असम के गुवाहाटी में सुंदर नीलाचल पहाड़ियों के शीर्ष पर, आपको सबसे पुराने शक्ति पीठों में से एक, तांत्रिक देवी को समर्पित प्राचीन कामाख्या मंदिर मिलेगा। यह मंदिर माँ कामाख्या को समर्पित 108 शक्ति पीठों में से एक है। यदि आप यहाँ मुख्य मंदिर परिसर में चारों तरफ देखेंगे तो आपको 10 छोटे छोटे मंदिर दिखाई देंगे जो देवी माँ काली के 10 रूपों को समर्पित हैं –जो नाम निम्न हैं, माँ काली, देवी धूमावती, बगलामुखी, तारा, मातंगी, भैरवी, कमला, छिन्नमस्ता, भुवनेश्वरी और त्रिपुरा सुन्दरी।
पुराण कथा का वृतांन्त
देवी कामाख्या की उत्पत्ति
कामाख्या शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘काम’ से हुई है, जिसका अर्थ है प्रेम या प्रेम इच्छा। प्रेम के देवता कामदेव का एक अभिशाप के कारण का पुरूषत्व भंग हो गया था। उन्होंने मां शक्ति की योनि और गर्भ की उपासना की जिसके फलस्वरूप वह शाप से मुक्त हुए। उन्होंने अपनी शक्ति को पुन: प्राप्त कर लिया और ‘कामाख्या’ देवी के मंदिर की स्थापना की तभी से वहाँ पर उनकी पूजा की जाने लगी। कुछ ऐतिहासिक अध्ययनों से यह भी पता चला है कि कामख्या मंदिर एक ऐसा स्थान है जहां भगवान शिव और देवी सती के बीच प्रेम की शुरूआत हुई थी।
मंदिर में अपूर्ण सीढ़ियां:
नरका नाम के एक असुर या दानव को देवी कामख्या से प्रेम हो गया था। उसने उनसे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। देवी कामाख्या को नरका में कोई रुचि नहीं थी, उन्होंने उससे एक शर्त रखी कि वह मंदिर में नीलाचल पहाड़ी के नीचे से एक रात में ही सीढ़ियों का निर्माण करे। यदि उसने सीढ़ी का निर्माण कर लिया तो वह निश्चित रूप से उससे विवाह करेंगी। नरका ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया और एक रात में ही सीढ़ी का निर्माण करने के लिए सभी तरह से कोशिश करने लगा। बस जब वह सीढ़ियों के निर्माण का कार्य पूरा ही होने वाला ही था यह देखकर माँ कामख्या परेशान हो गई और उस असुर को रोकने के लिए एक चाल चली। उन्होंने एक मुर्गे को वश में करके उसकी आवाज निकाली, ताकि उस दैत्य को रात्रि के समाप्त होने का अनुभव हो। नरका को ऐसा लगा कि वह सुबह होने से पहले सीढ़ीयाँ बनाने के कार्य को पूरा नहीं कर सकता और उसने आधी बनी हुई सीढ़ीयां ही छोड़ दी। इसी कारण आज भी, सीढ़ी अधूरी हैं और इन्हें मेखेलौजा पथ के नाम से जाना जाता है। अधिकांश तीर्थ यात्री मंदिर तक पहुंचने के लिए इन सीढ़ियों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन कारों और बसों द्वारा मंदिर तक पहुंँचने के लिए एकपतला और मोड़दार रास्ता भी है।
देवी शक्ति की कोई भी मूर्ति नहीः
यह एक ऐसा मंदिर है जहाँ आपको माँ शक्ति की भी कोई मूर्ति नहीं मिलेगी। यहाँ पर मंदिर में गुफा के एक कोने में देवी की योनि की गढ़ी हुई छवि आपको दिखाई देगी और यही पूजा के मुख्य स्त्रोत के रूप में पायी जाती है।
प्राकृतिक अस्तित्व
यह बहुत ही अद्भुत है कि आज भी, प्राकृतिक तरीके से योनि नम रहती है सोते से निकलने वाला पानी योनी के आकार के तख्ते के माध्यम से बहता है।
देवी का रक्तस्त्राव
कामाख्या मंदिर भी खून बह रही देवी या मासिक धर्म वाली देवी के रूप में प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि जून या आषाढ़ के महीने में, देवी का रक्तस्राव या मासिक धर्म होता है। योनि या गर्भगृह से बहने वाला सामान्य पानी का रंग भी लाल हो जाता है।
मुख्य मंदिर
यह पवित्र स्थान या योनि स्थापना मंदिर के बीच एक कक्ष में स्थित है। तीर्थ यात्री गर्भ गृह में जाने के लिए एक संकीर्ण गली से धीरे-धीरे होकर जाते हैं। गली में कुछ सीढ़ियों चढ़ने के बाद, आप एक बहुत ही छोटे आकार का तालाब पाएंगे जहां वास्तविक झरने का पानी बहता है। तीर्थयात्री तालाब के किनारे बैठकर अपनी उपासना को प्रस्तुत करते हैं। वहाँ पर आप प्रतीकात्मक योनि अंग को देख सकते है जोकि एक लाल कपड़े से ढकी रहती है।
महान अंबुबाची मेला
महान अंबुबाची मेला, जिसे प्रजनन समारोह के रूप में भी जाना जाता है, यह मेला कामख्या मंदिर में पांच दिनों के लिए जून के महीने में होता है। इस समय के दौरान, मंदिर तीन दिनों के लिए बंद रहता है और यह माना जाता है, इस समय देवी मासिक धर्म चल रहा होता है। वास्तव में, देश के विभिन्न भागों से भक्त पहले दिन से ही मंदिर परिसर में कामाख्या देवी की प्रशंसा वाले महिमा गीत गाना शुरू कर देते हैं। वे तीन दिन और रात प्रतीक्षा करते हैं और जब चौथे दिन मंदिर का द्वार खुलता है, तो हजारों भक्त अपनी प्रार्थनाओं को प्रस्तुत करने के लिए अंदर आते हैं और फिर पवित्र जल को कामाख्या देवी के भक्तों में वितरित किया जाता है।
कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं
आज तक, कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है कि वास्तव में पानी लाल क्यों हो जाता है। लेकिन मासिक धर्म एक महिला को जन्म देने वाली (संतान उत्पन्न करने वाली शक्ति) का प्रतीक है। इसलिए जो कुछ भी कारण है कामख्या मंदिर हर महिला के भीतर इस ‘शक्ति’ या साधना को मनाता हैं।