नई दिल्ली : 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र ने इस बार विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम ‘सबको स्वास्थ्य बीमा’ रखी है। दुनिया की एक अरब से अधिक आबादी के पास कोई स्वास्थ्य बीमा न होने का अनुमान है। महंगे इलाज के चलते आर्थिक पक्ष पर टूटने वाले एक तिहाई से अधिक भारत में रहते हैं। अच्छी बात यह है कुछ डॉक्टर गरीबों का मुफ्त इलाज कर उनके हमदर्द बन रहे हैं। 6.3 करोड़ भारतीय हर वर्ष इलाज का खर्च उठाते उठाते गरीबी के गर्त में चले जाते हैं
भारतीय सबसे ज्यादा प्रभावित
2011-2012 में 18 प्रतिशत भारतीय घरों ने बीमारियों के चलते आर्थिक तंगी का सामना किया। वहीं घर की कुल मासिक आय का 6.9 प्रतिशत हिस्सा बीमारियों के उपचार में खर्च होता है। वहीं शहरी क्षेत्र में इसका आकड़ा 5.5 प्रतिशत है। 72 प्रतिशत रकम दवाइयां खरीदने में जाती है।
आँकड़े परेशान करते हैं
भारत में पैदा होने वाले हर 1000 शिशु में से 34 की मौत साल भर के भीतर हो जाती है, 39 बच्चे पांच साल से कम उम्र में दम तोड़ देते हैं। हर 1000 में से 174 भारतीय महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है। 2020 तक मातृ मृत्यु दर 100 पर लाने का लक्ष्य है।
बड़े रोग का बढ़ता प्रकोप
2016 में 61.8 प्रतिशत अनुमानित मौतें भारत में एनसीडी के कारण हुई। वहीं 1990 के दशक में यह आकड़ा 37.9 प्रतिशत था। जिमें केरल और गोवा में एनसीडी का प्रकोप सबसे ज्यादा था।
89.5 प्रतिशत बोझ सीधे मरीज की जेब पर
स्वास्थ्य बीमा योजनाओं से अस्पतालों तक मरीज की पहुंच तो बढ़ी है, लेकिन बीमारियों से पड़ने वाला आर्थिक बोझ नहीं घटा है। एक अनुमान के मुताबिक 89.5} औसतन कुल निजी इलाज का खर्च आज भी सीधे तौर पर भारतीय मरीजों की जेब से जाता है। बीमित राशि इलाज के खर्च के अनुरूप न होना और अस्पतालों में शुल्क तय न होना मुख्य कारण है। स्वास्थ्य बीमा योजनाओं का लाभ सिर्फ भर्ती होने पर मिलना भी बड़ी वजह
देश में गरीबों को मुफ्त स्वास्थ्य बीमा
फरवरी 2018 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना शुरू की, जिसके तहत 10 करोड़ गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये का सालाना स्वास्थ्य बीमा मिलेगा।