जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों नामों का खुलासा करे आरबीआई : सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों समेत बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थानों की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट का खुलासा करना ही होगा। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि राष्ट्रीय आर्थिक हित का हवाला देकर आरबीआई आरटीआई के तहत बैंकों की वार्षिक जांच रिपोर्ट आदि का खुलासा करने से इनकार नहीं कर सकती, जब तक कोई कानून उसके आड़े नहीं आ रहा हो। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने आरटीआई के तहत बैंकों से संबंधित सूचना का खुलासा करने के लिए आरबीआई से अपनी नीति की समीक्षा करने के भी निर्देश दिए। पीठ ने कहा कि यह कानून के तहत उसकी ड्यूटी की बाध्यता है। साथ ही आरबीआई को 30 दिसंबर, 2016 को जारी उस डिस्क्लोजर (प्रकटन) नीति को वापस करने का आदेश दिया है जिसमें जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों, बैंकों की वार्षिक जांच रिपोर्ट आदि से संबंधित जानकारी का खुलासा नहीं करने की बात थी। आरबीआई का कहना था कि इस नीति के तहत इन जानकारियों का खुलासा न करना उसके नियंत्रण और नियम के तहत है। पीठ ने इस पर नाराजगी जताई कि 16 दिसंबर 2015 के उसके आदेश का पालन नहीं किया गया। अपने आदेश में कोर्ट ने आरटीआई के तहत आरबीआई को बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थानों की वार्षिक जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का आदेश दिया था। पीठ ने कहा कि आरटीआई के तहत आरबीआई बैंकों की वार्षिक रिपोर्ट समेत अन्य जानकारी को सार्वजनिक करने के लिए बाध्य है, बशर्ते कोई मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा न हो। हमारे आदेश का पालन न किए जाने पर हम सख्त रुख अपना सकते थे लेकिन अब आरबीआई को डिस्क्लोजर पॉलिसी को वापस लेने का आखिरी मौका देते हैं। कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि फिर से आदेश की अवहेलना की गई तो वह उसे बेहद गंभीरता से लेगा। दिसंबर, 2015 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आरबीआई 30 दिसंबर, 2016 को डिस्क्लोजर पॉलिसी लेकर आई थी। इसमें आरटीआई के तहत सभी जानकारी का खुलासा न करने की बात थी।
अवमानना याचिका दायर की थी
2015 के आदेश का पालन नहीं करने पर आरटीआई कार्यकर्ताओं सुभाष चंद्र अग्रवाल, गिरीश मित्तल समेत अन्य ने आरबीआई के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि आरबीआई ने आर्थिक हित, व्यावसायिक विश्वास, भरोसे का संबंध या जनहित का हवाला देते हुए जानकारी देने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने आरबीआई से आईसीसीआई बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की वार्षिक जांच रिपोर्ट के अलावा सहारा समूह की कंपनियों से संबंधित जानकारी मांगी थी। एक अन्य याचिकाकर्ता ने विदेशी डेरिवेटिव कांट्रेक्ट मामलों में देश को हुए 32000 करोड़ रुपये के नुकसान के बारे में बैंकवार जानकारी मांगी थी।

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