गीतों में छिपी राजस्थान के गणगौर की परम्परा

अनुराधा अग्रवाल

 होली के दूसरे दिन चैत्र की तीज तक गणगौर की पूजा की जाती है। इसे कुँआरी लड़कियाँ और स्त्रियाँ पूजती हैं। इस पूजा में ईसर और गोरा की पूजा की जाती है। कई गवरजा मंडलियाँ इसका आयोजन करती हैं और सामूहिक रूप से करती हैं। गणगौर की पूजा बड़ी धूम – धाम से की जाती है और इसके गीत भी गाए जाते हैं, इन गीतों में लोक परम्परा बोलती है। ऐसे ही दो गीत –

पहला गीत

उदियापुर से आई गनगौर,, आए उतरी ब्रम्हादास जी री पोल,

ईसरदासजी ओ मांडल्यो गननौर, कानीरामजी ओ मांड्या गनगौर।

रोवां की भाभी पूजल्यो गनगौर, सुहागन रानी पूजल्यो गनगौर,

थारो ईसर म्हारी गनगौर, गोर मचा व रमझोल,

सुहागन रानी पूजल्यो गनगौर।।

 

दूसरा गीत

चमकण घाघरो, चमकण चीर, बोल बाई रोवा तेरा कुण –कुण बीर,

बड़ से बड़ो मेरो ईसरदास वीर, ब स छोटो मेरो कानीराम बीर।

माय से मिलाव मेरो ईसरदास बीर, चुनड़ी उढ़ा  व मेरो कानीराम बीर।

 

 

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