ईसाई समुदाय के सबसे बड़े पर्व के करीब आने के साथ ही ईश्वर के पुत्र ईसा मसीह को लेकर तमाम हैरतअंगेज बातों का जिक्र चल पड़ता है. ईसा मसीह के जन्म से लेकर उनकी मृत्यु और दोबारा जीवित होना जैसी बातों पर लगातार विवाद रहा है. ऐसी भी मान्यता है कि ईसा मसीह ने अपनी जिंदगी के कई साल भारत में गुजारे थे। खासकर उनका अंतिम वक्त कश्मीर में गुजरा था. कहा जाता है कि जब इजरायल में ईसा मसीह को सलीब पर लटकाया गया तो वो उसके बाद भी जिंदा रहे थे. लेकिन रहस्यमय तरीके से कहां गायब हो गए। ये आज भी रहस्य है. कुछ इतिहासकारों और शोधकर्ताओं का मानना है कि ईसा का ये रहस्यकाल कश्मीर में बीता। श्रीनगर के रोजाबल श्राइन को ईसा मसीह की करीब दो हजार साल पुरानी कब्र माना जाता है।
कई शोधकर्ताओं का मानना है कि जीसस की मृत्यु सूली पर चढ़ाने से नहीं हुई थी. रोमन द्वारा सूली पर चढ़ाए जाने के बाद भी वो बच गए। फिर मध्यपूर्व होते हुए भारत आ गए. उनका बाकी का जीवन भारत में बीता। रोजाबल में जिस व्यक्ति का मकबरा है, उसका नाम यूजा असफ है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यूजा असफ कोई और नहीं बल्कि ईसा मसीह या जीसस ही हैं।
तमाम डॉक्युमेंट्रीज और किताबों में जिक्र
क्राइस्ट के भारत आने पर बीबीसी लंदन ने 42 मिनट की डॉक्यूमेंट्री ‘जीसस इन इंडिया” बनायी। श्रीलंका में करीब सवा घंटे की एक डॉक्यूमेंट्री बनाई गयी। ”जीसस वाज ए बौद्धिस्ट मंक”. ईसा के भारत आने पर तमाम किताबें लिखी गयीं। कई दशकों पहले कश्मीर के जाने-माने लेखक अजीज कश्मीरी ने अपनी किताब ”क्राइस्ट इन कश्मीर” से लोगों को ध्यान खींचा. आंद्रेयस फेबर कैसर ने ”जीसस डाइड इन कश्मीर” लिखी तो जाने माने लेखक एडवर्ड टी मार्टिन ने ”किंग ऑफ ट्रेवलर्स: जीसस लास्ट ईयर इन इंडिया” लिखी।
पहलगाम में यहूदी नस्ल के बाशिंदे
सुजैन ओस ने भी इसी विषय पर चर्चित किताब लिखी. जम्मू-कश्मीर आर्कियोलॉजी, रिसर्च एंड म्यूजियम में अर्काइव विभाग के पूर्व डायरेक्टर डॉ. फिदा हसनैन की भी इस विषय में दिलचस्पी तब पैदा हुई जब वो लद्दाख गए और उन्हें इस बारे में बताया गया। तब उन्होंने राज्य में इस संबंध में पुरानी किताबें और साक्ष्य तलाशने शुरू किए. जो कुछ उन्हें मिला, वो इशारा करता था कि ईसा के भारत आने की बात में दम है। पहलगाम का क्षेत्र डीएनए संरचना अनुसार मुसलमान बने यहूदी नस्ल के लोगों से भरा हुआ है।
सवाल भी हैं
कई विद्वानों ने शोध से साबित करने की कोशिश की कि ये कब्र किसी और की नहीं, बल्कि ईसा मसीह या जीसस की है। सवाल उठता है कि अगर जीसस की मौत सूली पर चढ़ाए जाने की वजह से येरूशलम में हुई तो उनका मकबरा 2500 किमी दूर कश्मीर में कैसे हो सकता है। बाइबल भी ईसा को सूली पर चढ़ाने के बाद उनके 12 बार अलग-अलग समय पर लोगों के सामने आकर मानव रूप में जीवित होने का प्रमाण देना कहती है।
ईसा सिल्क रूट से कश्मीर आ गए!
ईसा मसीह ने 13 साल से 30 साल की उम्र के बीच क्या किया, ये रहस्य सरीखा ही है. बाइबल में उनके इन वर्षों का कोई जिक्र नहीं मिलता। 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने येरूशलम में यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा ली. दीक्षा के बाद वो लोगों को शिक्षा देने लगे. ज्यादातर विद्वानों के अनुसार सन 29 ई. को ईसा येरूशलम पहुँचे। वहीं उनको दंडित करने का षड्यंत्र रचा गया. जब उन्हें सलीब पर लटकाया गया, उस वक्त उनकी उम्र करीब 33 वर्ष थी। इसके दो दिन बाद ही उन्हें उनकी कब्र से पास जीवित देखा गया. फिर वो कभी यहूदी राज्य में नजर नहीं आए. उसके बाद के समय में उनके कश्मीर में होने का उल्लेख है। ईसा ने दमिश्क, सीरिया का रुख करते हुए सिल्क रूट पकड़ा। वह ईरान, फारस होते हुए भारत पहुँचे.जहां कश्मीर में वो 80 वर्ष की उम्र तक रहे। जीसस के भारत आने को लेकर कई किताबें लिखी गयीं जिसमें उनके कश्मीर आकर रहने का उल्लेख है।
अहमदिया समुदाय भी मानता है
हिंदू ग्रंथ भविष्यपुराण में भी कथित उल्लेख है कि ईसा मसीह भारत आए थे। उन्होंने कुषाण राजा शालीवाहन से मुलाकात की थी। मुस्लिमों का अहमदिया समुदाय भी यकीन करता है कि रोजाबल में मौजूद मकबरा ईसा या जीसस का ही है।अहमदिया समुदाय के संस्थापक हजरत मिर्जा गुलाम अहमद ने 1898 में लिखी अपनी किताब ‘मसीहा हिन्दुस्तान में’ ये लिखा कि रोजाबल स्थित मकबरा जीसस का ही है जिनकी शादी कश्मीर प्रवास के दौरान मरजान से हुई. उनके बच्चे भी हुए।
रूसी विद्वान ने पहली बार किया था ये दावा
जर्मन लेखक होलगर्र कर्सटन ने अपनी किताब ‘जीसस लीव्ड इन इंडिया’ में इस बारे में विस्तार से लिखा है। पहली बार सन 1887 में रूसी विद्वान, निकोलाई अलेक्सांद्रोविच नोतोविच ने संभावना जाहिर की थी कि शायद जीसस भारत आए थे। नोतोविच कई बार कश्मीर आए थे. जोजी ला पास के नजदीक स्थित एक बौद्ध मठ में वो मेहमान थे, जहां एक भिक्षु ने उन्हें एक बोधिसत्व संत के बारे में बताया जिसका नाम ईसा था। नोतोविच ने पाया कि ईसा औऱ जीसस क्राइस्ट के जीवन में कमाल की समानता है। निकोलस नोतोविच एक रूसी यहूदी राजदूत, राजनीतिज्ञ और पत्रकार थे. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय तौर पर पहली बार ये दावा किया था। रूसी विद्वान और लेखक निकोलाई नोतोविच, जो लद्दाख के बौद्ध मठ में ठहरे और फिर “अननोन ईयर्स ऑफ जीसस” किताब लिखी।
भारत सरकार की डॉक्युमेंट्री क्या कहती है
इस बारे में भारत सरकार द्वारा बनाई गई करीब 53 मिनट की डॉक्यूमेंट्री ”जीसस इन कश्मीर” कमाल की है. इसने बहुत प्रमाणिक ढंग से बताया है कि किस तरह जीसस भारत में आकर रहे। उनका ये प्रवास लद्दाख और कश्मीर में था. हालांकि रोमन कैथोलिक चर्च और वेटिकन इसे नहीं मानते. ये डॉक्युमेंट्री इशारा करती है कि जीसस अपने खास लोगों के साथ कश्मीर आए थे. फिर यहीं के होकर रह गए। उनके साथ आए यहूदी यहीं के वाशिंदे हो गए। इजरायल का ये ट्राइबल मैप बताता है कि सैकड़ों साल पहले जो कबीले वहां से गायब हो गए थे, वो अब कश्मीर में हैं। ये लोग अपने नाम भी उसी तरह रखते हैं, जिस तरह इजरायली।
इजरायल के 10 यहूदी कबीलों के वंशज कश्मीर में
भारत सरकार के फिल्म प्रभाग की ये डॉक्यूमेंट्री प्रमाणिक रूप से भारत में ईसा मसीह के संबंध पर ध्यान खींचती है। भारतीय सेंसर बोर्ड से पास इस डॉक्यूमेंट्री में 2000 साल पुराने शिव मंदिर के अभिलेखों, संस्कृत और बौद्ध पांडुलिपियों में यीशू के यहूदी नाम यसूरा के इस्तेमाल, सम्राट कनिष्क के अनदेखे सिक्कों और तिब्बती ऐतिहासिक पांडुलिपियों द्वारा उनके कश्मीर आने को साबित किया जाता है। इजरायल के कुल 12 यहूदी कबीलों में गुम हुए 10 यहूदी कबीलों में कुछ के वंशज अफगान और कश्मीर में ही बसे हुए हैं। उन्हें “बनी इजरायल ” कहा जाता है. वो सभी बेशक मुस्लिम बन चुके हैं, लेकिन उनका खानपान और रीति रिवाज कश्मीरियों से अलग हैं। वो कश्मीरियों से रोटी-बेटी के सम्बन्ध नहीं रखते।
कहाँ है श्रीनगर में ये कब्र
श्रीनगर के जिस छोटे से मोहल्ले खानयार में ये कब्र बताई जाती है और पिछले कुछ सालों में दुनियाभर के ईसाईयों और धार्मिसाक इतिहासकारों के आकर्षण का केंद्र भी बनती रही है। खानयार के रोजाबल में जो कब्र है, वो उत्तर-पूर्व दिशा में है जबकि मुसलमानों की कब्रें दक्षिण-पश्चिम में होती हैं।
(साभार – न्यूज 18)