बनारसी पान, तिरंगा बर्फी बने हथियार, देश के लिए लड़ीं तवायफें

देश को आजाद कराने के लिए बनारस में युवा-बुजुर्ग सड़क पर लड़ रहे थे तो यहां की मिठाई, पान और तवायफें उनकी हौसला-अफजाई कर रही थीं। उस दौर में पहली बार बनारस में ही तिरंगा बर्फी बनी जो राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रंग की थी। पूरी दुनिया में मशहूर बनारसी पान पर भी अंग्रेजों ने बैन लगाया था। तवायफों से तो अंग्रेजी हुकूमत हिल गई थी। बनारस के चौक इलाके के प्रमुख बाजार दालमंडी की गली में आजादी के आंदोलन के दौर में राजेश्‍वरी बाई, जद्दन बाई से लेकर रसूलन बाई तक के कोठे पर संगीत की महफिलें सजती थीं। इतिहास के जानकार डॉ. प्रवेश भारद्वाज की मानें तो महफिलों में अंग्रेजों को देश से निकालने की रणनीति तय होती थी। मशहूर अभिनेत्री नर्गिस की मां और संजय दत्त की नानी जद्दन बाई ने कोठे पर आए दिन अंग्रेजों के छापे से तंग आकर दालमंडी गली छोड़ दी थी। ठुमरी गायिका राजेश्‍वरी बाई तो हर महफिल में अंतिम बंदिश ‘भारत कभी न बन सकेला गुलाम…’, गाना नहीं भूलती रहीं।  ‘फुलगेंदवा न मारो, मैका लगत जोबनवा में ….’, जैसे गीत से मशहूर रसूलन बाई ने तो आभूषण तभी पहने जब देश आजाद हो गया। तवायफ दुलारी बाई के ललकारने पर उसके सबसे खास नन्‍हकू ने कई अंग्रेजों के सिर धड़ से अलग कर दिए थे। कजरी गायिका सुंदरी के प्रेमी नागर को ब्रितानी सेना से मोर्चा लेने पर कालापानी की सजा हो गयी। ‘स्‍वर जीवनी’ कही जाने वाली सिद्धेश्‍वरी देवी भी महफिलों में देश भक्ति के गीत जरूर गाती रहीं।

बनारसी पान पर प्रतिबन्ध
मशहूर बनारसी पान पर भी अंग्रेजों ने बैन लगा दिया था। तवायफों के कोठे वाली गली दालमंडी के पास आजादी के आंदोलन के दौर में पान की दुकान चलाने वाले रामस्‍वरूप के वंशज पवन चौरसिया बताते हैं कि अंग्रेजों को शक था कि स्‍वतंत्रता आंदोलन में पान की भी कोई भूमिका है इसलिए पान बेचने से लेकर खाने तक पर पाबंदी लगा दी थी। बावजूद इसके चोरी-चोरी घर-घर पान पहुंचता था। बनारसी पान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि मुंह में रखते ही घुल जाता है। इसमें लगाया जाने वाला कत्‍था, चूना और सुर्ती पानवाले घर में तैयार करते हैं।

बर्फी और लड्डू के रूप में तिरंगा घर-घर

बनारस की रंग बिरंगी मिठाइयों का कोई जवाब नहीं है। देश-विदेश में मशहूर ‘राम भंडार’ में पहली बार तिरंगे के रंग वाली तिरंगी बर्फी बनी तो अंग्रेजों के होश उड़ गए थे। तिरंगे पर रोक के दौर में लोग तिरंगी बर्फी हाथों में लिए घूमते रहे। इसके बाद बनारस से ही जवाहर लड्डू, गांधी गौरव, मदन मोहन, वल्‍लभ संदेश, नेहरू बर्फी के रूप में राष्‍ट्रीय मिठाइयों की श्रृंखला सामने आई। तिरंगी बर्फी और तिरंगे जवाहर लड्डू में आज की तरह रंग का उपयोग नहीं हुआ था। हरे रंग के लिए पिस्‍ता, सफेद के लिए बादाम और केसरिया के लिए केसर का प्रयोग कर तिरंगे का रूप दिया गया था।

(साभार – नवभारत टाइम्स)

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।