प्रेम और प्रेम विवाह अपराध नहीं है, इस देश की संस्कृति है

अपराजिता फीचर डेस्क

ऑनर किलिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार गत 5 फरवरी को एक बार फिर सख्त  कदम उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायतों द्वारा कानून अपने हाथ में लेने की वजह से खरी खोटी सुनाई है। कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि वह जोड़े को इन खाप कार्रवाईयों से बचाए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा ने मामले की सुनवाई के दौरान साफ-साफ कहा कि अगर कोई दो वयस्‍क शादी करते हैं, तो कोई भी तीसरा व्यक्ति दखल नहीं दे सकता, चाहे वह परिवार वाला हो या समाज या फिर और कोई।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह एक उच्चस्तरीय समिति बनाने पर विचार कर रहा है जिसके तहत अंतरजातीय और अंतरधर्म में शादी करने वाले जोड़े की सुरक्षा सुनिश्चित किया जा सकेगा। साथ ही यह समिति जोड़े को खाप पंचायतों, अभिभावकों और रिश्तेदारों की सभी तरह की हिंसा से सुरक्षित रखने का काम करेगा। ये इस देश का दुर्भाग्य है कि अब अदालतें समाज के वहशीपने ये युवा पीढ़ी को बचाने के लिए उतरने पर मजबूर हैं। विचलित कर देने वाले आंकड़े बताते हैं कि 2014 से 2015 के दरमियान ‘ऑनर किलिंग’ में 800 फीसद का इजाफा हुआ है और आप कोई भी अखबार खोलें, ऐसा लगता है कि उसमें अंतर-सामुदायिक विवाह पर हत्या या हिंसा की एक नई रिपोर्ट जरूर देखने को मिल जाएगी।

प्रेम करना इस देश में गुनाह माना जाता है…और झूठी प्रतिष्ठा का हवाला देकर युवाओं को कभी अलग कर देना या फिर मार डालने को यहाँ भारतीय परम्परा माना जाता है। हाल ही में अंकित – सलीमा की प्रेम कहानी को जिस तरह से नोंच डाला गया और वह भी धर्म के नाम पर….वह वीभत्स ही था। इस कांड से मुझे रिजवानुर और प्रियंका की याद आ गयी। मेरा मानना है कि दो दिलों को अलग करने से बड़ा कोई पाप नहीं है। ये आश्चर्य है न कि लोग परम्परा की बात करते हैं, देवताओं की बात करते हैं मगर इनके शब्दकोष में वह शब्द ही नहीं है जो मनुष्य को मनुष्य बनाता है….और वह शब्द है प्रेम….इस देश में गंधर्व विवाह प्रेम विवाह का ही मूल रूप है और ऐसे कई प्रेम विवाह हुए हैं। विवाह की आधारशिला भले ही राज्य का विस्तार हो या राजनीति की माँग मगर विजातीय विवाह भी इसे देश में आदिकाल से होते आ रहे हैं। दरअसल, बात जब पुराणों की हो रही है तो हम आपको उदाहरण भी वहीं से देंगे और तथ्य है कि इस देश में विजातीय या यूँ कहें कि अंतरजातीय विवाह हमेशा से होते रहे हैं और स्वयंबर की परम्परा बताती है कि आपने परम्पराओं को अपने स्वार्थ के लिए किस कदर चालाकी से तोड़ा – मरोड़ा है। शांतनु याद हैं न….भरतवंशी….हस्तिनापुर के महाराजा जिनका विवाह पहले गंगा से हुआ था और बाद में सत्यवती से उन्होंने विवाह किया जो कि एक मत्स्यकन्या थी….। कभी ब्राह्मण कन्याओं से तो कभी तथाकथित निम्न कुल में भी विवाह करने से देवताओं को हिचक नहीं हुई। कृष्ण और जाम्बवती का विवाह इसका  उदाहरण है….जाम्बवती तो जाम्बवान की पुत्री थी जो रीछ थे..। कृष्ण वो थे जिन्होंने प्रेम को विविध रूपों में प्रतिष्ठित किया और महिलाओं का सम्मान किया….आपको उनकी रासलीला ही दिखती है तो ये आपका दृष्टिदोष हो सकता है। रुक्मिणी का पत्र पाकर उन्होंने रुक्मिणी की इच्छा का मान रखा और सुभद्रा और अर्जुन के विवाह के पीछे भी उनकी बड़ी भूमिका है। अब कृष्ण को भगवान बनाकर उनकी पूजा करने वाले उनकी इस राह पर क्यों नहीं चलते….ये तो वे ही जानें…। क्या प्रेम की पूजा सिर्फ किताबों और फिल्मों में ही होनी चाहिए….आप उसे खुद क्यों नहीं स्वीकार कर पाते? पांडु पुत्र भीम ने हिडिम्बा नामक राक्षसी से विवाह किया तो अर्जुन ने नागकन्या उलूपी से….क्या ये विजातीय विवाह नहीं है? शिवरात्रि आप खूब मनाते हैं तो क्या शिव – पार्वती की जोड़ी अंतरजातीय विवाह का उदाहरण नहीं है। ये वह देश है जिसने पूरी दुनिया को शून्य ही नहीं दिया बल्कि कामसूत्र भी दिया…..और उसके ज्वलंत उदाहरण हैं। ये वह देश हैं जहाँ राधा –कृष्ण के आदर्श को खोजा तो जाता है मगर जब आपके बच्चे इस राह पर चलना चाहते हैं तो आप सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आते हैं। उस समाज की बात करते हैं जिसका आपके बच्चों की जिन्दगी से कोई रिश्ता ही नहीं है। एक बात और ध्यान देने वाली है…इस तरह के मामलों में जान लड़कों की भी जाती है और कई बार तो दोनों को मार डाला जाता है।

अग्निमित्र (149-141 ई. पू.) शुंग वंश का दूसरा सम्राट था। वह शुंग वंश के संस्थापक सेनापति पुष्यमित्र शुंग का पुत्र था। पुष्यमित्र के पश्चात् 149 ई. पू. में अग्निमित्र शुंग राजसिंहासन पर बैठा। पुष्यमित्र के राजत्वकाल में ही वह विदिशा का ‘गोप्ता’ बनाया गया था और वहाँ के शासन का सारा कार्य यहीं से देखता था। आधुनिक समय में विदिशा को भिलसा कहा जाता है। ऐतिहासिक तथ्य अग्निमित्र के विषय में जो कुछ ऐतिहासिक तथ्य सामने आये हैं, उनका आधार पुराण तथा कालीदास की सुप्रसिद्ध रचना ‘मालविकाग्निमित्र’ और उत्तरी पंचाल (रुहेलखंड) तथा उत्तर कौशल आदि से प्राप्त मुद्राएँ हैं।

‘मालविकाग्निमित्र’ से पता चलता है कि, विदर्भ की राजकुमारी ‘मालविका’ से अग्निमित्र ने विवाह किया था। यह उसकी तीसरी पत्नी थी। उसकी पहली दो पत्नियाँ ‘धारिणी’ और ‘इरावती’ थीं। इस नाटक से यवन शासकों के साथ एक युद्ध का भी पता चलता है, जिसका नायकत्व अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने किया था। राज्यकाल पुराणों में अग्निमित्र का राज्यकाल आठ वर्ष दिया हुआ है।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने हेलेना से विवाह किया था और यही हेलेना बिन्दुसार की माता बनीं। इसके अतिरिक्त कच – देवयानी, नल – दमयंती, पृथ्वीराज – संयोगिता से लेकर लैला -मजनूं, हीर – रांझा, सोहनी -महिवाल तक की कहानियाँ इसी भारत की देन हैं। आज भी सचिन – अंजलि, सारा – सचिन पायलट, गौरी – शाहरुख, राजीव – सोनिया जैसे तमाम उदाहरण हमारे सामने हैं तो उसे अपनाने में अहंकार को ठेस क्यों पहुँचनी चाहिए। ऐसे अनगिनत उदाहरण हमारे इतिहास में बिखरे पड़े हैं। हमने यहाँ ऐसे उदाहरण दिये हैं जो हमारे देश में प्राचीन समय से बिखरे हुए अंतरजातीय और विजातीय विवाह की परम्परा को सामने लाने वाले हैं तो अगली बार प्रेम को भारतीय संस्कृति और परम्परा से काटकर देखने से पहले साहित्य और इतिहास पर नजर जरूर डालिये और उसके बाद सोचिए कि आप प्रेम को अपराध मानकर जब हत्या करते हैं तो क्या वह आपकी संस्कृति है या आपकी हठधर्मिता क्योंकि सच तो यह है कि हमारी संस्कृति ने हमें प्रेम करना ही सिखाया है और यह सामाजिक होते हुए भी व्यक्तिगत मसला है। जब यह व्यक्तिगत मसला है तो क्या समाज के नाम पर युवाओं की हत्या करना क्या पाप नहीं है? खुद को टटोलिए और भारतीय हैं तो भारत की उदार परम्पराओं को आत्मसात कर उस राह पर चलिए।

 

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