काव्यांगन’ जो कि अब हिन्दी का आंगन के नाम से जाना जाएगा, एक यूट्यूब चैनल है। यह चैनल पहले काव्यांगन के नाम से शुरू हुआ था, कविताओं पर, कवियों पर बात होती थी मगर चैनल की संस्थापक व शिक्षिका नीलम सिंह इसका फलक बड़ा कर रही हैं। अब काव्यांगन हिन्दी का आंगन के नाम से परिचित होगा। नीलम से जानिए काव्यांगन से हिन्दी का आंगन बनने की कहानी और उनके विचार –
इस चैनल को शुरू करने के पीछे मेरा एकमात्र उद्देश्य आज के छात्र जो भावी पीढ़ी हैं उन्हें मातृभाषा के करीब ले जाना है। आज पूरे देश में अंग्रेजी का बोलबाला है। टूटी फूटी अंग्रेजी बोल कर के भी लोग अपने आप को सबसे अलग दर्जे में रखने की एक हास्यास्पद कोशिश कर रहे हैं। मैं यह कभी नहीं कहती कि आप अन्य भाषा न सीखें, स्वयं की एवं देश की उन्नति के लिए एक नहीं कई भाषाएं सीखिए, बेशक इसमें कोई बुराई नहीं है ,बुराई है वहां जब हम स्वयं को आगे बढ़ाने में अपनी मातृभाषा की अवहेलना करने लगते हैं दुख होता है मुझे यह देख कर ,यह जानकर कि अक्सर भारतीय घरों में लोग कहते फिरते हैं कि क्या करोगे हिंदी पढ़ कर इसमें ,भविष्य नहीं है। किंतु वे लोग यह भूल जाते हैं कि विदेशी लोगों की अभिरुचि हिंदी की तरफ बढ़ रही है जिस तरह से आप गैर भाषा को अपनी मां से बढ़कर दर्जा दे रहे हैं ,वही दूसरे लोग हिंदी के महत्व को समझ रहे हैं। कहने की बात नहीं है कि भारतीय सिनेमा में अनेकों विदेशी कलाकार आए, हिंदी सीखी और यहीं के होकर रह गए। आत्माभिव्यक्ति का जो सुख अपनी मातृभाषा में है वह किसी और भाषा में नहीं।
‘काव्यांगन’ का भी यही उद्देश्य है। यहां इस आंगन में अपनी मां हिंदी के आंचल में लेटने का जो सुख मिलता है उसे व्याख्यायित नहीं किया जा सकता। इसे शुरू करने का मेरा मुख्य उद्देश्य यही रहा है कि आज की युवा पीढ़ी को इससे जोड़ सकूं। उन्हें पुनः लौटा कर उनका आंगन सौंप सकूं।
काव्यांगन में न केवल पाठ्यक्रम की कविताओं का सरलार्थ किया जाता है बल्कि इससे इतर देश भक्ति ,स्वतंत्रता से संबंधित अन्य कविताएं भी प्रस्तुत की जाती हैं।
प्रसन्नता की बात यह है कि इसे छात्र-छात्राओं एवं अन्य लोगों का भी प्रोत्साहन एवं प्यार प्राप्त हो रहा है।
हिंदी दिवस पर मैं सभी लोगों से यह निवेदन करना चाहूंगी कि आप इसे केवल 1 दिन के तौर पर ना मनाएं बल्कि इसे प्रतिदिन महसूस करें। जब आप एक मां के तौर पर अपनी भाषा को सम्मान देंगे तब जाकर भावी पीढ़ी आपका सम्मान करेगी क्योंकि यदि हम अपने बच्चों को अपने देश एवं अपनी मातृभाषा से ना जोड़ पाए तो एक दिन वे अपने संबंधों से भी जुड़ाव महसूस नहीं कर पाएंगे।