अब बारी है पुरुष विमर्श की

रेखा श्रीवास्तव

जी हाँ। बहुत हो चुका स्त्री विमर्श! स्त्री विमर्श! स्त्री विमर्श! अब समय आ गया है पुरुष विमर्श का। इसमें कोई बुराई नहीं। हमें पुरुषों के बारे में बातें करनी चाहिए। उनके बारे में विमर्श करना चाहिए। निश्चित रूप से मानिये इसमें आप पुरुष का कोई अपमान नहीं बल्कि भला ही होगा। गौर कीजिए। राजा-रानी के समय को याद कीजिए। रानियों के लिए एक राजा होता था लेकिन राजा के लिए कई रानियाँ होती थी। मर्यादा पुरुषोत्तम के पिता यानी राजा दशरथ की भी तीन रानियाँ थीं। कहानी-किस्से में भी कई रानियों की भरमार है। पर कभी भी नहीं सुना होगा कि एक रानी के दो-तीन राजा रहा होंगे। जी हाँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। मैं यही आपको बताना चाहती हूँ। राजा-रानी की कहानी में भी नहीं, पौराणिक कथाओं में भी नहीं। कहीं नहीं आपको मिलेगा। द्रोपदी के जरूर पाँच पति थे, पर वो भी उसकी इच्छा से नहीं। हाँ, अगर किसी जगह किसी एक लड़की या औरत का एक से ज्यादा लड़कों से संबंध है, तो उसे चरित्रहीन कह दिया जाता है। मेरी समझ में नहीं आता कि यह कैसे हुआ? पुरुष तो चाहे कितनी शादियाँ कर सकता था। उसके कितने भी संबंध हो सकते हैं। इसमें तो चरित्र का मामला नहीं पर जब यह बात लड़कियों के लिए होता है, तो वह गलत है। पहले के समय में तो खुद बड़ी रानी राजा को खुशी –खुशी छोटी रानी के पास भेज देती थी। पर ऐसा लड़कियों के साथ नहीं हो सकता। छि: छि: यह तो सपने में भी नहीं सोचा सकता।  यह तो  पाप है। समाज यही कहने लगता है।

आज चारों  तरफ बलात्कार की खबरें आम बात हो गयी है। और इससे भी ज्यादा आम बात हो गई है ऐसी घटनाओं की संख्याओं का बढ़ना। और इसमें हम बड़े बेधड़क पुरुष को दोषी बता देते हैं। पर मैं कहना चाहती हूँ कि पुरुष तो दोषी है, नि:संदेह पर उससे ज्यादा दोषी है हमारा समाज जिसने पुरुष को पुरुष बनाया। पुरुष यानी जो कंट्रोल न कर सके। पुरुष यानी जिसे जब जो चाहिए, उसे तभी वह चाहिए। पुरुष यानी इच्छा पूरी करने का लाइसेंस। जन्म लेते ही हम उसे कहने लगते हैं कि इसका क्या यह तो लड़का है। घर में सबसे पहले इसका ख्याल रखो, क्योंकि यह लड़का है। स्कूल से एक साथ घर लौटने पर हम लड़के को ही पहले खाना खाने के लिए कहते हैं। महिला अगर दिन भर बाहर है, तो वह पेशाब रोके रख सकती है, लेकिन पुरुष वर्ग कहीं भी पेशाब के लिए खड़ा हो जाता है क्योंकि उसे बर्दाश्त करना नहीं सिखाया गया। उसे मालूम ही नहीं है कि बर्दाश्त क्या चीज है। छेड़ने का तो लाइसेंस भी पुरुषों को ही है इसलिए लड़के बचपन से उसी मानसिकता से बडे होते हैं। इसमें उनकी कोई गलती नहीं। यह तो हमारे समाज की गलती है। परिवार की गलती है लेकिन सजा तो सबको भुगतना पड़ता है। कुछ पुरुष वर्ग चेत जाते हैं, और अपने ज्ञान और बुद्धि से अपने परिवार और समाज की इस सोच को खुद पर हावी नहीं होने देते पर कुछ तो जैसे इस सब को लेकर ही बड़े होते हैं। उन्हें केवल हासिल करने आता है। प्रेम से नहीं तो जबरदस्ती। इस पाने के चक्कर में वह कितना जघन्य अपराध तक कर बैठते हैं, उन्हें पता ही नहीं चलता है। हम महिलाएं भी एक समय कई चीजों में पीछे थे, काफी पीछे थे। फिर हमने पढ़ा, अपनी पहचान बनाई। अपनी कमियों को दूर कर खुद को अच्छा बनाने की कोशिश की। वैसे ही अब बारी पुरुष की है। पुरुष वर्ग को भी अब जागना चाहिए। अपने अंदर सोयी हुई इंसानियत को जगा कर महिला, औरत और बच्ची को अपने हवस के शिकार से मुक्त करवाना चाहिए। लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी है अपने अंदर के सोये हुए इंसानियत को जगाना। हो सकता है कि कुछ प्रतिशत पुरुष इसकी कोशिश करते हो, उन्हें निश्चित ही कामयाबी मिलेगी। पर वैसे पुरुष जो आज तक अपनी इस कमी को समझ ही नहीं पाये, उन्हें अपनी इस कमजोरी को समझने में अपमानित नहीं समझना चाहिए, बल्कि पूर्ण विश्वास के साथ कमजोरी को ठीक करने में जुट जाना चाहिए। लड़कियों का जीवन तो पुरुष के विभिन्न रूपों से घिरा हुआ है। उसमें प्यार, दोस्ती, संवेदना होती है। बड़े होने पर अचानक पुरुष के इस रूप को देख अच्छा नहीं लगता। हम सोचने पर मजबूर होते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है। एक जगह पहुँचकर हम अलग क्यों हो जाते हैं। इंसान क्यों नहीं रह पाते हैं। अगर वास्तव में इस पहल पर कोशिश होगी, तो हमें एक अच्छा भारत देश मिलेगा, जहाँ सही मायने में महिला की पूजा होगी और वो भी पुरुष के हाथों।

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