सुप्रीम कोर्ट ने रेप के एक मामल में सुनवाई करते हुए गुरुवार को कहा कि अगर रेप पीड़िता की गवाही विश्वसनीय हो तो पीड़िता से आरोप को साबित करने के लिए पुष्टिकर सबूत नहीं मांगे जाने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए के सीकरी और ए एम सप्रे की बैंच ने कहा कि यौन अपराधों के मामले में पीड़िता की गवाही महत्वपूर्ण है और आरोपी को सिर्फ पीड़िता के बयान के आधार पर दोषी ठहराया जा सकता है।
बैंच का जजमेंट लिखने वाले जस्टिस सीकरी ने कहा कि कोई लड़की या महिला अगर रेप और यौन छेड़छाड़ की शिकायत करती है तो उसे शक और अविश्वास की निगाह से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि अगर कोर्ट को पीड़िता का पक्ष स्वीकार करने में मुश्किल हो तो पुष्टि करने वाले कुछ सबूतों की मांग की जा सकती है।
बैंच ने यह फैसला एक व्यक्ति के अपनी भतीजी के साथ रेप करने के मामले में 12 साल की सजा सुनाते हुए दिया है। इस मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बच्ची और मां के बयानों में अंतर होने की वजह से आरोपी को बरी कर दिया था।
हाईकोर्ट ने कहा था कि पीड़ित परिवार ने एफआईआर दर्ज कराने में काफी देर की है परिवार ने घटना के तीन साल बाद एफआईआर दर्ज कराई। सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने कहा कि एफआईआर देर से दर्ज कराने की वजह से बलात्कार की शिकायत को झूठा नहीं करार दिया जा सकता। इस तरह के मामलों में लोग पुलिस के पास समाज में बदनामी की वजह से भी देरी से जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर’ दर्ज कराने का निर्णय उस वक्त और ज्यादा मुश्किल होता है जब कोई आरोपी परिवार का ही सदस्य होता है।
बैंच ने कहा,’कई अध्ययनों में सामने आया है कि इस तरह के मामलों में 80 प्रतिशत अपराधी अंजान नहीं बल्कि पीड़ित के परिचित होते हैं। खतरा बाहर से ज्यादा अंदर है। इस तरह के ज्यादातर मामलों में जब बलात्कार का अपराधी परिवार का सदस्य होता है तो लोग कई कारणों से रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाते।