म मेडिकल पढ़ रहे विपिन खडसे, ट्रेन की जनरल बोगी में एक महिला के प्रसव में मदद कर हीरो बन गए हैं। हालांकि ये बेहद मुश्किल था क्योंकि प्रसव में काफी जटिलताएं थीं। लेकिन एक महीने पहले ही इंटर्नशिप शुरू करने वाले विपिन के पास किस्मत से सर्जिकल ब्लेड और पट्टियां थीं। इसके अलावा वो व्हाट्सऐप पर अपने कॉलेज के रेजिडेंट डॉक्टर्स के सम्पर्क में थे जिन्होंने मुश्किल प्रसव के दौरान उनकी मदद की। 24 साल के विपिन खडसे ने इस घटना के बारे में बीबीसी को विस्तार से बताया।
विपिन की कहानी उन्हीं की जुबानी-
मैं सात अप्रैल को अपने घर अकोला से नागपुर ट्रेन से जा रहा था। वर्धा जंक्शन के बाद चेन खींच कर ट्रेन रोकी गई थी। पता चला कि एक महिला को प्रसव होना था, लेकिन इसमें दिक्कत के चलते महिला की हालत खराब हो गई थी। उसके रिश्तेदार और टिकट चेकर डॉक्टर की तलाश कर रहे थे। मैं इस उम्मीद में चुप रहा कि उन्हें कोई अधिक अनुभवी डॉक्टर मिल जाएगा, मैंने इससे पहले कोई डिलीवरी कराई नहीं थी बस एमबीबीएस कोर्स में प्रैक्टिकल के दौरान देखा था। लेकिन जब पूरी ट्रेन में उन्हें कोई नहीं मिला तो मैंने मदद करने का फैसला किया क्योंकि आम तौर पर डिलीवरी सामान्य ही होती है। हम स्लीपर कोच से सुबह दस बजे जनरल बोगी में गए, जहां बर्थ पर लेटी महिला को भीड़ घेरे हुए थी और गर्मी के मारे उसका बुरा हाल था। वो बार-बार बेहोश हो जा रही थी। असल में शिशु के सिर की बजाय कंधा बाहर आ रहा था। इस स्थिति को चिकित्सा विज्ञान में शोल्डर प्रजेंटेशन कहा जाता है जिसमें बच्चा बाहर नहीं आ पाता है और जच्चा-बच्चा दोनों के लिए खतरा रहता है।
व्हाट्सऐप से डॉक्टरों ने की मदद
मैं बहुत ज्यादा घबरा गया था क्योंकि जिंदगी में पहली बार ऐसी स्थिति का सामना कर रहा था। उस समय मेरे पास सर्जिकल ब्लेड, एक रोल बैंडेज और मेडिकल दस्ताने थे क्योंकि इंटर्नशिप के दौरान स्टूडेंट को इन चीजों को अपने साथ रखना होता है। हालात बहुत मुश्किल थे क्योंकि शोल्डर प्रजेंटेशन वाली डिलीवरी मैंने कभी देखी नहीं थी। ऐसी स्थिति में मैंने गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज नागपुर के स्त्रीरोग विभाग के सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों को फोन किया। उन्होंने मुझे व्हाट्सऐप के जरिए मदद की, उनमें से कुछ ने मुझसे तस्वीरें मंगाईं और फिर मुझे बताया कि इस स्थिति में क्या-क्या करना है।उन्होंने मुझे एक छोटा का कट लगाने को कहा जिसे एपिसियोटॉमी कहा जाता है। इसमें हाथ से शिशु को सीधा किया जाता है और फिर निकाला जाता है। उस समय मैं बहुत घबरा गया था क्योंकि यह बहुत रिस्की था, लेकिन मेरे पास स्टेराइल दस्ताने, कॉटन रोल बैंडेज और ब्लेड था। अगले स्टेशन पर मेडिकल सुविधाएं मौजूद थीं, लेकिन अभी उसे आने में बहुत समय था, इसलिए मैंने जोखिम उठाने का फैसला किया।
सर्जरी में तीन महिला यात्रियों ने की मदद
महिला की स्थिति ठीक नहीं थी और बहुत सारा पानी शरीर से निकल चुका था इसलिए उसे बीच-बीच में पानी पिलाया जा रहा था। इसके अलावा रेजिडेंट डॉक्टर्स फोन पर लगातार मुझसे बात कर रहे थे। एक महिला यात्री को डिलीवरी कराने का कुछ अनुभव था। जब मैं कट लगा रहा था तो दो महिलाएं अपनी उंगलियों से वजाइना को दोनों तरफ चौड़ा करने की कोशिश कर रही थीं और एक महिला शिशु को बाहर निकालने की कोशिश कर रही थी। किसी तरह हम शिशु को बाहर निकालने में सफल हो गए। लेकिन एक तो खासी गर्मी पड़ रही थी, दूसरे जनरल बोगी थी और उमस भी काफी थी।
नवजात की सांस नहीं चल रही थी
ऐसी स्थिति में नवजात बच्चा ठीक से सांस नहीं ले पा रहा था। पैदा होने के बाद वो रोया भी नहीं था। मैंने तुरंत शिशु विशेषज्ञ डॉक्टर को कॉल किया तो उन्होंने बच्चे की पीठ पर थपकी देने और उसके गले में फंसी चीजों को साफ करने की सलाह दी। आखिरकार रुक-रुक कर सांस लेने के बाद उसकी सांस सामान्य चलने लगी। बच्चे को बाहर निकालने के बाद मैं महिला का खून बहने से रोकने की कोशिश कर रहा था। बच्चे के सांस चलने पर मेरा ध्यान नहीं गया था। मैंने स्टेराइल रोल बैंडेज और ट्रेनों में मिलने वाली ठंडी पानी की बोतलों से खून रोकने में कामयाबी हासिल की। जब खून बंद हुआ तब देखा कि बच्चे की सांस बहुत रुक-रुक कर चल रही थी। सबसे ज्यादा राहत तब मिली जब प्रसव हो गया और बच्चा भी सांस लेने लगा। उस समय पूरे कम्पार्टमेंट के लोग एक परिवार की तरह काम कर रहे थे, मुझे किसी चीज की जरूरत होती थी वो मुझे तुरंत मुहैया की जा रही थी। नागपुर स्टेशन पर एम्बुलेंस और डॉक्टर की टीम खड़ी थी और जैसे ही ट्रेन रुकी जच्चा-बच्चा को एम्बुलेंस में ले जाया गया, महिला को तुरंत ड्रिप चढ़ाई गई।खुशी के इस माहौल में नवजात के पिता ने आकर मेरे हाथ पर 101 रुपये रख दिए। जब मैंने अपने कॉलेज के रेजिडेंट डॉक्टर्स को सूचना दी तो उन्होंने जश्न मनाना शुरू कर दिया। मेरे टीचर ने शोल्डर प्रजेंटेशन जैसे जटिल प्रसव को सफल तरीके से कराने के लिए मेरी सराहना की और बधाई दी।
इसलिए किया डॉक्टर बनने का फैसला…
विपिन ने इसे साथी यात्रियों, महिलाओं, डॉक्टरों, रेलवे कर्मचारियों और मदद करने वाले सभी लोगों की कामयाबी बताया। हालांकि उसके बाद उस परिवार से दोबारा सम्पर्क नहीं हो पाया, लेकिन वहां के कुछ जानने वालों ने उन्हें फोन कर बधाई दी। विपिन बताते हैं कि उनके पिता किसान हैं और उनके इलाके में डॉक्टर बहुत कम हैं, इसीलिए इस पेशे में आने का उन्होंने फैसला किया। एक साल की इंटर्नशिप के बाद उन्हें एमबीबीएस की डिग्री मिल जाएगी और वो पेशेवर डॉक्टर हो जाएंगे।