघ

नतिनि 1 – कोमल पांडे

नतिनि 2 / मेमना – अनुवर्तिका, सोमवंशी 

नतिनि 3 – सरिता यादव

खरु का पड़ोसी- दिलीप श्रीवास्तव

खरु का रिश्तेदार- इंद्रजीत सिंह

भेड़िये/भेड़- चंकी बच्चन, दिलिप, अंजनी कुमार सोनी, आकाश अग्रवाल, अनुज, अमर, सिद्धार्थ, इंद्रजीत, अनुवर्तिका, कोमल, सरिता।

 

5 नवम्बर 2017, रविवार समय: शाम 6:30 बजे

क़िस्सा ख्वानी क्रिओल और हिंदी भाषा में

कहानी: मॉरीशस

संकल्पना: उमा झुनझुनवाला

प्रस्तुति: मॉरीशस के थियेटर कलाकार लीलाश्री, शवीन और वोमेश

 

कहानी के बारे में

लोक नृत्य और संगीत के माध्यम से मॉरीशस बनने के संघर्षों की कहानी।

 

उमा झुनझुनवाला के बारे में

46 से अधिक नाटकों में अभिनय, 12 नाटकों और 11 एकांकियों के निर्देशन के अलावा, उन्हें कोलकाता में कथा कोलाज के नाम से स्टोरी थिएटर (story theatre) को लाने का श्रेय दिया जाता है।

उन्होंने 2 नाटक रेंगती परछाइयाँ और हज़ारो ख़्वाहिशें का लेखन किया है। 8 बच्चों के नाटकों और 12 नाटकों का अनुवाद भी किया है। झांसी में रानी लक्ष्मीबाई के संग्रहालय के लिए उन्होंने संपूर्ण प्रकाश और संगीत कार्यक्रम की अवधारणा, पटकथा और डिज़ाइन की है। रंगमंच पर उनकी कविताऐं, कहानियां और लेख कई पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित किए गए हैं। रंगमंच में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों साए सम्मानित किया गया है जिनमे प्रमुख हैं कौमी एकता पुरस्कार 2016, श्रीदेवी माहेश्वरी पुरस्कार, महिला सम्मान पुरस्कार 2006 और 1997 आदि।

 

5 नवम्बर 2017, रविवार समय: शाम 7 बजे

नाटक– द चेयर्स (The Chairs)

नाटककार- यूजीन इओनेस्को

संगीत: इफरा काक और सनम

निर्देशन– मुश्ताक़ काक

नाट्यदल- अमेच्यर थियेटर ग्रूप, जम्मू

 नाटक के बारे में

चारों तरफ़ पानी से घिरे एक गोल इमारत में, सबसे अलग, दो बुज़ुर्ग अपने खाली दिनों को अनिश्चितता में टिमटिमाते अतीत को याद करने में और काल्पनिक लोगों से आबाद वर्तमान को जीने में बिताते हैं। वे कुर्सियाँ सजाते हैं और अपने उन अदृश्य मेहमानों का स्वागत करते हैं जो दुनिया के लिये उस बुज़ुर्ग इंसान का संदेश सुनने आये हैं। उस दम्पति के आत्म्हत्या के बाद अब वो संदेश एक ऐसे वक्ता के हाथ छोड़ दिया गया है जो बहरा और मूक है, जो इसे आगे किसी तक नहीं पहुँचा सकता।

इओनेस्को लिखते हैं, ” ये दुनिया मेरी समझ से परे है, मैं इंतज़ार कर रहा हूँ किसी ऐसे का जो इसे समझा सके। द चेयर्स (The Chairs) नाटक इस शैली के एक प्रमुख उदाहरण के रूप में देखा जाता है, जिसमें मानवता के अकेलेपन और निरर्थकता पर प्रकाश डाला गया।

नाट्यदल के बारे में

1980 में कुछ उत्साही लोगों ने, अनुभवी कलाकार स्व. रतन कलसी के नेतृत्व में, एमेच्योर थिएटर ग्रुप का गठन किया। यह दल, श्री राम सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स, नई दिल्ली के पूर्व निदेशक मुश्ताक काक द्वारा चलाया जा रहा है।

प्रमुख प्रस्तुतियों में टोबा टेक सिंह, डाक घर, उरुभंगम, मैकबेथ, आषाढ़ आषाढ़ का एक दिन, आधी रात के बाद, एवम इंद्रजीत, अंधा युग आदि शामिल हैं। ग्रुप ने कई राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय रंगमंच उत्सवों में भाग लिया है।

निर्देशक के बारे में

रंगमंच में उनके योगदान के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्तकर्ता मुश्ताक काक का जन्म और परवरिश जम्मू में हुआ। उन्होंने 100 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया है। उन्हें अंधा युग, मल्लिका और प्रतिबिंब सहित कई नाटकों के लिए जम्मू एवं कश्मीर एकेडमी ऑफ़ आर्ट, कल्चर एंड लैंग्वेज द्वारा सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के पुरस्कार से सम्मानित गया और रंगमंच में उत्कृष्टता के लिए महिंद्रा ऐंड महिंद्रा अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है। उनके नाटक “महाब्राह्मण”, “अल्लादद”, “कस्तुरी मृग”, “चेखोव इन माय लाइफ” और “लोकतंत्र इन हेवेन” को 1999, 2000, 2003, 2005 और 2013 के लिए साहित्य कला परिषद , दिल्ली सरकार द्वारा सर्वश्रेष्ठ नाटक के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

 

मंच पर

बूढ़ा आदमी सुनील शर्मा

बूढ़ी औरत– सुमना कुमारी

वक्ता संदीप वर्मा

6 नवम्बर 2017, सोमवार समय: शाम 5 बजे से

 रंगमंच के विकास व प्रसार में शैक्षिक संस्थान और अख़बारों की भूमिका पर चर्चा

 वक्ता

विश्वम्भर नेवर (प्रधान संपादक, दैनिक छपते छपते), रवीन्द्र राय (संपादक, राजस्थान पत्रिका), जय कृष्ण वाजपेयी (संपादक, दैनिक जागरण), आफ़रीन हक (संपादक, अखबार-ए-मशरीक), प्रोफेसर आनंदलाल (विभागाध्यक्ष, अंग्रेज़ी विभाग, जादवपुर विश्वविद्यालय), प्रो. सत्या तिवारी (प्रिंसिपल, कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज), प्रो. राजश्री शुक्ला (विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय), प्रो. शुभ्रा उपाध्याय (विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, खुदीराम बोस कॉलेज), प्रो. दिलीप शाह (डीन, भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज), प्रो. प्रीति सिंघी (विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, शिक्षायतन कॉलेज), प्रोफेसर इतु सिंह (विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, खिदीरपुर कॉलेज), प्रो रिंकु घोष (विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, लेडी ब्रेबर्न कॉलेज), डॉ पूनम पाठक (सेंट लॉरेंस स्कूल), अनुभव दासगुप्ता (द हेरिटेज स्कूल), प्रियदर्शनी दासगुप्ता (अभिनव भारती स्कूल)

 

7 नवम्बर 2017, मंगलवार समय: शाम 6:30 बजे

क़िस्सा ख्वानी : एक औरत की डायरी से

लेखिका : उमा झुनझुनवाला

प्रस्तुति: उमा झुनझुनवाला, अर्पिता, हिना, कुमकुम, चंद्रायी, अनीता, अर्चना, शबरीन और लीलाश्री

एक औरत की डायरी से एक गद्य है जिसे डायरी के रूप में लिखा गया है। यह सदियों पुराने दर्द, घुटन, शक्ति और एक महिला होने के अकेलेपन का जीवंत प्रलेखन है।

 शाम 7 बजे

नाटक: अर्थ

निर्देशक: निलोय रॉय

दल: पीपल्स थियेटर ग्रुप, नई दिल्ली

 

नाटक के बारे में

अर्थ, जिसे सत्व, मानव मूल्यों या वित्तीय, किसी भी नज़रिये से देखा जाये , एक ऐतिहासिक नाटक है जो 320 ईसा पूर्व के समय को दर्शाता है। यह नाटक जीवन और समाज में मूल्यों की जटिलताओं को दर्शाता है, जब स्व्यं मौर्य साम्राज्य भी इंसान के आंतरिक संघर्षों का शिकार हो जाता है। किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक चरित्र को केंद्रित ना करते हुए, ‘अर्थ’ उस आर्थिक प्रभुत्व की छवि प्रस्तुत करता है जो राजनीतिक वंशों द्वारा विकृत और दूषित की गई है। चाणक्य, बिन्दुसरा और उनके जीवन, इतिहास के पन्नों में हुए बदलावों के उत्प्रेरक हैं, लेकिन यह कहानी उस आम आदमी के इर्द गिर्द घूमती है जिसके विचार अब एक नया मोड़ ले रहे हैं, राजनीतिक और धार्मिक परिवर्तनो से प्रेरित, ये आम आदमी  अपनी दुविधाओं से जूझते हुए अपनी एक स्वतंत्र विचारधारा बनाने के लिये संघर्षरत है। तक्षशिला और मौर्य साम्राज्य के बीच राजनीतिक संघर्ष असल में आजीविका और संसाधनों को नियंत्रित करने के लिए प्रभुत्व और वित्तीय अक्ष के हेरफेर की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है।

नाट्य दल के बारे में

पीपल्स थियेटर ग्रुप अभिनव प्रकाश, मंच निर्देशन और विश्व थिएटर के ज्ञान के बीच सामंजस्य बनाने में विश्वास रखता है। सादगी के माध्यम से प्रस्तुत की गई हर कहानी मन को कल्पनाओं के साथ उड़ान भरने के लिये पंख प्रदान करती है।

चोतुश्पोद, इति कृष्णा, स्वोप्नेर शोहोर, टाइपराइटर, पदातिक, वो नहीं गांधी, ओ ‘ओथेलो, और अर्थ जैसी प्रस्तुतियों से समूह ने अनछुये विचारों, अवधारणाओं और कहांनियो को दर्शकों के सामने लाया है। उनके प्रयासों को समीक्षकों और दर्शकों दोनों ने बराबर सराहा है।

 

निर्देशक के बारे में

निलोय ने नाटककार, निर्देशक और अभिनेता के रूप में आलोचकों के साथ-साथ सामान्य दर्शकों के बीच भी एक विशिष्ट पहचान बनायी है। वे उन चुनिंदा युवा निर्देशकों में से एक है जिन्हें उनके कार्य के लिए यूरोपीय संघ द्वारा अभिस्वीकृत किया गया है। उनके नाटकों, चोतुश्पोद, इति कृष्णा, स्वोप्नेर शोहोर, एक टुकड़ों ईछे, पदातिक और आबार एकात्तोर को भारत भर में सम्मान और प्रशंसा प्राप्त हुआ है। उनके हिंदी नाटक ‘ वो नहीं गांधी’, ‘अर्थ’, ‘मेडिया’ के हिंदी रूपांतरण और अंग्रेजी में ‘वार इज़ नॉट ओवर येट’ को संवेदनशील और अत्यधिक अनुभवी स्क्रिप्ट के लिए समीक्षकों द्वारा प्रशंसित किया गया है।

 मंच पर

  1. बोधी और दामू: राहुल
  2. वट्टा: सृष्टि
  3. अराहंत: अजय सिंह
  4. सुगातो: अंकित कुमार
  5. बिंदूसार: अनुराग जैन
  6. सुबंधु: मोहित सिंह
  7. विमन्ना: अभिषेक पाल
  8. विमुत्ती: अंकित के मिश्रा
  9. यख्खा: रवि कुमार
  10. पर्ना: पूजा कांजीलाल
  11. सामवेद: करन मिश्रा
  12. सुभद्रांगी: सिमरन
  13. चाणक्य: प्रदीप मणि त्रिपाठी
  14. अगात: तरुण कपूर
  15.  मंत्रन: शर्जेल खान
  16. नागरिक: प्रिंस
  17. नागरिक: यशिका
  18. शारन्य: बबली

 8 नवम्बर 2017, बुधवार समय: शाम 6:30 बजे

नाटक: दो औरतें

संगीत – अबधेश पासवान, कुंदन कुमार

प्रकाश– अभिमन्यु विनय कुमार

नाटक और निर्देशन– अमित रौशन

नाट्यदल: पीपल्स थिएटर ग्रुप, बेगुसराय

नाटक के बारे में

उप-शहरी इलाके के अंतांत की एक गली में सन्नाटा पसरा था । बीबी दलजीत का दिल दहलाने वाला विलाप उस सन्नाटे को तोड़ रहा था और कई प्रश्नों को जन्म दे रहा था । ‘दो औरतें’ नाटक समाज में बढ़ते अत्याचार और अपराधों के खिलाफ एक प्रतिक्रियात्मक राजनीतिक प्रदर्शन है। यह नाटक दो माताओं के मनोवैज्ञानिक आतंक और उनके बेटों के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है… वो बेटे.. वो अपराधी… ज़िंदगी हमेशा एक परी कथा नहीं होती…

नाट्यदल के बारे में

आशिर्वाद रंगमंडल एक राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित रंगमंच समूह है जो बेगूसराय, बिहार में स्थित है, और इसका गठन 30 साल पहले हुआ था। सार्थक थिएटर गतिविधियों में संलग्न होने के अलावा, समूह सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में भी शामिल है। आशिर्वाद रंग महोत्सव नामक राष्ट्रीय रंग्मंच उत्सव 2010 में शुरू हुआ था। 2012 में, आशिर्वाद रंगमंडल ने एक और रंगमंच उत्सव की शुरुआत जिसका नाम टैगोर नाट्य महोत्सव है।

निर्देशक के बारे में

अमित रौशन समकालीन भारतीय थिएटर में एक उभरते युवा प्रतिभा है। उन्होंने डॉ बी अनंत काले कृष्णन, प्रोफेसर मोहन महर्षी, प्रो रामगोपाल बजाज और कई अन्य प्रमुख थियेटर व्यक्तित्वो के साथ एक अभिनेता और डिजाइनर के रूप में काम किया। थिएटर के क्षेत्र में बारह प्रमुख कार्यशालाओं जैसे फ़ोरम थिएटर कार्यशाला (लंदन), शिनोग्राफ़ी कार्यशाला (लंदन, भारत), रंगमंच प्रबंधन कार्यशाला (नॉर्वे), रंगमंच डिजाइन कार्यशाला (इंग्लैंड) आदि में भाग लिया।

वे कला एवं संस्कृति विभाग, भारत सरकार द्वारा भिखारी ठाकुर युवा पुरस्कार 2014 के प्राप्तकर्ता हैं।

 मंच पर

रिंटु कुमारी

मक्सूदन कुमार

कुणाल भारती

अरुण कुमार

उमा शंकर

 

 

 

शुभजिता

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