भारत! एक ऐसा देश जहाँ एक तरफ दुनिया के सबसे अमीर लोग रहते है और दूसरी तरफ हर साल हज़ारो लोग भुखमरी के कारण मर जाते है। इसी देश की एक और विडम्बना ये है कि कई लोग दवाई के अभाव में पीड़ा सहते रहते है और कई उन्ही दवाईयो को बिना इस्तेमाल किये ही फेंक देते है।
किंतु हमारे इसी देश की राजधानी दिल्ली में एक शख्स ऐसे है जिन्होंने इस समस्या का एक बहुउपयोगी हल ढूंढ निकाला है। 80 साल की उम्र में ये शख्स रोज़ 5 से 7 किलोमीटर चलकर घर-घर जाकर दवाइयाँ इकटठा करते है। ओंकारनाथ शर्मा उर्फ़ मेडिसिन बाबा एक पूर्व सेवानिवृत्त ब्लड बैंक तकनीशियन है। ओंकारनाथ चाहते तो किसी भी बुज़ुर्ग सेवानिवृत्त व्यक्ति की तरह आराम से अपनी बाकी की ज़िन्दगी गुज़ार सकते थे। पर सन् 2008 में हुए लक्ष्मी नगर में निर्माणाधीन दिल्ली मेट्रो पुल के गिरने के हादसे ने उनकी दुनिया ही बदल दी।
कई लोग घायल होकर भाग रहे थे। आस-पास के अस्पतालों में भीड़ लगी हुई थी। पर दवाईयां और अपेक्षित चिकित्सीय सहुलते न होने के कारण उन्हें इन अस्पतालों से बिना इलाज किये ही वापस लौटना पड़ा। यह सब देखके ओंकारनाथ का दिल दहल गया। वे सोच में पड गए कि यह कैसी विडम्बना है कि एक तरफ तो ज़रूरतमंद लोग दवाईयो के आभाव में मर रहे है और दूसरी तरफ अमीर और उच्च मध्यम वर्गीय लोग उन्ही दवाईयो को कूड़ेदान में फेंक रहे है।
ओंकारनाथ उन लोगो में से नहीं थे जो मुश्किलो को देख कर आँखे मूंद लेते है। उन्होंने इस मुश्किल का एक हल ढूंढ निकाला और अकेले ही एक मिशन पर निकल पड़े। यह मिशन था गरीबो के लिए एक मेडिसिन बैंक अर्थात दवाईयो का बैंक बनाने का।
इसी मिशन को लिए अगली सुबह ओंकारनाथ दिल्ली की गलियो में घर-घर जाकर दवाईयां एकत्रित करने निकल पड़े। और जल्द ही लोग उन्हें मेडिसिन बाबा के नाम से जानने लगे।
“बची दवाई दान में, ना की कूड़ेदान में। मेडिसिन बाबा का एक ही सपना, गरीबो का मेडिसिन बैंक हो अपना” कहते हुए मेडिसिन बाबा हर घर से बची हुई दवाईया मांगते है। इन दवाईयो का वे उचित रिकॉर्ड भी रखते है।
रोज़ पांच से सात किलोमीटर चलकर ओंकारनाथ जितनी भी दवाईया लाते है उन्हें गरीबो में मुफ़्त में बाँट देते है। कुछ दवाईयां डॉक्टर की बनायीं पर्ची के अनुसार होती है और कुछ रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाली। इन सभी दवाइयो को ओंकारनाथ के दिल्ली के मंगलापुरी में स्थित एक छोटे से कमरे में रखा जाता है। पिछले सात सालो में ओंकारनाथ के कुछ ऐसे परिचित भी बन चुके है जो दवाईयां देने के लिए उन्हें स्वयं बुलाते है।
इन दवाईयो की एक पूरी फेहरिस्त तैयार की जाती है तथा इनके विषय में सभी जानकारियो को दर्ज किया जाता है। कोई भी ज़रूरतमंद इन दवाईयो को शाम 4 से 6 बजे तक ओंकारनाथ के कमरे से मुफ़्त में ले जा सकता है। इतना ही नहीं बल्कि मेडिसिन बाबा की ये दवाईयां बड़े-बड़े अस्पतालों जैसे कि AIIMS, डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अस्पताल, दीन दयाल उपाधयाय अस्पताल, लेडी इरविन मेडिकल कॉलेज और कई आश्रमो में भी दान की जाती है। ओंकारनाथ के मुताबिक़ वे एक महीने में कम से कम 4 से 6 लाख तक की दवाईयां बांटते है।
गरीबो को मुफ़्त में दवाईयां मुहैया कराना ही मेडिसिन बाबा का एकमात्र उद्देश्य नहीं है बल्कि वे चाहते है कि लोगो में इस बात की जागरूकता फैले और वे महंगी दवाईयो को फेंकने से पहले दस बार सोचे।
“मेरी लोगो से यही अपील है कि जीवनदायिनी बहुमूल्य दवाईयो को न फेके। बल्कि जहाँ भी आपकी श्रद्धा हो इन्हें उन आश्रम या अस्पतालो में दान करे।”
यदि इनसे पूछा जाए कि यह सब करके उन्हें क्या मिलता है तो उनका जवाब होता है, “मेरी दवाईयो से ठीक होकर जो लोग घर जाते है उन लोगो की मुस्कान ही मेरी पूंजी है।”
ओंकारनाथ के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा, एक बेटी तथा एक पोती भी है। दिल्ली जैसे शहर में सिर्फ ओंकारनाथ की पेंशन से बड़ी मुश्किल से गुज़ारा हो पाता है। पर फिर भी 80 साल के ये समाजसेवी न रुकते है न थकते है।
यदि लोगो के दिए पैसे से कुछ बच जाता है तो वे इन पैसो से अन्य चिकित्सीय उपकरण जैसे कि ऑक्सीजन टैंक, अस्पताल के बेड इत्यादि खरीदकर दान करते है। मेडिसिन बाबा ऐसे कई गरीब मरीज़ों के लिए वरदान है जो डॉक्टर की बतायी महंगी दवाईयां नहीं खरीद सकते।
फिलहाल वे कैंसर तथा गुर्दे की बीमारियो से ग्रस्त कुछ मरीज़ों की मदत करने में जुटे हुए है। मेडिसिन बाबा की पहचान उनकी नारंगी रंग की कमीज है, जिसपर उनका फ़ोन नंबर तथा उनका मिशन बड़े बड़े अक्षरो में लिखा हुआ है। इसी नारंगी कमीज को पहने, दिल्ली की गलियो में घूमते मेडिसिन बाबा कई लोगो की उम्मीद बन चुके है। हम आशा करते है कि गरीबो के लिए मेडिसिन बैंक बनाने का मेडिसिन बाबा का ये सपना जल्द ही पूरा हो।
(सााभार – द बेटर इंडिया)