‘साहित्यिकी’ संस्था के तत्वावधान में मासिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसका शुभारम्भ नगर के प्रतिष्ठित कवि श्री नवल ने सुषमा हंस तथा रेशमी पांडा मुखर्जी द्वारा संपादित ‘साहित्यिकी’ पत्रिका के २६वें अंक के लोकार्पण से किया। गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ के जन्म-शतवार्षिकी-पर्व पर केन्द्रित इस संगोष्ठी में किरण सिपानी ने सबका स्वागत किया। उषा श्रॉफ ने ‘मुक्तिबोध’ की कविता ‘मुझे कदम-कदम पर’, वसुंधरा मिश्र ने ‘अंधेरे में’, सुषमा हंस ने ‘मैं तुम लोगों से दूर हूँ’ कविताओं की आवृत्ति की तथा विद्या भंडारी ने ‘तू और मैं’, गीत की सुरबद्ध प्रस्तुति की। प्रमुख वक्ता प्रो. रेखा सिंह ने ‘मुक्तिबोध’ की मानसिक बुनावट की पड़ताल करते हुए रेखांकित किया कि उनकी कविताओ में ‘अस्मिता की पहचान’ की नहीं वरन् मानवीय चेतना के पहचान और बचाव की तड़प दिखाई देती है। ‘मुक्तिबोध’ को विलक्षण रचनाकार बताते हुए उन्होंने यह भी कहा कि उनमें विरोधाभास बहुत ही कम है इसीलिए वे इतने खास और प्रासंगिक हैं। पूनम पाठक ने कहा कि ‘मुक्तिबोध’ सदैव उसी ईमानदारी की अपेक्षा करते दिखाई देते हैं, जो उन्होंने स्वयं रचनात्मक स्तर पर बरती है। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कुसुम जैन ने कहा कि अपना उपनाम ‘मुक्तिबोध’ रखने वाले रचनाकार ने ‘सर्व’ की मुक्ति में ही ‘स्व’ की मुक्ति स्वीकार की। कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए गीता दूबे ने कात्यायनी की कविता ‘मुक्तिबोध के लिए’ की आवृत्ति भी की। धन्यवाद ज्ञापन वाणीश्री बाजोरिया ने किया। संस्था की सदस्याओं के अतिरिक्त इतु सिंह, आदित्य गिरि ,बालेश्वर राय, प्रीति साव आदि भी कार्यक्रम में उपस्थित थे।