नयी दिल्ली : अमर सिंह अपना व अपने परिवार का पेट पालने के लिए कभी जीप चलाया कराता था, लेकिन एक बार किसी अखबार में आंवले के गुणों को जानकर उसने आंवले के पौधे अपने खेत में क्या लगाए कि उसकी गिनती गांव के लखपति के रूप में होती है। वह न केवल अपने परिवार, बल्कि दूसरे लोगों को भी रोजगार दे रहा है। राजस्थान के भरतपुर जिले की कुम्हेर तहसील क्षेत्र के समन गांव का निवासी अमर सिंह ने पारिवारिक परिस्थितियों के कारण 11वीं पास करने के बाद पढ़ाई छोड दी और एक डग्गेमार जीप पर कण्डक्टरी करने लगा तथा तीन महीने बाद जीप चलाना सीखकर इसी पर ड्राइवर बन गया। एक दिन उसे एक रद्दी के कागज के टुकडे में आंवला के 100 गुणकारी फायदे लिखे मिले। जिन्हें देखकर वह तुरन्त कृषि अधिकारियों से मिला और आंवले के 500 पौधों की मांग की। सन 2002 में कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध कराये गये पौधों से अमर सिंह ने अपने खेत में आंवले का बाग लगा दिया। आंवले के पौधे लगाने के चार साल बाद अमर सिंह का आंवले का बाग फलों से लद गया, लेकिन अमर सिंह ने आंवले की उपयोगिता के बारे में जो पढ़ा व सुना था, उसके अनुरूप आंवले के दाम नहीं मिल पा रहे थे। अमर सिंह इन आंवलों को लेकर मथुरा भी गया लेकिन वहां भी उसे उचित भाव नहीं मिला। आखिर जो भाव मिलता उसी में बेचने के लिए अमर सिंह मजबूर हो रहा था।
लुपिन लैब, मुम्बई की स्वयं सेवी संस्था लुपिन ह्यूमन वैलफेयर एण्ड रिसर्च फाउण्डेशन ने वर्ष 2006 में कुम्हेर कस्बे में फल प्रसंस्करण का प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया। जिसमें समन गांव का अमर सिंह भी शामिल हुआ। वैसे अमर सिंह आंवले के फलों के उचित दाम नहीं मिलने से इतना टूट चुका था कि उसे आंवले के बाग को हटा कर खेती करने का मन बना लिया था, फिर भी अमर सिंह ने फल प्रसंस्करण प्रशिक्षण शिविर में शामिल हुआ। उसने प्रशिक्षण में अन्य फलों के साथ-साथ आंवले के विभिन्न उत्पाद बनाने का गहन प्रशिक्षण लिया। लुपिन संस्था ने पुनः अमर सिंह को आंवले का अचार, मुरब्बा, जैम, जैली, कैण्डी, चैरी आदि का प्रशिक्षण दिलाया और कार्य शुरू कराने के लिए सिडबी एवं विभिन्न वित्तीय संस्थाओं से 2 लाख का ऋण दिलाया।
अमर सिंह को लुपिन संस्था के मार्गदर्शन एवं आर्थिक सम्बल से आगे बढने का पूरा विश्वास प्राप्त हो गया तो उसने अपने खेत के सारे आंवलों के विभिन्न उत्पाद तैयार करने के लिए 82 क्विंटल चीनी काम में ली अर्थात करीब 150 क्विंटल उत्पाद तैयार किये। जिन्हें तैयार करने के लिए उसका पूरा परिवार एवं गांव के करीब 20 लोगों को तीन माह तक रोजगार दिया।
उसने करीब 100 क्विंटल मुरब्बा, 10-10 क्विंटल अचार, जैम, कैण्डी, जैली आदि बनाई। उसने मुरब्बा बनाने में करीब 25 रुपये प्रति किलो की लागत आई जिसे उसने अपने गांव के आसपास व स्थानीय बाजार में 40 रुपये प्रतिकिलो की दर पर बेच कर करीब 2 लाख रुपये की आय प्राप्त कर ली। अब वह इसकी लागत को और कम करने की दिशा में जुटा हुआ है। वह आगामी वर्षों में अन्य फलों के प्रसंस्करण कर लोगों को कम दामों पर उपलब्ध कराया जिसके लिए लुपिन संस्था निरन्तर प्रयास कर रही है। लुपिन अमर सिंह को नवीन पैकेजिंग विधि के अलावा उत्पादों को राष्ट्रीय मेलों, खादी विक्रय केन्द्रों पर उपलब्ध कराने में सहयोग कर रही है।