घर में वो गीता, कुरान रखता है, जुबां पर राधे-राधे नाम रखता है
गफ्फार तो सांवरे का दीवाना है, वो इंसानियत से काम रखता है॥
सियासत है, जिसने हिंदू-मुस्लिम बीच दीवार खड़ी की। धर्म के ठेकेदारों ने कभी इस खाई को पटने नहीं दिया। ऐसे लोगों को आगरा की टेढ़ी बगिया के अब्दुल गफ्फार आइना दिखाते हैं।
43 साल के गफ्फार का ताल्लुकात भले ही उनका इस्लाम से है, लेकिन सांवरे से प्रीत की डोर ऐसी बंधी कि मुख से श्रीराधे-श्रीराधे ही निकलता। अब्दुल गफ्फार वक्त मिलते ही श्रीमद् भागवत कथा, गीता, रामचरित मानस का पाठ करते हैं। उन्होंने इस्लाम से नाता नहीं तोड़ा है, वो पांचों वक्त के नमाजी हैं।
गफ्फार कहते हैं कि सात साल पहले मथुरा में एक हिंदू मित्र की शादी में गए थे। वहां दोस्तों ने बांकेबिहारी के दर्शन की बात कही। बोले, वह भी चलेंगे। खुशकिस्मत देखिए, दोस्त सभी बारात के साथ लौट लिए, लेकिन वो नहीं आए। सोच लिया, दर्शन करके ही जाऊंगा। दोपहर मंदिर पहुंचे तो पट बंद थे, पुजारी से पता चला कि शाम के साढे़ चार बजे दर्शन होंगे।
इस पर वे मंदिर के बाहर ही बैठ गए। पट खुले और कान्हा की सांवरी मूरत के दर्शन किए। बोले, जैसे ही कान्हा के दर्शन हुए उनकी मूरत मन में बस गई। हृदय में एक ज्योति से जलने लगी। घर लौटा तो रात-दिन कान्हा की मूरत मनमस्तिष्क में आने लगी। फिर क्या, हिंदू धर्म, ग्रंथ और कान्हा को समझने की जिज्ञासा बढ़ी और अब पूरी तरह से सांवरे से डोर बंध गई है।
गफ्फार का हर साल गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने जाते हैं। अभी तक छह बार ऐसा कर चुके हैं। 84 कोस की परिक्रमा भी वे तीन बार कर चुके हैं। कहते हैं कि भी हिंदू मित्रमंडली के साथ तो कभी अकेले ही मथुरा के लिए रवाना हो जाते हैं। आसपास भागवत होने पर वो सुनने का मौका नहीं छोड़ते।
कान्हा की भक्ति में रमे गफ्फार पिछले आठ साल से अपने यहां भागवत कथा, सत्संग कराते हैं। खास बात इसके लिए वह किसी से चंदे के तौर पर रुपये नहीं लेते। सारे व्यसन से दूर गफ्फार पूरी तरह से सात्विक जीवन बिताते हैं। उनके पास हिंदू धर्म से जुड़ी हुई 900 से अधिक ग्रंथ, पुस्तकें, साहित्य और पत्रिकाएं हैं।
ऐसा नहीं कि गफ्फार को विरोध नहीं झेलना पड़ा। नाते-रिश्तेदारों तक ने उलाहने दिए। धार्मिक गुरुओं ने भी उनका विरोध कर इसे इस्लाम के खिलाफ बताया। तीन बच्चे और पत्नी ने भी विरोध किया, पर गफ्फार की भक्ति में कोई कमी नहीं आई। उनकी भक्ति के आगे अब तो परिवार-नाते रिश्तेदारों का विरोध भी हल्का पड़ने लगा है।