-सुषमा त्रिपाठी
शनिवार की रात थी। दफ्तर से घर के लिए लौट रही थी और एक अधेड़ व्यक्ति थोड़ी देर बाद बस पर चढ़ा। महिलाओं की खाली सीट को देकर उनके भाग्य को सराहते हुए उसने पुरुष होने की पीड़ा जाहिर की – हमारा क्या सीट खाली है, तब भी खड़े होकर जाएंगे। बेटी को सब बराबर बताते हैं। इतने दिन तक औरतों को मर्दों ने दबाया है, अब उसी की सजा भुगत रहे हैं। भुगतिए। शायद वह नशे में था और आस – पास सब हँस रहे थे। मुझे भी यही लग रहा था कि कब मेरा गन्तव्य आए और उसकी बकवास से पीछा छूटे और धीरे – धीरे असल दर्द छलका। बेटी को पढ़ाया, इंजीनियर बनाया, अब उसकी शादी के लिए लड़के वाले दहेज में 20 लाख रुपए माँग रहे हैं।
मोदी कहते हैं कि बेटी पढ़ाओ मगर बेटी पढ़ाकर क्या होगा जब 20 लाख अलग से गिनने होंगे और कहाँ से आएगा, इतना पैसा। ये एक पिता का दर्द था, दहेज माँगने वाले या बेटों में इन्वेस्ट करने वाले भी कोई पुरुष ही होगा, स्त्रियाँ भी होती हैं। अब उस शक्स ने तो प्रधानमंत्री को चिट्ठी भी लिखी है, नहीं पता कि उस चिट्ठी का जवाब मिलेगा या नहीं, मगर जिस बेटी के लिए बाप ने अपनी यह हालत कर ली है और जिस बेटे के बाप की वजह से उस शख्स की यह हालत है, वे बहुत कुछ कर सकते हैं। क्या वह लड़का, जिसकी ब्रांड वैल्यू उसकी नौकरी और ओहदे के साथ बढ़ती जाती है, क्या इतना कमजोर होगा कि वह अपने दम पर 20 लाख न कमा सके या अपना घर न भर सके। सवाल लड़कों से है क्योंकि शादी के बाजार में बोली उनकी ही लगती है, दहेज उनके नाम पर ही माँगा जाता है और आखिरकार आप एक रीढ़ की हड्डीविहीन माँस का पुतला भर रह जाते हैं जिसकी नीलामी कोई और नहीं, उसके माँ – बाप करते हैं। एक बार खुद से पूछिए कि क्या ये आपका अपमान नहीं है? क्या ये आपके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाना नहीं है और अगर है तो क्यों आप अपने माता – पिता की गलतियों का साथ दे रहे हैं और वह भी उस परिवार के नाम पर जो आपकी ही नीलामी कर रहा है। माता – पिता के सम्मान का अर्थ उनके लालच का सम्मान करना कतई नहीं होता और लड़कियों से भी यही सवाल है कि आखिर क्यों उनको लगता है कि उनके मायके से जितना दहेज जाएगा, ससुराल में उनकी नाक उतनी ही ऊँची होगी। आपके माता – पिता ने अगर आपको पढ़ाया – लिखाया है तो आपकी यह जिद क्यों है कि आपकी शादी में जेवर से लेकर फर्नीचर तक आपके मायके से जाना चाहिए। अगर आप कमाती हैं तो यह तो आप अपनी कमाई से ही कर सकती हैं। आपके लिए अगर आपके पिता को दहेज लोभियों की ब्लैकमेलिंग का शिकार होना पड़ रहा है और आप तमाशा देख रही हैं तो माफ कीजिए गुनहगार आप भी हैं। वैसे भी, जो आपसे ज्यादा आपके मायके से मिलने वाले दहेज में रुचि रखता हो, वह घर शानदार हो सकता है मगर वहाँ प्यार और अच्छे जीवन साथी की उम्मीद आपको छोड़ देनी चाहिए। अभिभावक अगर बेटियों को पढ़ाते हैं तो उनमें इतना आत्मविश्वास होना चाहिए कि वे बेटियों को उनके फैसले करने दें क्योंकि शिक्षा का एक मकसद यह भी होता है। शादी नहीं हुई तो दुनिया नहीं लुटने वाली है मगर जिस एक पिता बेटियों की शादी से आगे देखने लगा, उस दिन समाज बदलने पर मजबूर जरूर होगा मगर बदलाव की बागडोर आप युवाओं को पहले थामनी होगी।
प्रश्न नये नहीं हैं और न इसका उत्तर भी कुछ अनापेक्षित या नया मिलेगा ? हाँ, इस प्रश्न को उठाने वालों में एक नया नाम जुड़ जरूर गया है, परन्तु कड़वी सच्चाई ये है कि वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में इसका कुछ समाधान भी दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है, कुछ लाइक्स , कुछ शेयर्स और समर्थन में कुछ कमेंट्स और फिर वही ढाक के तीन पात, मामला टांय टांय फिस्स I व्यवस्था पर सिर्फ सवाल उठाने, लाइक, शेयर, कमेंट करने की जगह जरूरत है ऐसे कदम सुझाने की जो स्वीकार्य हों, कार्यकर सिद्ध हों, तब लोग उन पर अमल करेंगे और तब जाकर वांछित परिणाम सामने आयेंगे …
हमें प्रतीक्षा रहेगी अगर आप कुछ सुझाव दें और इसे लिखें, अपराजिता को आपके लेखन की प्रतीक्षा है