स्वामी विवेकानन्द का नाम लेते ही सिर श्रद्धा से झुक जाता है, नई सोच और जो कहो वो कर दिखाने का जज्बा रखने वाले विवेकानन्द एक अभूतपूर्व मानव थे। अगर आज उनके बताए गए रास्तों पर हमारे देश के युवागण चले तो वो दिन दूर नहीं जब हमारा देश वैसा ही बन जाएगा जैसा बनाने का सपना बापू ने देखा था।
स्वामी विवेकानन्द ने पूरे जीवन चरित्र के निर्माण पर बल दिया। वह ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके। बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करना था न कि केवल नौकरी करना ।’
‘निषेधात्मक शिक्षा’
स्वामी विवेकानन्द ने प्रचलित शिक्षा को ‘निषेधात्मक शिक्षा’ की संज्ञा देते हुए कहा है कि आप उस व्यक्ति को शिक्षित मानते हैं जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो, पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती, जो चरित्र निर्माण नहीं करती, जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती और जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती, ऐसी शिक्षा से क्या लाभ? इसलिए विवेकानंद ने सैद्धान्तिक शिक्षा के बजाय व्यावहारिक शिक्षा पर बल दिया ।
एक नजर विवेकानंद के शिक्षा-दर्शन के सिद्दांत पर
शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक विकास हो सके।
शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक के चरित्र का निर्माण हो।
शिक्षा ऐसी हो जिससे मन का विकास हो।
शिक्षा ऐसी हो जिससे बुद्धि विकसित हो और बालक आत्मनिर्भन बने।
बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा
बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा
बालक एवं बालिकाओं दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए।
धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।
पाठ्यक्रम में लौकिक एवं पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों को स्थान देना चाहिए।
शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार
शिक्षा, गुरू और घर में प्राप्त की जा सकती है।
शिक्षक एवं छात्र का सम्बन्ध अधिक से अधिक निकट का होना चाहिए।
सर्वसाधारण में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार किया जाना चाहिये।
तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था
तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था
देश की आर्थिक प्रगति के लिए तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
मानवीय एवं राष्ट्रीय शिक्षा परिवार से ही शुरू करनी चाहिए।
(साभार)