कोलकाता : रूस के स्वायत्त वैल्थ फंड रशियन डायरेक्ट इन्वैस्टमेंट फंड (आरडीआईएफ) और भारत की अग्रणी जेनरिक फार्मा कंपनी हेटरो ने भारत में हर साल स्पुतनिक वी की 10 करोड़ से अधिक डोज़ उत्पादित करने के समझौता किया है। स्पुतनिक वी दुनिया की सबसे पहली पंजीकृत वैक्सीन है जिसे नोवल कोरोनावायरस संक्रमण से बचाव के लिए विकसित किया गया है। दोनों पक्षों का इरादा आगामी वर्ष 2021 के प्रारंभिक दिनों से स्पुतनिक वी का उत्पादन शुरु करने का है। गामालेया सेंटर और आरडीआईएफ ने 24 नवंबर को घोषित किया था कि दूसरे अंतरिम डाटा विश्लेषण के सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं। रूस के इतिहास में यह सबसे बड़ा तृतीय चरण का क्लीनिकल ट्रायल था जिसमें 40,000 स्वयंसेवक शामिल हुए। अंतरिम परीक्षण के परिणामों ने एक बार फिर स्पुतनिक वी की उच्च प्रभाशीलता की पुष्टि की है। कोरोनावायरस से बचाव करने वाली स्पुतनिक वी दुनिया की पहली पंजीकृत वैक्सीन है जो ह्यूमन अडेनोवायरल वेक्टर्स के अच्छी प्रकार अध्ययन किए गए प्लैटफॉर्म पर आधारित है। वैक्सीन या प्लैसबो की पहली डोज़ पाने के 28 दिनों के बाद और दूसरी डोज़ के 7 दिनों बाद स्वयंसेवकों (n=18,794) में प्रभावकारिता का मूल्यांकन किया गया। क्लीनिकल ट्रायल प्रोटोकॉल के मुताबिक परीक्षण के दूसरे नियंत्रण बिंदु तक पहुंचने के बाद उपरोक्त मूल्यांकन किया गया। विश्लेषण ने दर्शाया कि स्पुतनिक वी वैक्सीन की प्रभावकारिता दर 91.4 प्रतिशत है। इस रूसी वैक्सीन की विशिष्टता दो भिन्न वेक्टर्स में निहित है जो ह्यूमन अडेनोवायरस पर आधारित हैं। यह वैक्सीन ज्यादा मजबूत और लंबे समय तक इम्यून रिस्पाँस देती है, उन टीकों की तुलना में जिनमें एक और वही वेक्टर दो डोज़ के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पहली डोज़ के बाद 42वें दिन (दूसरी डोज़ के बाद 21 दिन) स्वयंसेवकों पर प्रारंभिक आंकड़े -जब उन्होंने एक स्थिर इम्यून रिस्पाँस बना लिया- संकेत करते हैं कि इस वैक्सीन की प्रभावकारिता दर 95 प्रतिशत से ऊपर है।
फिलहाल तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल स्वीकृत हैं और बेलारूस, यूएई, वेनेज़ुएला व अन्य देशों में जारी हैं साथ ही भारत में दूसरा व तीसरा चरण चल रहे हैं। 50 से ज्यादा देशों से स्पुतनिक वी वैक्सीन की 1.2 अरब से अधिक डोज़ की मांग आई है। वैश्विक बाजार हेतु वैक्सीन आपूर्ति के लिए आरडीआईएफ के अंतर्राष्ट्रीय साझीदार भारत, ब्राजील, चीन, दक्षिण कोरिया व अन्य देशों में विनिर्माण करेंगे। ह्यूमन अडेनोवायरस पर आधारित वैक्सीनों की सुरक्षा की पुष्टि 75 से ज्यादा प्रकाशनों में हो चुकी है तथा बीते दो दशकों में 250 से अधिक क्लीनिकल ट्रायल किए जा चुके हैं। टीकों के विकास में ह्यूमन अडेनोवायरसों के इस्तेमाल का इतिहास 1953 से शुरु होता है। अडेनोवायरस वेक्टर आम फ्लू के आनुवांशिक रूप से संशोधित वायरस हैं जो मानव शरीर में पुनःउत्पादित किए जा सकते हैं। जब स्पुतनिक वी वैक्सीन इस्तेमाल हुई तब कोरोनावायरस ने शरीर में प्रवेश नहीं किया क्योंकि वैक्सीन में उसके बाहरी प्रोटीन कोट (तथाकथित स्पाइक्स जो इसका ताज बनाते हैं) के हिस्से के बारे में आनुवांशिक जानकारी थी। टीकाकरण के फलस्वरूप संक्रमित होने की संभावना पूरी तरह समाप्त हो जाती है और शरीर का इम्यून रिस्पाँस भी स्थिर होता है।
रशियन डायरेक्ट इन्वैस्टमेंट फंड के सीईओ किरिल दिमित्रीव ने कहा, ’’आरडीआईएफ और हेटरो के बीच हुए अनुबंध की घोषणा करते हुए हम बहुत खुश हैं। इससे सुरक्षित व अत्यंत प्रभावी स्पुतनिक वी वैक्सीन के भारत में उत्पादन का मार्ग प्रशस्त होगा। वैक्सीन के अंतरिम क्लीनिकल ट्रायल के परिणाम पहली डोज़ के बाद 42वें दिन में 95 प्रतिशत प्रभावकारिता दर्शाते हैं। मुझे विश्वास है कि हर वह देश जो अपने लोगों को कोरोनावायरस से बचाना चाहता है वह स्पुतनिक वी को अपने राष्ट्रीय वैक्सीन पोर्टफोलियो का अभिन्न अंग बनाएगा। हेटरो के साथ सहभागिता से हम उत्पादन क्षमता बढ़ा सकेंगे और भारत के लोगों को महामारी के इस चुनौतीपूर्ण दौर में एक सक्षम समाधान दे पाएंगे।’’
हेटरो लैब्स लिमिटेड के डायरेक्टर-इंटरनैशनल मार्केटिंग बी. मुरली कृष्णा रेड्डी ने कहा, ’’कोविड-19 के उपचार हेतु सबसे अधिक प्रत्याशित वैक्सीन स्पुतनिक वी के उत्पादन हेतु आरडीआईएफ के विनिर्माण सहयोगी बनने की हमें बहुत खुशी है। यदि भारत में ही वैक्सीन बनाई जाएगी तो मरीजों तक जल्दी पहुंचेगी। हमारा यह गठबंधन कोविड-19 से लड़ाई में हमारी प्रतिबद्धता को एक कदम और आगे बढ़ाता है और साथ ही हमारे माननीय प्रधानमंत्री के ’मेक इन इंडिया’ के ध्येय की पूर्ति में भी हम योगदान दे रहे हैं।’’