मानव सभ्यता की सांस्कृतिक और बहुभाषी अभिव्यक्ति की सबसे कीमती विधा ‘कविता’ बहुत कम शब्दों में काफी कुछ कह जाती है। दिन के अंत में कविता हमें सुकून देती है, लेकिन ऐसे समय में जब किताबें पढ़ने के सिलसिले कम हो गये हैं, कविता के लिए लोग मुश्किल से समय निकाल पाते हैं।
इसके बावजूद एक व्यक्ति की हिन्दी कविताओं के प्रति ऐसी दीवानगी है कि उन्होने हिन्दी कविता को ही अपना काम बना लिया और लोगों तक यह संदेश पहुचाँने के लिए प्रयासरत है कि हिन्दी कविता कितनी शानदार होती है।
अमरिका के मियामी में बस चुके एक सफल फिल्म निर्माता और व्यवसायी, मनीष गुप्ता ने जब मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा, अमृता प्रीतम और कवियों की कविताओं के सम्बन्ध में लोगों की अरुचि देखी तो उन्होनें हिन्दी कविताओं को दोबारा प्रसिद्ध बनाने का,विशेष तौर पर युवाओंकेबीच में,प्रयास आरम्भ कर दिया।
उन्होनें “हिन्दी कविता” के नाम से यूट्यूब पर एक चैनल की शुरुआत की है, जिसमें हिन्दी कविता प्रेमियों की संख्या हजारों में पहुँच चुकी हैं।
1980 में जब मनीष मात्र ग्यारह वर्ष के थे,तब उन्होनें अपने कोर्स की किताब में पहली बार भवानी प्रसाद मिश्रा की कविता “सतपुड़ा के घने जंगल” पढ़ी थी। यह उनके कविताओं के साथ प्रेम की शुरुआत थी।
मनीष ने युवावस्था में अनगिनत दोपहरें छिंदवाड़ा में अपने दोस्त के साथ पेड़ के नीचे बैठकर मुन्शी प्रेमचन्द की कहानियाँ, रामधारी सिंह दिनकर की कविताएँ और मार्क ट्वेन के हिन्दी रुपान्तर पढ़कर बितायीं। शब्दों के साथ इसी सम्बन्ध को 47 वर्षीय मनीष ने अपने यूट्यूब चैनल ‘हिन्दी कविता’ में पेश किया। अपने युवावस्था और मुम्बई में अपने हिन्दी चैनल शुरु करने के बीच के समय में मनीष अमरिका चले गए। वहाँ एक पेन्टर के रुप में काम किया, मियामी में बीच क्लब चलाया, टीवी शोज़ का निर्माण किया और दो फीचर फिल्मों-इण्डियन फिश (2003) और होली (2006) का निर्देशन किया। वह इण्डियन डेली में एक कॅाल्मिस्ट के रुप में कार्य कर रहे थे और अभी हाल में ही अमरीका से तब लौटे जब हिन्दी कविता चैनल का ख्याल उनके दिमाग में आया।
2013 में अपने दोस्तों के साथ बीते दिनों में प्रेमचन्द, निराला और दिनकर को पढ़ने के बारे में हुई बातचीत में अन्तत: मनीष ने हिन्दी कविता चैनल को शुरु करने का फैसला किया। इस प्रोजेक्ट के रिसर्च के दौरान वे देश के विभिन्न कॅालेज के छात्रों से मिले, पब्लिशर्स और पुस्तक-विक्रेताओं से मिले और उनसे यह जानकारी हासिल की, कि हिन्दी कविता इसलिए प्रसिद्ध नहीं रही क्योकिं इसका “स्टाइल कोटैन्ट” कम हो गया है।
इस विषय में सोचते हुए कि हिन्दी कविता किस तरह से नयी पीढ़ी को प्रभावित कर सकती है, मनीष को एक शक्तिशाली विचार दिमाग में आया। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन कलाकारों के द्वारा जाने-माने समकालीन और पुराने कवियों की कविताएँ प्रस्तुत कराने का निश्चय किया। इस का नतीजा बेहतरीन रहा मनोज वाजपेयी द्वारा पढ़ी गयी ‘दिनकर’ की ‘रश्मिरथी‘को 1,90,000 दर्शक मिले और लेखकअभिनेता पीयूष मिश्राकी स्वरचित कविता ‘प्रेमिकाओं के नाम‘ को 86,000 सेज्यादा दर्शक मिले।
तीन साल पहले शुरू किये गये इस यूट्यूब चैनल को बेइंतहा मुहब्बत मिली। इसके चैनल के प्रशंसकों ने इसका नाम ‘कविताओं का कोक स्टूडियो’ रख दिया। मनीष गुप्ता कहते है, “जब हमने इसे शुरु किया तो लोगों को हिन्दी कविताएँ पंसद आयीं। आज के समय में कई अंग्रेजी-क्लब भी हिन्दी कविता से जुड़ना चाहते है क्योकिं कविताओं को पेश करने का अंदाज काफी निराला है।”
हिन्दी कविता वीडियो के अभिनेता और लेखक अपने पंसदीदा कवियों की कविताएँ पढ़ते हैं-गीतकार -लेखक वरुण ग्रोवर द्वारा उदय प्रकाश की “मैं लौट जाऊंगा” और अभिनेता राजेन्द्र गुप्ता द्वारा हुबनाथ की “मुसलमान”, अभिनेत्री स्वरा भास्कर और रसिका दुग्गल द्वारा उनके पंसदीदा कवि/कवियित्री पाश और अमृता प्रीतम की रचनाएँ पढ़ी गयी है, जो काफी विस्तृत रूप से देश में प्रसिद्ध हुई।
इंडियन एक्सप्रेस को दिए अपने एक साक्षात्कार में स्वरा भास्कर कहती हैं:-
“हाल ही में, मेरी दोस्त के घर में एक सब्जीवाले ने मुझसे कहा कि वो पढ़ नही सकता लेकिन उसने मेरे कविता-पाठ का वीडियो देखा है। इस वाकये ने मुझे ये भी एहसास कराया कि देशी लोग सिर्फ मसाला हिन्दी फिल्में ही पंसद नहीं करते, बल्कि वे हिंदी साहित्य का भी आनंद लेते हैं।”
जाने-माने अभिनेता सौरभ शुक्ला कहते हैं,”इन खूबसूरत वीडियो ने मुझमें कविताओं के लिए प्यार लौटा दिया,यह एक एहसास है जो हिन्दी कविता के प्रशंसकों को लगातार बढ़ा रहा है।
गीतकार-लेखक वरुण ग्रोवर कहते हैं:-
हिन्दी कविता का कोई भी व्यवसायिक चैनल कभी नहीं था। लोगों को कविताएँ पसन्द हैं, लेकिन यह हमेशा स्कूली किताबों से ही जुड़ी रही। इस चैनल के माध्यम से हिन्दी कविता में आधुनिकता आ गयी।
इन छोटे, साधारण और आनंददायक वीडियो का निर्माण सामान्यतः मनीष के घर पर ही होता है, जिसमें बैकग्राउण्ड में वायलिन बजता रहता है और वक्ता अपनी चुनी हुई कविता के बारे में वर्णन करते हैं।मनीष के पास फिल्म इंडस्ट्री के बेहतरीन तकनीशियनों का सहयोग है, जो उन्हें सिनेमेटोग्राफी, एडिटिंग और ग्राफिक्स में मदद करते हैं।
मनीष बताते हैं कि उन्होंने कुछ काफी पुरानी, भूली हुयी कविताओं को भी ढूँढ निकाला है, जैसे कि नजीर अकबराबादी की और कुछ कम जानी हुयी आवाजें जैसे डोगरी भाषा के कवि पद्मा सचदेव।
ये देखते हुए कि छात्रों का हिन्दी साहित्य से रूझान लगातार घट रहा है,गुप्ता चाहते है कि हिन्दी कविता को सभी कॅालेजों तक ले जाये, जिसमें सभी आईआईएम, सभी आईआईटी, दिल्ली विश्वविद्यालय और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय भी शामिल हैं। उन्होनें सभी कॅालेजों में वीडियो दिखाने की योजना बनाई है और कोशिश है कि कलाकार स्वयं जाकर वहाँ कविताएँ पढ़े।
मनीष गुप्ता मानते हैं कि अंग्रेजी एक बहुत प्रसिद्ध और बोलचाल की सामान्य भाषा बन चुकी है, लेकिन भारत देश में अपनी भाषा में बात करने में लोगों को ज्यादा आसानी होती है।
वे कहते हैं,”मुझे अंग्रेजी से कोई समस्या नहीं है, यह भी एक बहुत अच्छी भाषा है, किन्तु यह हमारी नही है, इसलिए हमें इसे बहुत ज्यादा नही अपनाना चाहिए। हम अपनी भाषा को विकसित करें।
मनोविज्ञानियों का भी मानना है कि जब हम अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते है तो शब्दों के साथ ज्यादा गहरा जुड़ाव महसूस करते है और बेहतर तरीके सेअपनी बात कह पाते है।
मनीष के लिए हिन्दी कविता के माध्यम से कवियों और कविताओं की पुनः स्थापना उनकी जिंदगी का सबसे शानदार प्रोजेक्ट है। वह और उनकी टीम हिन्दी, उर्दू और हाल ही में पंजाबी में भी कविताओं को प्रोत्साहित कर रहे हैं। वे जल्द ही मराठी, गुजराती और बंगाली को भी अपने प्रोजेक्ट में शामिल करने वाले हैं।