कचरा प्रबन्धन व जरूरतों पर नियन्त्रण से प्रदूषण कम हो सकता है

मोनालिसा दत्त पिछले कई सालों से पर्यावरण को सुरक्षित रखने और प्रदूषण के बढ़ते खतरों के प्रति लोगों को सजग बनाने के लिए काम कर रही हैं। टॉक्सिक लिंक में बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर कार्यरत मोनालिसा ने आई आई एस डब्ल्यूबीएम, कोलकाता से इनन्वायरन्मेंट मैनेजमेंट की डिग्री ली है। उनको आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र में 4 साल और दिव्यांगता के क्षेत्र में 3 साल काम करने का अनुभव भी है। बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर वे प्रबन्धन, नेटवर्किंग, परामर्श देने का काम काम कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के साथ कर रही हैं। अपराजिता ने मोनालिसा दत्त से खास बातचीत की –

प्रदूषण सारी दुनिया की समस्या है

प्रदूषण सारी दुनिया एक बेहद महत्वपूर्ण मसला है। भारत में लोगों को इसके बारे में खास जानकारी नहीं है इसलिए यह बेहद जागरुकता कम है। लोग प्रदूषण से बचने के तरीके के बारे में अधिक नहीं जानते। अभी काम हो रहा है मगर बहुत कुछ करने की जरूरत है।

प्रदूषण को लेकर न तो लोग सोचते हैं और न जानकारी है

प्रदूषण को लेकर लोग सोचते भी नहीं हैं इसलिए समस्या नहीं है, मसलन जो खाने – पीने की चीजें और उनके पैकेट हम सड़कों पर फेंकते हैं, उसके बारे में सोचते नहीं है और जहाँ – तहाँ भेज देते हैं। ऐसी स्थिति में इलेक्ट्रानिक उपकरणों से निकलने वाले ई – वेस्ट के बारे में लोग सोचेंगे, दूर की बात है।

ई – कचरा और वायु प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है

अब आज लोग गाड़ियाँ खरीदते हैं या इलेक्ट्रानिक उपकरण खरीदते हैं, बढ़ती माँग के साथ उत्पादन बढ़ रहा है। उत्पादन के साथ खरीद और खरीद के साथ ई – वेस्ट और वायु प्रदूषण बढ़ रहा है क्योंकि हम नयी गाड़ी या गजट खरीद तो रहे हैं मगर पुरानी चीजें किसी को न दे रहे हैं और न बाहर निकाल रहे हैं, इससे ई – कचरा ही बढ़ रहा है।

कचरा प्रबन्धन के प्रति जागरुकता होनी चाहिए

सबको इससे बचाव के तरीकों को जानना होगा, मसलन घर से जो कचरा निकालते हैं, उसमें रिसाइकल होने वाले और नहीं रिसाइकल नहीं होने वाले कचरे को अलग कर सकते हैं, इससे बाहर जाने वाला कचरा कम हो सकता है क्योंकि फल – सब्जी के छिलकों का इस्तेमाल खाद की तरह किया जा सकता है। भारत सरकार यह कर रही है मगर हर घर में इसके प्रति जागरुकता होनी चाहिए। मुश्किल यह है कि ठोस कचरा प्रबन्धन के नियम तो हैं ही, उनका नियमन मजबूत किया गया है मगर लोग इसके बारे में, फायदे और नुकसान के बारे में नहीं जानते हैं तो वहाँ भी जागरुकता की जरूरत है।

सेनेटरी नैपकिन का डिस्पोजल व रिसाइकिलिंग निर्माता की जिम्मेदारी है

सेनेटरी नैपकिन के साथ दिक्कत है और जो नियम संशोधित हुए हैं, उसके तहत नियम है कि सेनेटरी नैपकिन की निर्माता कम्पनी हर पैकेट के साथ इसे फेंकने के लिए एक पाउच देगी। सेनेटरी नैपकिन का डिस्पोजल और उसके रिसाइकलिंग की जिम्मेदारी कम्पनी की है मगर जानकारी नहीं होने के कारण उन पर न तो सवाल उठते हैं और न कोई कुछ कहता है। इस बाबत जानकारी देना सेनेटरी नैपकिन बनाने वाली कम्पनी की जिम्मेदारी है, जानकारी तो मिलनी चाहिए।

निजी संगठनों तथा संस्थानों के साथ काम करने को लेकर हिचक है

टॉक्सिक लिंक हर तरह के कचरे के प्रति जागरुकता लाने के लिए काम कर रहा है। हम कई सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनों के साथ काम करते हैं, कई अधिकारियों को ही नियमों की जानकारी नहीं है। जिला स्तर पर जानकारी होगी, इसकी तो कल्पना नहीं की जा सकती। निजी संस्थानों के साथ काम करने को लेकर अब भी हिचक है।

पुराने नियमों को संशोधित कर जमीनी स्तर पर ले जाया जा रहा है

पिछले 3 साल में पर्यावरण को लेकर सख्ती हुई है। नियम थे मगर संशोधन करके इनको नए तरीके से लागू किया जा रहा है। सजावटी रंगों में सीसे का अनुपात तय करना, यह पहली बार हुआ और पिछले साल नवम्बर में यह लागू हुआ है। पेंट निर्माता तय अनुपात से ज्यादा इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते। इसके साथ खरीदने वालों को भी नियमों का ध्यान होना चाहिए। घर –घर में जागरुकता लाना, सेनेटरी नैपकिन से लेकर पहले से मौजूद नियमों को जमीनी स्तर पर लागू की दिशा में कदम उठाए गए हैं।

कचरा प्रबन्धन व जरूरतों पर नियन्त्रण से प्रदूषण कम हो सकता है

व्यक्तिगत स्तर पर कचरा प्रबन्धन करके, अपनी जरूरतों को नियंत्रित करके हम प्रदूषण से बचाव करना सम्भव है।

शुभजिता

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