भारतीय संस्कृति को परंपराओं का संगम कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सभी त्योहारों की तरह क्रिसमस यानी बड़े दिन का त्यौहार पूरे विश्व की तरह भारत भर में मनाया जाता है, मगर क्या कभी आपने सोंचा है भारत में क्रिसमस को बडे दिन के नाम से क्यों पूकारा जाता है। वैसे तो क्रिसमस को प्रभु ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में मनाया जाता है।
भारत में क्रिसमस को बड़ा दिन कहने के पीछे कई अलग अलग मान्यताएं प्रचलित है कहा जाता है।पहले इसे रोमन उत्सव के रूप में मनाया जाता था इस दिन लोग एक दूसरे को ढेर सारे उपहार देते थे। जब धीरे-धीरे ईसाई सभ्यता पनपने लगी तब भारत में यह दिन मकर संक्रान्ति के रूप में मनाया जाने लगा। इसके अलावा बड़े दिन के पीछे प्रभू ईसा के जन्म से जुड़ी कई कथाएं भी प्रचलित हैं।
25 दिसंबर यीशु मसीह के जन्म की कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नहीं है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था भारत में इस तिथि को एक रोमन पर्व यामकर संक्रांति से संबंध स्थापित करने के आधार पर चुना गया है जिसकी वजह से इसे बड़े दिन के नाम से मनाया जाने लगा। वैसे तो पूरी दुनिया में इसे इसे 25 दिसंबर को मनाया जाता है मगर जर्मनी में 24 दिसंबर को ही इससे जुडे समारोह शुरू हो जाते हैं।
क्रिसमस के दिन संता क्लॉज का भी अपना अलग महत्व है, कहते हैं इस दिन सांता क्लॉज बच्चों के लिए ढेर सारे खिलौने और चॉकलेट लाते है। सांता क्लॉज को क्रिसमस का पिता भी कहा जाता है जो केवल क्रिसमस वाले दिन ही आते हैं। क्रिसमस का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि ईसा मसीह के जन्म की कहानी का संता क्लॉज की कहानी के साथ कोई संबंध नहीं है, कहते हैं तुर्किस्तान के मीरा नामक शहर के बिशप संत निकोलस के नाम पर सांता क्लॉज का चलन करीब चौथी सदी में शुरू हुआ वे गरीब और बेसहारा बच्चों को तोहफे दिया करते थे।
चाहे क्रिसमस कहें या फिर बड़ा दिन कुल मिलाकर इस दिन चारों ओर खुशियां ही खुशियां दिखाई देती है, लोग अपने घरों को सजाते है, गिरजाघरों में प्राथनाएं होती है। अब क्रिसमस को आने में कुछ ही दिन बचें है बाजारों में क्रिसमस गिफ्ट, कार्ड, प्रभु ईशु की चित्राकृतियाँ, सांता क्लॉज की टोपी, सजावटी सामग्री और केक मिलने भी शुरू हो गए है।