वांगचुक से प्रेरणा लेकर 18 पेटेंट लेेने वाले पहले भारतीय युवा बने अजिंक्य कोत्तावार की कहानी
नागपुर : मेरा जन्म नागपुर में हुआ, लेकिन मेरा मूल गांव महाराष्ट्र के यवतमाल जिले का पाटनबोरी है। पिता रवींद्र पाटनबोरी में एक सीमेंट फैक्ट्री में काम करते थे। मां स्कूल में पढ़ाती थीं, इन दोनों की इतनी आय थी कि बस घर चल जाता था। मेरी नौवीं तक की पढ़ाई पाटनबोरी में हुई। आगे की पढ़ाई के लिए मैं यवतमाल आ गया, लेकिन स्कूल में मन नहीं लगता था। फिल्म थ्री-इडियट्स से मशहूर हुए सोनम वांगचुक का वायरस मेरे अंदर घुसा हुआ था। मैं भी कोई आविष्कार करना चाहता था। माता-पिता को पता चला तो उन्होंने डांटा कि पहले ग्रेजुएशन कर लो, फिर जो चाहो करना। अच्छे अंक लाओगे तो नौकरी भी अच्छी मिलेगी।
12वीं के बाद मैकेनिकल इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया तो मेरी दबी हुई प्रतिभा को पंख लगना शुरू हो गए। 2013 में सेकंड ईयर में 21 वर्ष का था तब मैंने ‘ए वेरीएबल वॉल्यूम पिस्टन सिलेंडर असेंबली’ यंत्र बनाया। इसे किसी गाड़ी में फिट करने पर वह अलग-अलग सीसी में बदल सकती थी। आविष्कार लेकर मैंने एक बड़ी भारतीय कार निर्माता कंपनी से संपर्क किया तो उन्होंने तारीफ करते हुए कहा कि कमर्शियली यह अफोर्डेबल नहीं है। 2013 में आगे की पढ़ाई के लिए मैं एनआईटी सिलचर गया। मैं पास के गांवों में ग्रामीणों से मिलकर उनकी परेशानियां समझता था। मैं चाहता था कि उनकी परेशानी दूर करने के लिए कोई प्रयोग करूं। वहां मैंने चाय की पत्ती से बायोडीजल बनाया, लेकिन कॉलेज प्रशासन को यह नागवार गुजरा। कॉलेज ने कहा कि यहां यह सब नहीं कर सकते तो मैंने कॉलेज ही छोड़ दिया। वैसे भी किताबों व डिग्री में मेरी रुचि नहीं थी। इसी वर्ष मैंने नया प्रयोग किया, जिसमें किसी कार को डीजल व पेट्रोल दोनों से चला सकते थे। पेटेंट कराकर जब महिन्द्रा कंपनी को बताया तो उन्होंने इस्टीमेट बनाकर बताया कि यह तकनीक काफी महंगी पड़ेगी। यदि गाड़ी मार्केट में नहीं चली तो? 2015 में जब इंजीनियरिंग कर चुका था तब मैंने वॉटर फिल्टर बनाया। हमारे गांव में नदी है, लेकिन वॉटर सप्लाय सिस्टम नहीं होने से बर्तनों में पानी लाना पड़ता था।
मैंने 200 लीटर के एक ड्रम में फिल्टर लगाकर उसे पहिए वाली गाड़ी पर फिट कर दिया। नदी का पानी घर लाते समय रास्ते में ड्रम घूमता था, जिससे पानी घर आते-आते फिल्टर हो जाता था। यह इतना फिल्टर हो जाता है कि पीने योग्य हो जाए। ग्रामीण इससे बहुत खुश हुए। देश में निर्मित बैटरी वाली कार एक बार चार्ज करने पर 120 किमी चलती है। मैंने हाईब्रिड तकनीक का इस्तेमाल कर साबित किया कि बैटरी खत्म होने के बाद वही कार दो लीटर फ्यूल में 160 किमी और चलेगी। यानी बैटरी और दो लीटर फ्यूल में 280 किमी। मेरा इन्वेंशन जुड़ने के बाद गाड़ी अब फ्यूल व बैटरी से 300 किमी चलती है। कार कंपनी को मेरा पेटेन्ट पसंद आया। मैं उनके साथ इस पर काम कर रहा हूं। इस बीच 12 आविष्कारों का पेटेंट अपने नाम कराकर 2016 में सोनम वांगचुक से मिलने लद्दाख गया। उन्होंने कहा अपने क्षेत्र में अपने लोगों के बीच काम करो, उन्हें तुुम्हारी जरूरत होगी। 26 की उम्र में 18 अाविष्कारों के अंतरराष्ट्रीय पेटेंट मेरे नाम हैं। इस उम्र में मैं यह उपलब्धि हासिल करने वाला पहला भारतीय हूं। इसके बाद मैं यवतमाल जिले के स्कूल-कॉलेजों में ग्राउंड पर बच्चों से विचार साझा करने लगा। यह बात शिक्षण संस्थानों को पता चली तो वे प्रभावित हुए। शिक्षण संस्थानों ने मुझे इजाजत दी तो मैंने अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की टीम बनाई और बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। यवतमाल में ही करीब 22 हजार विद्यार्थियों को मैं पढ़ा चुका था। अप्रैल 2019 तक सभी जगह के 52 हजार विद्यार्थियों को मैंने पढ़ाया है। मैंने इसकी कभी कोई फीस नहीं ली।
2018 में मैंने अपने ‘ज्ञान फाउंडेशन’ की स्थापना की। पांचवीं से 10वीं कक्षा तक का पाठ्यक्रम मॉडल बनाया ताकि बच्चे पढ़कर नहीं, देख व प्रयोग कर विषय में पारंगत हो सकें। शिक्षा के सरलीकरण के लिए मैंने 4 हजार से अधिक प्रोजेक्ट बनाए। गणित को सरल बनाने के लिए 500 मॉडल बनाए, जिनसे 2500 कॉन्सेप्ट सीख सकते हैं। विज्ञान, भूगोल और इतिहास के भी प्रोजेक्ट बनाए, इसमें खेल-खेल में पढ़ा गया बच्चे कभी नहीं भूलते। फाउंडेशन के माध्यम से हम स्कूलों में वर्कशॉप चलाते हैं। मैंने दिसंबर 2018 में यवतमाल में एक्टिविटी सेंटर शुरू किया। राज्य में ऐसे 12 सेंटर शुरू करना चाहता हूं। यहां काम करने वाले स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण दे रहा हूं। ये स्वयंसेवक गांव-खेड़े में बच्चों को सिखाएंगे। चूंकि फैकल्टी और अन्य कार्य के लिए पैसा चाहिए, इसलिए आने वाले बच्चों से मैं बहुत नॉमिनल फीस लेता हूं। जो नहीं दे सकते, उनके लिए माफ है। मेरा इरादा इसे देशभर में फैलाना है।
एडवांस सोलर सिस्टम पर काम कर रहा हूं। प्रयोग सफल रहा तो सामान्य पेनल से 30% अधिक एफिशियंसी मिल सकती है। ऑटोमेटिक क्लिनिंग सिस्टम से आउटपुट बढ़ जाएगा। एजुकेशन सिस्टम- 4000 प्रयोग ज्यादातर स्कूलों में इस्तेमाल हो रहे हैं। 70 किमी से अधिक माइलेज देने वाली फोर व्हीलर मैंने बनाई। इस पर महिन्द्रा के साथ काम कर रहा हूं। 150 किमी प्रतिलीटर से ज्यादा एवरेज देने वाली टू व्हीलर बनाई। पोर्टेबल मोबाइल चार्जर, जो व्हीकल पर चलते समय हवा से चार्ज करता है। वॉटर हार्वेस्टर, इसके कारण सूख चुके बोरिंग गर्मी में भी पानी दे रहे हैं। व्हीकल ट्रैकिंग एंड एक्सीडेंटल सिस्टम से चोरी गई गाड़ी पकड़ सकते हैं। साथ ही दुर्घटना होने पर रिश्तेदारों को सूचना के साथ लोकेशन मिलत जाती है।
(साभार – दैनिक भास्कर)