गांधी देश के लिए पहले से ज्यादा प्रासंगिक हैं

कोलकाता :  गांधी की बातें सुनी जाएंगी तो संभव है मानवजाति कुछ समय तक और जी सके। गांधी के अपने दौर में ही जब अपने ही पराए हो गए थे तो आज के दौर में गांधी को कौन सुनेगा। हमें नए सिरे से सोचना होगा कि गांधी की अहिंसा आज की हिंसा की राजनीतिक के बीच कितनी अधिक प्रासंगिक है। आज के माहौल में असहमति का साहस घटता जा रहा है जबकि एक लोकतांत्रिक समाज में असहमति की आजादी होनी चाहिए। सांसार को अपने पूरे इतिहास में गांधी की कभी इतनी जरूरत नहीं थी जितनी आज है, और संसार के पूरे इतिहास में गांधी की इतनी अवहेलना कभी नहीं थी जितनी आज है। भारतीय भाषा परिषद द्वारा आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद में यह बात प्रसिद्ध गांधी अध्येता प्रो.सुधीर चंद्र ने की।
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने कहा कि गांधी ने जिस हिंदी की तरफदारी की थी वह सांप्रदायिक सौहार्द पैदा करनेवाली भाषा थी। आज भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी घुस रही है जिसका गांधी जरूर विरोध करते। मीडिया ने आज झूठी खबरों का ऐसा जाल फैला रखा है कि हमें सोचने के लिए ये मजबूर होना पड़ता है कि क्या सत्य है और क्या झूठ है। उन्होंने मीडिया को निष्पक्ष हो कर देश और दुनिया की खबरें देने के लिए कहा क्योंकि वह एक बड़ा जनमत निर्माता है।
वरिष्ठ समाजविज्ञानी अभय कुमार दुबे का कहना था कि गांधी ने स्पष्ट कहा था कि धर्म और राजनीतिक दो भिन्न मामले हैं और उनके सपनों के भारत को सेक्युलर और लोकतांत्रिक होना है। गांधी के चिंतन को ‘हिंद स्वाराज’ पुस्तक तक सीमित करके नहीं देखना चाहिए। बल्कि उनका एक उत्तर-हिंद स्वराज पाठ तैया करना चाहिए ताकि गांधी के विचारों में आए परिवर्तनों को समझा जा सके। गांधी ने यह भी लिखा है कि ‘मेरे ताजे लेखन को सही मान कर पुराने को खारिज कर देना चाहिए।’ विशिष्ट अतिथि गांधीवादी शंकर कुमार सान्याल ने कहा कि गांधी आज पूरे विश्‍व में सबसे अधिक प्रासंगिक हैं। वे भले हिंदू सनातन धर्म के प्रति अति श्रद्धा रखते थे पर सर्वधर्म के पैरोकार थे। विश्‍व फलक पर ऐसा शायद ही कोई व्यक्तित्व हो जिनके नाम से पूरे विश्‍व के 150 देशों की मुख्य सड़कों का नाम गांधी के नाम पर हो। 105 देशों में गांधी की मूर्ति स्थापित है। अध्यक्षीय भाषण देते हुए डॉ.शंभुनाथ ने कहा कि आज गांधी को चश्मे में सीमित करके देखा जा रहा है या उन्हें देवता बना दिया गया है। नई पीढ़ी के लिए जरूरी है कि वह गांधी से अपना संबंध जोड़े क्योंकि गांधी ने खुदगर्जी से भरी ऐसी सभ्यता के प्रति हमें सावधान किया था जिसमें आज हम घिरे हैं। गांधी के युग में आदर्श तक यथार्थ को लाने की बात थी जबकि आज सांप्रदायिकता और भ्रष्टाचार जैसे यथार्थ को ही आदर्श बनाकर समाज में स्थापित किया जा रहा है। गांधी ने भारत के स्वभाव को पहचाना था जो अहिंसा, मैत्री और सत्याग्रह पर आधारित है। यदि भारत अपना स्वभाव छोड़ देगा तो वह विपत्ति में पड़ेगा।
स्वागत भाषण देते हुए परिषद की अध्यक्ष डॉ.कुसुम खेमानी ने दक्षिण अफ्रीका का अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि गांधी विश्‍व में शांति के दूत के रूप में देखे जाते हैं। परिषद के मंत्री  नंदलाल शाह ने संचालन करते हुए कहा कि गांधी आज भी प्रासंगिक हैं। धन्यवाद ज्ञापन परिषद की मंत्री श्रीमती बिमला पोद्दार ने किया।

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