सुषमा त्रिपाठी
छठ पूजा अब ग्लोबल हो रही है….दूर विदेशों तक जा रही है। गंगा मइया के घाट न सही….ताल – पोखर न सही….मगर जो जहाँ है…वहीं से छठी मइया को पुकार रहा है। छठ पूजा हर एक बिहारी का मान है…जो बिहार में हैं….उनके लिए तो बंगाल की दुर्गापूजा वाला उल् लास ही है मगर जो वहाँ नहीं हैं….उनके लिए छठ पूजा कसक है और इस कसक को वे उत्सव बना रहे हैं….बिहारी के दिल से आप बिहार को नहीं निकाल सकते…फ्लैट और अपार्टमेंट की बंद संस्कृति में छठ पूजा ताजा हवा के झोंके की तरह है जो सांस लेने का मौका देती है…प्रकृति के पास ले जाती है…अपने अंह के आसमान से उतर कर थोड़ी देर के लिए हम वो बनते हैं….जो हम वाकई है। छठ पूजा जमीन से जुड़ने का एहसास है जो हमें मजबूत और आस्थावान बनाता है…प्रदूषण के बोझ से हाँफते शहर में सूर्य की आराधना…उसकी उर्जा से खुद को भरना एक ऑक्सीजन की तरह है। छठ की छुट्टी पाने के लिए महीनों से तैयारी, बॉस को समझाना, ओवरटाइम करना और ठसाठस भरी ट्रेन में जाना….ये बताता हैै कि छठ बिहारियों के लिए क्या महत्व रखता है। ऐसा ही एक वीडियो इस बार वायरल हुआ है जिसमें छठ की छुट्टी न मिलने पर एक युवक बॉस को छठ पूजा के महत्व के बारे में बताता है और अंत में छुट्टी मंजूर हो जाती है।
दरअसल, छठ स्त्रियाँ मुख्य रूप से करती हैं मगर पुरुष भी शामिल होते हैं और वे छठ पूजा करते भी हैं…बिहारियों का ऐसा त्योहार जो पूरे परिवार को बाँधता है…परदेस में बैठे बेटों को वापस कुछ दिन के लिए घर लाता है….माओं के चेहरे की मुस्कान देता है…छठ पूजा सिर्फ बेटों के लिए नहीं होती…बेटियों के लिए भी होती है। देखने में अजीब लग सकता है मगर भुईपरी छठ की बाध्यता नहीं है बल्कि इसे लोग अपनी इच्छा से करते हैं और यह मन्नत पूरी होने पर की जाती है मगर जैसा कि कवियित्री रश्मि भारद्वाज ने फेसबुक पर अपनी पोस्ट में लिखा कि समय के साथ कुछ बदलाव होने चाहिए जिससे इस पर्व में भी समानता का सूर्य उगे…तो वह बात सही है…छठ पूजा अब किसी एक राज्य का उत्सव नहीं है…बल्कि वह राष्ट्रीय और वैश्विक रूप धारण कर रही है और यह प्रवासी बिहारियों के कारण हुआ है जिन्होंने अपनी कर्मस्थली को ही बिहारमय बना दिया है। इसी तरह का एक वीडियो पिछले साल छठ पूजा पर आया था। उस गाने में मेट्रो में नौकरी करता एक लड़का छठ पर बहन का मैसेज देख, न जाते-जाते घर निकल जाता है। घाट पर बेटे को अचानक पाकर माँ की खुशी अनायास ही आपको भावुक कर जाती है।
हम शारदा सिन्हा के बारे में जानते हैं…उनके बगैर तो बिहार की लोकगीत परम्परा का इतिहास ही लिखना असम्भव है..भोजपुरी को बिहार से बाहर ले जाने और समसामायिक बनाने का प्रयास शारदा सिन्हा का ही है। जिस तरह होली और दिवाली किसी एक राज्य के नहीं हैं, उसी प्रकार छठ भी अब सिर्फ बिहार का नहीं रहा…वह पूरे देश का त्योहार बनता जा रहा है। मल्टीनेशनल कम्पनियों में काम कर रहे बिहारी बिहार और छठ की खुशबू हर जगह फैला रहे हैं और सोशल मीडिया के प्रसार ने इस अभियान को और तेज किया है। कुछ सालों से क्रांति प्रकाश झा के प्रयास से यह मुहिम और तेज हो रही है…छठ पर उनके वीडियो एक नयी परम्परा रच रहे हैं और पूरे देश से इसको जोड़ रहे हैं। पिछले साल उनका एक वीडियो आया था जिसमें शारदा सिन्हा ने आवाज दी थी। इस वीडियो में विदेश में रह रहे एक शिक्षित और नौकरी करने वाले दम्पति को छठ करते हुए दिखाया गया है। वीडियो में पत्नी किसी और राज्य की है और पति बिहार का है।
https://youtu.be/Ba7hfsXDweM
माँ के फोन में छठ न कर पाने की कसक, पति का यादों को ताजा कर खुश होना और फिर उदासी…उस पर पत्नी का उधेड़बुन में पड़ना और दृढ़ निश्चय से परम्परा को थाम लेना..यह परम्परा को आधुनिकता से जोड़ देता है। वीडियो बेहद लोकप्रिय हुआ था। ये वीडियो उन लोगों के लिए भी एक सन्देश है जो ये सोचते हैं, ‘अरे छठ तो बिहार का उत्सव है। छठ सामूहिकता का उत्सव है और प्रकृति से जुड़ने का उत्सव है…कृतज्ञता ज्ञापित करने का उत्सव है…जुड़ना और जोड़ना ही जीवन की धारा को गति देता है।
क्रांति प्रकाश झा का इस साल भी नया वीडियो आया है जिसमें बिहार की युवती को दिखाया गया है। उसका विवाह पंजाबी परिवार में हुआ है। वह माँ बनने वाली है और उसके लिए पूरा परिवार छठ करता है जिसमें पति, सास और श्वसुर सब शामिल हैं…ऐसे में यह वीडियो सामूहिकता के साथ एकता का संदेश देता है। इसमें सबसे अच्छा दृश्य तब का है जब पति पत्नी को कहता है कि घर के परम्परा खत्म न होई और व्रत भी वही करता है पूरे परिवार के साथ। एक दूसरे की संस्कृति को अपनाना और उसका सम्मान करना ही तो हमें जोड़ेगा। कल्पना पटवारी मूल रूप से असम की गायिका हैं जिनका विवाह एक मुस्लिम परिवार में हुआ है। उनकी आवाज की मिठास आपको एक दूसरी ही दुनिया में ले जाती है। वह भिखारी ठाकुर पर भी काम कर रही हैं। उनके ताजा वीडियो में एक मुस्लिम परिवार को पूरी श्रद्धा के साथ यह पर्व करते दिखाया गया है। यह पर्व अब राष्ट्रीय एकता का प्रतीक भी बनता जा रहा है।
दरअसल, अश्लील गीतों ने भोजपुर की संस्कृति को ऐसी चोट पहुँचाई है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती है मगर भोजपुरी में ऐसे तमाम गीत हैं जो रूढ़ियों को तोड़ने और परम्परा की बात करते हैं…सस्ती लोकप्रियता पाने वालों ने इस पर ध्यान नहीं दिया मगर इसका तोड़ हम बिहारियों को निकालना होगा जो इन गीतों के कारण बिहार और भोजपुरी के नाम पर तड़प उठते हैं। क्रांति प्रकाश ने इसे एक ग्लैमर दिया है..बॉलीवुड को जोड़ा है..ऐसी कोशिश हम भी कर सकते हैं। भोजपुरी की रचनात्मकता को खोजिए…ऐसे गीत लिखिए जो भोजपुरी समाज में जागरुकता की हवा को आग दें…यह कोई और नहीं करेगा…हमको और आपको करना होगा।