25 हजार महिलाओं की जाँच हुई, 30 अस्पतालों में उपलब्ध
बेंगलुरु : गीता मंजूनाथ के हेल्थ स्टार्टअप ‘निरामई’ ने ऐसी एआई बेस्ड थर्मल सेंसर डिवाइस बनाई है, जो ब्रेस्ट कैंसर की पहचान शुरुआती स्टेज में ही कर लेती है। यानी तब, जब इस बीमारी के लक्षण महसूस भी नहीं होते। गीता बताती हैं कि अभी देश में मेमोग्राफी से ब्रेस्ट कैंसर को डिटेक्ट किया जाता है। 45 साल से कम उम्र की महिलाओं में यह तरीका उतना सफल नहीं है। लेकिन थर्मल सेंसर डिवाइस छाती के घटते-बढ़ते तापमान पर नजर रखती है, तस्वीरें लेती है। उनका विश्लेषण कर असामान्यता की पहचान करती है। इसमें सिर्फ 10-15 मिनट लगते हैं। इस डिवाइस से 5 एमएम के छोटे ट्यूमर की पहचान भी आसानी से हो जाती है।
इससे जांच के अच्छे नतीजे मिले तो उसी रिसर्च टीम के साथ ‘निरामई’ की नींव रखी। हमारी डिवाइस से अब तक 25 हजार से ज्यादा महिलाओं की स्क्रीनिंग की जा चुकी है। बेंगलुरू, मैसूरु, हैदराबाद, चेन्नई, मुंबई, दिल्ली जैसे 12 शहरों और 30 से ज्यादा अस्पतालों में यह डिवाइस इस्तेमाल हो रही है। संस्था को निवेशकों से 50 करोड़ रुपये का फंड भी मिला है। हाल ही में गेट्स फाउंडेशन ने निरामई को रिवर ब्लाइंडनेस की रोकथाम के लिए सॉफ्टवेयर बनाने का जिम्मा दिया है।
चचेरी बहनों की मौत के बाद कुछ करना चाहती थी
अपने परिवार में ब्रेस्ट कैंसर से हुई मौतों को देखकर गीता सहम गई थीं। इसके बाद उन्होंने इस दिशा में कुछ करने की ठानी थी। वे बताती हैं, ‘कुछ साल पहले मेरी दो चचेरी बहनों की मौत 30 साल से भी कम उम्र में ब्रेस्ट कैंसर से हो गयी थी। अगर कैंसर का समय पर पता चल जाता, तो वे बच सकती थीं। इसके लिए मैं कुछ करना चाहती थी। मैंने अपने एक साथी से थर्मोग्राफी पर बात की। यह इंफ्रारेड इमेज के आधार पर विश्लेषण की तकनीक है। मैंने एक छोटी रिसर्च टीम तैयार की और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से कैंसर की जल्द पहचान करने में सक्षम एक डिवाइस बनाई।
देश में सिर्फ 66 महिलाएं ही ब्रेस्ट कैंसर से बच पाती है
स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 1 लाख महिलाओं में से 26 ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित हैं। यह देश में सबसे तेजी से बढ़ता कैंसर है। इधर, लेन्सेट की रिपोर्ट कहती है कि भारत में 60% मामलों में कैंसर समय पर डायग्नोज ही नहीं हो पाता। इस वजह से 66% महिलाएं ही सर्वाइव कर पाती हैं, जबकि विकसित देशों में 90% तक महिलाएं इस कैंसर से लड़कर ठीक हो जाती हैं। इस स्थिति में बदलाव लाने के लिए बेंगलुरू की एक आईटी प्रोफेशनल संघर्ष कर रही हैं।
(साभार – दैनिक भास्कर)