बरेली। हर बार जश्ने आजादी के मौके पर सवाल उठता है कि मुसलमान मदरसों और घरों पर झंडा फहरा सकते हैं या नहीं? इस बार दरगाह आला हजरत से इस मसले पर फतवा ही जारी कर दिया गया। साफ कर दिया कि झंडा फहराने या जश्न मनाने में किसी तरह का कोई हर्ज नहीं है।
वतन पर शहीद होने वालों को खिराजे अकीदत (श्रद्धांजलि) पेश करने के सवाल पर कहा है “ऐसे सुन्नी बरेलवी मजहबी रहनुमा और उलमा को पेश की जाए, जिनका अकीदा सही था।” दरगाह से इस सिलसिले में सवाल भी पूछा गया था। जवाब में दरगाह आला हजरत के मुफ्ती ने कहा कि शरीयत के दायरे में रहकर जश्न मनाने में कोई हर्ज नहीं है। इस्लामी कानून के उसूलों का एहतराम करते हुए मुल्क का झंडा भी फहरा सकते हैं।
बेहतर यह है कि आजादी के जश्न में उन मुस्लिम उलमा और मजहबी रहनुमाओं को खिराजे अकीदत पेश करें, जिन्होंने जालिम अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई थी। अपनी जान व माल कुर्बान कर दिया। ऐसा करके फिरकापरस्तों की साजिश को भी नाकाम किया जा सकता है, जो मुसलमानों के खिलाफ मुल्क से दुश्मनी का इल्जाम लगाते रहते हैं।
नफरत का माहौल खड़ा करते हैं और तोहमत लगाते हैं। ऐसी ताकतों को जवाब देने के लिए आजादी के जश्न में बढ़ चढ़कर हिस्सा लें। इस जश्न के लिए हमारे बुजुर्गों ने भी कुर्बानियां दी थीं। आजादी की फिजा में सांस लेने की तमन्ना की थी। दरगाह आला हजरत के मदरसा मंजरे इस्लाम के मुफ्ती मुहम्मद सलीम नूरी ने फतवा जारी कर सभी मुसलमानों से जश्ने आजादी में हिस्सा लेने का आह्वान भी किया है।