परिवार की तीन पीढ़ियों ने पुस्तक का बखूबी ध्यान रखा है, इसे कुरआन शरीफ के साथ रखते हैं
गीता का संस्कृत से उर्दू में अनुवाद मथुरा के पंडित जानकीनाथ मदन देहलवी ने 1898 में किया था
जावरा/ रतलाम : मध्य प्रदेश के रतजाम जिले के जावरा में एक मुस्लिम परिवार ने 121 साल से उर्दू की श्रीमद् भागवत गीता सहेज रखी है। परिवार की तीन पीढ़ियों ने इसका कुरआन शरीफ की तरह ध्यान रखा है। इस पुस्तक का अनुवाद 1898 में संस्कृत से उर्दू में किया गया था। यह भागवत गीता कांट्रैक्टर अनीस अनवर (57) के संग्रह में है। वह समय मिलने पर इसे पढ़ते हैं और इसका दर्शन उन्हें जीवन की राह दिखाता है।
गीता का संस्कृत से उर्दू में अनुवाद मथुरा के पंडित जानकीनाथ मदन देहलवी ने 1898 में किया था। पंडित रामनारायण भार्गव के मार्फत मथुरा प्रेस से प्रकाशित ग्रंथ में श्रीमद् भागवत गीता के पाठ व महत्वपूर्ण श्लोक का उर्दू व फारसी में तर्जुमा है। 121 साल पहले संस्कृत से उर्दू में इसके अनुवाद का मकसद मुस्लिम वर्ग को गीता से रूबरू कराना था।
गीता की कीमत एक आना थी
अनुवादित गीता का प्रकाशन 15 मार्च 1898 को हुआ था। तब कीमत एक आना यानी 6 पैसे थी। 230 पेज में गीता के 18 अध्यायों का संस्कृत से उर्दू अनुवाद है। अनीस अनवर ने बताया इसे कुरआन शरीफ सहित अन्य धर्म ग्रंथों के साथ रखते हैं।
सुख-दुख का दर्शन बहुत गहरा
अनीस अनवर कहते हैं संस्कृत से उर्दू में प्रकाशित इस पुस्तक में पेज नंबर 41 पर प्रकाशित श्लोक “यं हि नव्यथयंत्येते पुरुषं पुरुषर्षभ। संदु:ख सुखंधीरं सौअमृतत्वायकल्पते।।’’ से अनीस अनवर बहुत ज्यादा प्रभावित हैं। इस श्लोक का अर्थ है जिस मनुष्य को स्पर्श मात्र से कोई असर नहीं होता और जो सुख व दु:ख में एक समान रहता है वो अमर हो जाता है। अनीस पारिवारिक मित्र किशोर शाकल्य के साथ इसे पढ़ते हैं।