कोलकाता : धर्मवीर भारती की कालजयी कृति ‘अंधा युग’ पर चर्चा करते हुए बताया गया कि यह बहुचर्चित काव्य-नाटक आणविक मिसाइलों की होड़, सांप्रदायिक हिंसा और सत्ता लोलुपता का अनावरण करता है। उसकी जितनी ऐतिहासिक महत्ता है उससे अधिक वर्तमान अर्थवत्ता है। ‘धर्मयुग’ के यशस्वी संपादक धर्मवीर भारती ने इसमें बढ़ती अनास्था और मूल्यहीनता के दौर में मूल्य आधारित आचरण का पक्ष लिया है।
भारतीय भाषा परिषद के ‘कालजयी कृति विमर्श’ की पहली कड़ी के रूप में महाभारत पर आधारित इस काव्य-नाटक पर चर्चा करते हुए मुजफ्फरपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. रेवती रमण ने कहा कि ‘अंधायुग’ आधुनिक युग का सत्ता विमर्श है जिसमें प्रहरियों का संवाद लोकतंत्र के लिए स्पेस बनाता है। इस नाटक में गांधारी ने कृष्ण को मृत्यु का शाप दिया और अश्वत्थामा, युयुत्सु, संजय जैसे चरित्रों ने उनकी प्रभुता पर संदेह व्यक्त किया है। फिर भी कृष्ण ने किस तरह दूसरों के पाप को अपने माथे ले लिया और उन्होंने विध्वंस के समानांतर सृजन में अपनी ज्योति का आश्वासन दिया यह नाटककार ने दिखाया है। जालान गर्ल्स कॉलेज के प्रो. विवेक सिंह ने कहा कि महाभारत में किसी को भी स्याह और सफेद की तरह देखा नहीं जा सकता। उत्तर बंग विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. मनीषा झा ने कहा कि अंधायुग में यह संदेश है कि संस्कृति की रक्षा करके मनुष्य अपने भीतर मौजूद पशुता और विकृति से कैसे ऊपर उठे।
अध्यक्षीय वक्तव्य रखते हुए डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि महाभारत में कौरव और पांडव दोनों ही न्याय और नैतिकता का पक्ष छोड़कर हिंसा का आश्रय लेते हैं। युधिष्ठिर के अर्धसत्य से ही विकृत मानसिकता वाले अश्वत्थामा का जन्म होता है। आज जब संपूर्ण राष्ट्र धृतराष्ट्र जैसा हो गया है, महाभारत के समय की तरह आज के समय को भी ‘पोस्ट ट्रुथ’ का समय कहा जा सकता है और हिंसा की जगह कृष्ण की वंशी की जरूरत महसूस हो सकती है।
अतिथियों का स्वागत करते हुए डॉ. कुसुम खेमानी ने युवाओं और विद्यार्थियों का आहवान किया और कहा कि परिषद द्वारा संचालित कौशल विकास केंद्र का लाभ उठाते हुए हिंदी भाषा ज्ञान और अभिव्यक्ति क्षमता का विकास करें। पीयूषकांत राय ने संगोष्ठी का संचालन करते हुए कहा कि उन कालजयी कृतियों पर चर्चा जरूरी है जिन्हें भुला दिया गया है। परिषद की मंत्री बिमला पोद्दार ने धन्यवाद दिया