वो तस्वीर ही क्या जिसमें रंग न हो ! अच्छा कभी आपने कल्पना की है कि बगैर रंगों का इस्तेमाल किए भी तस्वीर बन सकती है और वह रंगों से भी भरी हो। यकीन नहीं होता मगर ये मुमकिन है और इसे मुमकिन किया है कोलाज चित्रकार तपन साहा ने।
हुगली में बंडेल के गान्धीनगर से कोलकाता गए। इस कला की बारीकियों को समझा। समझा कि किस तरह अखबारों, सिनेमा के पोस्टरों और पत्रिकाओं की कतरनों से एक तस्वीर जीवंत हो सकती है। तपन की कला से प्रभावित होकर प्रख्यात चित्रकार रामानन्द बंद्योपाध्याय ने उनका उत्साह बढ़ाया।
तब 90 का दशक था और तपन का कलात्मक सफर टेराकोटा के जेवर बनाने से शुरू हुआ। यह आसान नहीं था, मिट्टी को ढोकर लाना, उसे गूँथना, कलात्मक जेवर तैयार करना और फिर उसे बाजार तक पहुँचाना मगर तपन ने हार नहीं मानी।
मेहनत का फल मिला और तपन की कला मशहूर हो चली। 90 के दशक के अंतिम वर्षों में रंगीन कागज, सड़कों पर पड़े फिल्मों के पोस्टर और इन सारे पोस्टरों से बनने लगी खूबसूरत तस्वीरें, खूबसूरत चेहरे….उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, सत्यजीत राय, लता मंगेशकर, सुचित्रा सेन, रामकिंकर बेज, अमर्त्य सेन, से लेकर मनोरम प्राकृतिक दृश्य।
हर बार तपन ने प्रमाणित किया तस्वीरों में रंग का इस्तेमाल नहीं किया गया मगर इन तस्वीरों में बगैर इस्तेमाल किए ही कला के अनूठे रंग थे। हाल में इन तपन ने अपने सँग्रह की 50 तस्वीरों को लेकर एक तीन दिवसीय प्रदर्शनी आयोजित की। प्रदर्शनी का उद्घाटन मनसिज मजूमदार ने किया। प्रधान अतिथि के रूप में प्रसिद्ध चित्रकार वसीम कपूर उपस्थित थे।
Salute to Shri Tapan Saha
Wow… Really Amazing Art….