साहित्यिकी द्वारा आयोजित संगोष्ठी में संस्था द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पत्रिका के ताजा अंक “साझा करते हुए” पर चर्चा हुई। अतिथियों का स्वागत करते हुए गीता दूबे ने संस्था की गतिविधियों पर प्रकाश डाला।
प्रमुख वक्ता बाबूलाल शर्मा ने कहा कि आज का दौर हस्तलिखित पत्रिकाओं का नहीं है, इसके बावजूद संस्था का यह साहस और प्रयास प्रशंसनीय है। रचनाओं के मूल में एक आदर्शवादी दृष्टि काम कर रही है जो अंक को विशेष सांस्कृतिक पहचान देती है। स्त्री विमर्श का स्वर इन रचनाओं में मुखरित होता है और पत्रिका में तकरीबन सभी विधाओं का समावेश है। उन्होंने सुझाव दिया कि संस्था को साहित्यिक कार्यशालाओं का आयोजन करना चाहिए ताकि रचनाओं में और परिपक्वता आए। अपने संपादकीय वक्तव्य में सुषमा हंस ने अपने संपादकीय अनुभवों को साझा किया। अध्यक्षीय वक्तव्य में किरण सिपानी ने कहा कि साहित्यिकी संस्था अपनी सीमाओं में अपने दायित्वों का निर्वाह करने की कोशिश कर रही है ताकि प्रतिरोध का स्वर मुखरित हो और समाज में बदलाव आ सके। स्त्रियों को जागरूक करना और उनकी रचनात्मकता को उभारना हमारा मुख्य उद्देश्य है। संगोष्ठी का संचालन गीता दूबे और धन्यवाद ज्ञापन आशा जायसवाल ने किया।