वाराणसी : रंगमंच जीने की एक कला सिखाता है। रंगमंच को जीने वाले इसे जीने का सलीका कहते हैं। यह अलग बात है कि सिनेमा ने रंगमंच का दायरा संकीर्ण किया। नाट्यभाषा का विकास भारत में ही हुआ है। ऋग्वेद में इसका प्रमाण मिलता है। उक्त विचार लंका स्थित इंग्लिश क्लासेस के सभागार में आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने व्यक्त किये। सुपरिचित कथा लेखिका डॉ. मुक्ता ने कहा कि संगीत, कला, और साहित्य का समुच्चय रंगमंच है। वरिष्ट पत्रकार अत्रि भारद्वाज ने कहा कि व्यक्ति बहुकोणीय स्तर पर खुद को रंगमंच से जुड़ा हुआ देख सकता है। गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज करा चुके डॉ. जगदीश पिल्लई ने कहा कि रंगमंच की जीवन मे सक्रिय भूमिका है। कलाविद श्री गौतम चटर्जी ने विश्व रंगमंच के वर्तमान परिवेश को सुखद कहा। इस अवसर डॉ. मुक्ता द्वारा निर्मित वृत्तचित्र ‘आचार्य रामचंद्र शुक्ल’, मणि कौल की फ़िल्म ‘आषाढ़ का एक दिन’, उत्पल दत्त की फ़िल्म ‘ओथेलो’, बर्गमैन ड्रीम्ज, तारकोवस्की पोएट्री हार्मोनी, गौतम चटर्जी की फ़िल्म ‘ईहामृग’ का विशेष प्रदर्शन किया गया। साथ ही वाराणसी के युवा फ़िल्मकारों की फिल्में भी दिखाई गई। जिनमे मानिनी, विसर्जन, अहसास, सिपाही, कनेर, ख्वाहिशें, पगली, नाम भारत आदि 12 फिल्मों को दर्शकों ने देखा और सराहा। कार्यक्रम के आरम्भ में अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट कर उनका सम्मान रंगप्रवाह संस्था के संरक्षक श्री शिवाशिष देवनाथ ने किया। इंग्लिस क्लासेस के नागेश देबे ने सम्मनित अतिथियों का स्वागत किया। विश्व रंगमंच दिवस पर क्यूबा के रंगकर्मो सेल्ड्रन द्वारा विश्व के रंगमंच को सन्देश पत्र को नगर के रंगकर्मी रोहिताश जायसवाल ने पाठ किया। कार्यक्रम में नीलम पाल, जयंती कुंडू, सोनिया, पायल सोनी आदि विशिष्ठ जन शामिल रहें। रंगप्रवाह के सदस्य और रंगकर्मी जयदेव दास ने आयोज के महत्व प्रकाश डालते हुए ऐसे कार्यक्रमों को और अधिक करने की मनसा व्यक्त की। अंत मे सभी का आभार व्यक्त किया।