पिछले महीने बेटियों के लिए महत्वपूर्ण फैसला आया था…वह यह कि पैतृक सम्पत्ति पर उनका अधिकार भी बेटों की तरह माना जाएगा मतलब उनको भी हिस्सा मिलेगा। कहने की जरूरत नहीं है कि सुप्रीम कोेर्ट का यह निर्णय एक झटके की तरह था और इसे लेकर तंज भरी प्रतिक्रियाएँ आयीं। घर – परिवार के टूटने की आशंका भी जतायी गयी और इससे भी हैरत भरी बात थी कि इन प्रतिक्रियाओं का विरोध बहुत कम या न के बराबर देखा गया…खुद लड़कियाँ भी सामने नहीं आयीं। हम यह बात इसलिए भी कर रहे हैं कि अब जल्दी ही दुर्गा पूजा आऱम्भ होगी तो देवी पूजा का आडम्बर आरम्भ होने वाला है। हम बात जब स्त्रियों की कर रहे हैं तो सीधा सम्बन्ध माँओं और बेटियों और बहुत हुआ तो पत्नी से जुड़ेगा…मगर जिस रिश्ते पर हमारी नजर नहीं जाती…वह एक रिश्ता है बहन का..।
बहनों को लेकर ज्यादा बात नहीं होती। छवि उसकी बेचारी की है जिसे हर समय संरक्षण की जरूरत है मगर वह अधिकार माँग सकती है या उसका अपना एक व्यक्तित्व हो सकता है। इस बात को पचाना भारतीय समाज के लिए कठिन है। परिवारों को उसका मुखर होना नहीं भाता और यही कारण है कि देश की शीर्ष अदालत में बेटियों के हक में जब फैसला आया तो पिता के रूप में तो पुरुषों ने स्वीकार किया मगर भाइयों के रूप में इसे खारिज भी कर दिया….एक ही समाज के दो चेहरे हैं…बात बड़ी है गहरी भी….आगे – आगे देखते जाइए कि क्या होता है…।
कोरोना ने बहुत कुछ छीना और हमारे पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को ले गया,..उनको हमारा नमन…शुभजिता को पढ़ते रहिए और जुड़ते रहिए…कहने को बहुत कुछ है…कहते रहेंगे…।