धुंध रूपी इस वायु प्रदूषण को स्मॉग कहते हैं। वस्तुत स्मॉग शब्द का प्रयोग पहली बार सन् 1905 में इंगलैंड के एक वैज्ञानिक डॉ हेनरी ने किया था। इस समय दिल्ली-एनसीआर समेत देश के कई क्षेत्र अतीत की तुलना में कहीं ज्यादा वायु प्रदूषण से ग्रस्त हैं। हवा इतनी विषाक्त हो चुकी है कि अब उसने सेहत पर हमला करना शुरू कर दिया है। यह समस्या आज इतनी बढ़ गई है कि अनेक लोग सड़कों पर मास्क पहनकर निकल रहे है। स्मॉग रूपी इस वायु प्रदूषण से सेहत को कैसे सुरक्षित रखा जाए और किन उपायों से इस समस्या को नियंत्रित किया जाए? इस संदर्भ में कुछ विशेषज्ञ डॉक्टरों से बातचीत…
धुंध रूपी इस वायु प्रदूषण को स्मॉग कहते हैं। स्मॉग रासायनिक पदार्थों व कोहरे के मिश्रण से बनता है, जो फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य अंगों पर ख्रराब असर डालता है वस्तुत: स्मॉग शब्द का प्रयोग पहली बार सन् 1905 में इंगलैंड के एक वैज्ञानिक डॉ हेनरी ने किया था। यह शब्द स्मोक (धुआं) और फॉग (कोहरा), इन दो शब्दों से मिलकर बना है।
प्राकृतिक घटनाओं या मानवीय गतिविधियों के कारण वातावरण में घुल गए हानिकारक रसायन वायु को प्रदूषित करते हैं। ये वायु प्रदूषक यदि वातावरण में उत्सर्जित होते हैं तो प्राथमिक प्रदूषक कहलाते हैं और यदि अन्य प्रदूषकों के साथ प्रतिक्रिया करके हानि पहुंचाते है तो सेकंडरी प्रदूषक कहलाते हैं। इनके मुख्य निशाने पर बच्चे, वृद्ध, दिल व फेफड़े के मरीज, डायबिटीज वाले और बाहरी वातावरण में काम करने वाले लोग आते हैं। इन प्रदूषकों के विषैले प्रभाव के कारण जमीन की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है। जन्म से होने वाले विकार, दमा, फेफड़े का कैंसर और सिर दर्द आदि होने का खतरा बढ़ जाता है।
प्रमुख वायु प्रदूषक – हाइड्रो कार्बन, सल्फर ऑक्साइड, पार्टिक्यूलेट सामग्री, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड, पार्टिक्यूलेट सामग्री
हजारों ठोस या तरल कण जो हवा में तैरते रहते हैं, जैसे धूल, मिट्टी और एसिड के कण। ये कण सेहत के लिए नुकसानदेह होते हैं।
कणों के विषैले अथवा कैंसर उत्पन्न करने वाले प्रभाव हो सकते हैं।
सूक्ष्म कण सीधे फेफड़ों तक पहुंच सकते है। नाइट्रोजन ऑक्साइड: इस प्रदूषक से सांस नली का मार्ग अवरुद्ध हो सकता है।
सल्फर ऑक्साइड: यह प्रदूषक तत्व गैसों के आदान-प्रदान के लिए फेफड़ों की क्षमता में कमी लाता है।
कार्बन ऑक्साइड: रक्त में मौजूद आयरन को कमकर सिरदर्द, थकान का कारण बन सकती है।
ओजोन परत का क्षीण होना: मानव निर्मित प्रदूषक वायुमंडल में ओजोन की परत को खराब करते हैं। सेकेंडरी प्रदूषकों से ओजोन परत क्षीण होती है। रासायनिक धुंध के कारक बाहरी प्रदूषण के अतिरिक्त घरेलू बॉयोमास र्ईंधन, सिगरेट, बीड़ी का धुआं आदि फेफड़े को नुकसान पहुचाते हैं। विश्व के 20 प्रदूषित शहरों में भारत के 10 शहर शामिल है। इनमें से चार उत्तर प्रदेश में है।
सरकार ये कदम उठाए – सरकार को वनीकरण की व्यापक योजना बनानी चाहिए। जिन वाहनों से धुआं ज्यादा निकलता है, उन पर प्रतिबंध लगना चाहिए। पराली (फसलों के अवशेष) जलाने पर प्रभावी नियंत्रण लगाना चाहिए। ऐसे हानिकारक पदार्थों पर रोक लगनी चाहिए, जो वातावरण को प्रदूषित करते हैं।
बॉयोमास ईंधन के प्रयोग में कमी लाने को बढ़ावा देना चाहिए। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई उज्ज्वला योजना एक सराहनीय कदम माना जा सकता है, जिससे घरेलू वायु प्रदूषण में कमी आने की संभावना है।
(साभार – दैनिक जागरण)