राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी की अध्यक्षता में एक काव्य संस्कृति का आयोजन कोलकाता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से किया गया।कार्यक्रम दो भागों में विभाजित था।प्रथम भाग का सञ्चालन विभाग की विभागाध्यक्षा प्रो. राजश्री शुक्ला ने किया। विश्वविद्यालय की ओर से स्वागत वक्तव्य कुलपति प्रो. आशुतोष घोष ने दिया।कार्यक्रम में मुख्य वक्तव्य डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र का था जिन्होंने कोलकाता का हिंदी साहित्य में योगदान विषय पर वक्तव्य देते हुए कहा कि हिन्दी में बांग्ला के तमाम श्रेष्ठ लेखकों की कृतियों का तुरंत हिंदी में अनुवाद कियागया। यहाँ तक कि कई बंगला लेखक हिंदी के माध्यम स्व देश दुनिया में जाने गये जबकि बंगला में हिंदी लेखकों के ऊपर एक भी श्रेष्ठ पुस्तक नहीं है। डॉ ओमप्रकाश मिश्र ने काव्य गायन करते हुए निराला त्रिलोचन के गीतों का गायन किया। , प्रमिता मल्लिक ने रवीन्द्र संगीत एवं डॉ अनूप घोषाल ने नज़रुल गीत प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम के दूसरे भाग में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें देश के प्रसिद्द कवि कुँवर बेचैन ने ‘होके मायूस यूँ न शाम सा ढलते रहिये, ‘बदरी बाबुल के घर जइयो’ ‘सबकी बात ना माना कर’, दिनेश कुशवाहा ने अपनी प्रसिद्द कविता ‘कोलकाता’ पढ़ी। कविता सम्मलेन केवल मनोरंजन का केंद्र ही नहीं होता बल्कि ज्ञान का भी केंद्र होता है।आगरा से आए कवि डॉ रामेन्द्र त्रिपाठी जिन्हें गीत ऋषि कहा जाता है ने ‘आ जाओ मोहब्बत की मीनार बनाते हैं,इस्कन इश्कन हवा चली, लोहार की लली गीत से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।, कविता किरण ने अपना प्रसिद्ध गीत ‘मेरे भीतर लड़की सोलह साल की’ गाया तो सुमन दुबे ने मेरा मन मौन है तुम्हारा मन भी, फिर चुप रहकर बतियाता है कौन, तेरे प्यार की अग्नि में हम सौ -सौ बार जले गीत गाया तो वहीँ योगेंद्र शुक्ल ‘सुमन’ ने अपनी राष्ट्रवादी कविता पढ़ी। राज्यपाल ने कविता सम्मेलन की अध्यक्षता भी की और अपनी कविता भी पढ़ी। कार्यक्रम का संचालन देश की प्रसिद्द मंचीय कवयित्री कविता किरण ने किया ।धन्यवाद ज्ञापन पूर्वक्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र , भारत सरकर के निर्देशक ओमप्रकाश भारती ने किया।कार्यक्रम में हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर अमरनाथ के अलावा अन्य विभागों के प्रोफेसर,विद्यार्थी भी मौजूद थे। इसके अतिरिक्त परिषद् की अध्यक्षा कुसुम खेमानी,मंत्री नन्दलाल शाह समेत अन्य अतिथि भी उपस्थित थे।