- प्रीति साव
कैसा समय?
कैसा समय यह आ गया हैं,
कि चारों ओर दिख रहा
अंधकार ही अंधकार,
आया यह जब से
कोरोना वायरस जैसी महामारी,
उतार रहा मनुष्यों को मौत के घाट ,
अभी चिन्ता नहीं है
किसी को अपने कामों की,
न ही व्यापार की और न राजनीति की
केवल चिन्ता है, खुद के सुरक्षा की।
कैसा समय यह आ गया
कि लोग कैद हुए घरों में,
और आजाद हुए
उन पिंजड़ों में कैद पंक्षियां
कैसा समय यह आ गया हैं,
दिन हुआ सन्नाटा और
रातों में हो रहा है
चहल-पहल।
कैसा समय यह आ गया है,
कि मौत होने के पहले ही,
घरों से कर दिया जा रहा बेदखल
होने पर यह कोरोना जैसा वायरस।
कैसा समय यह आ गया हैं
कि खेल के मैदानों को भी ,
बनाया जा रहा अस्पताल।
हो गएं चिन्तित
पूरे विश्व के लोग,
एक कोरोना जैसे
विषाणु से,
यह विषाणु मार रहा,
पूरे विश्व के लोगों को,
एक नहीं, दो नहीं,
बल्कि लाखों-लाखों की
हो रही मौत।
ऐसा लग रहा है कि
यह वायरस केवल सबको
मौत देने तक ही नहीं ,
बल्कि पूरे सृष्टि का
एक विनाशकारी रूप
बन आया है इस पृथ्वी पर।
कैसा समय यह आ गया है
कि लोगों की मौत हुए
शवों को दफनाने के लिए ,
बच नहीं रहा,
कोई स्थान।
कैसा समय?
कैसा समय यह आ गया है ।।