घर-घर से बधाई में मिलने वाले पैसों को इकट्ठा करके किन्नरों ने सड़क बनवा दी। वही सड़क जिसे बनाने के लिए नगर निगम ने 4 लाख का बजट बताया था, उसे किन्नरों ने 1 लाख में बनवा दिया।
गोरखपुर में एक एरिया है पादरी बाजार। यहां जंगल मातादीन मोहल्ले में सालों से ट्रांसजेंडर ही रहते हैं। इसलिए इसकी पहचान भी किन्नरों के रिहाईश के तौर पर होती है। किन्नरों की बस्ती की ओर जाने वाली सड़क पिछले 4 साल से खराब पड़ी थी। किन्नर बार-बार कभी अधिकारी तो कभी नेताओं से मदद की गुहार लगा रहे थे, लेकिन आश्वासन के सिवा उन्हें और कुछ नहीं मिल रहा था।
सरकारी सिस्टम की मार से हर आम आदमी त्रस्त है। ऐसे में ट्रांसजेंडर्स की क्या हालत होगी इसे बखूबी समझा जा सकता है। इसी सिस्टम से तंग आकर गोरखपुर के ट्रांसजेंडर्स ने खुद से इकट्ठा किए हुए पैसों से सड़क बनवाकर सरकार और उनके अधिकारियों के मुंह पर तमाचा जड़ दिया है। पिछले 4 साल से खस्ताहाल में पड़ी सड़क को बनवाने के लिए किन्नर नगर निगम के अधिकारियों से मदद की गुहार लगा रहे थे, लेकिन कोई उनकी मांग पर ध्यान ही नहीं दे रहा था। बार-बार सरकारी ऑफिस के चक्कर काटने के बाद भी जब उनकी नहीं सुनी गई तो सबने बधाई में मिले पैसों को इकट्ठा कर 120 मीटर लम्बी सीसी रोड बनवा डाली। इसके बाद अधिकारी मुंह छिपाते हुए घूम रहे हैं।
गोरखपुर में एक एरिया है पादरी बाजार, यहां जंगल मातादीन मोहल्ले में सालों से ट्रांसजेंडर्स ही रहते हैं। इसलिए इसकी पहचान भी किन्नरों के रिहाईश के तौर पर होती है। किन्नरों की बस्ती की ओर जाने वाली सड़क पिछले 4 साल से खराब पड़ी थी। किन्नर बार-बार कभी अधिकारी तो कभी नेताओं से मदद की गुहार लगा रहे थे, लेकिन आश्वासन के सिवा और कुछ नहीं मिल रहा था। किनन्रों का आरोप है कि पिछले चार सालों में नगर निगम प्रशासन को कई दफा एप्लीकेशन दी गई और सड़क बनवाने की मांग की गई। इस सड़क को बनने में 4 लाख रुपए का इस्टीमेट भी नगर निगम ने तय किया, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही और तबादलों के कारण सड़क का निर्माण नहीं हो सका।
आखिर में हार मानकर किन्नरों ने खुद ही कुछ कर दिखाने का निर्णय लिया। सबने बधाई से मिलने वाले पैसे इकट्ठा किए और सड़क बनवा दी। जिस सड़क को बनने के लिए नगर निगम ने 4 लाख का एस्टीमेट बनाया था उसी को किन्नरों ने सिर्फ 1 लाख में बनवा दिया। किन्नर रामेश्वरी के मुताबिक घर-घर बधाइयों से मिलने वाले नेग का एक हिस्सा सड़क निर्माण के लिए इकट्ठा किया जाने लगा। जब एक लाख रुपये इकट्ठा हो गये तो सड़क का काम शुरू कराया और इतने ही रुपयों में काम पूरा भी किया। यह सड़क अपने-आप में भ्रष्टाचाररहितकाम की मिसाल भी है।
नगर निगम के अधिकारियों का मानना है कि अगर यही सड़क ठेके से बनवाई जाती तो कम से कम चार लाख रुपए का खर्च आता। जब नगर निगम के अधिकारियों इस बात का पता को चला तो वे दंग रह गए।
अब नगर आयुक्त प्रेम प्रकाश सिंह ने भी माना कि सचमुच उन्होंने नगर निगम और समाज को आईना दिखाया है। उनका कहना है कि तीन साल से ठेकेदारों का बकाया भुगतान नहीं होने के कारण काफी काम रुका हुआ है, जहां ज्यादा जरूरी रहा है वहीं पर सड़क का निर्माण कराया गया है।
दिलचस्प बात है कि इसी गोरखपुर नगर निगम से परेशान किन्नरों ने साल 2001 के नगर निकाय चुनाव में आशा देवी उर्फ अमरनाथ यादव को चुन कर मेयर बनाया था। आशा देवी देश की पहली किन्नर मेयर भी बनी थीं। उनके समय में किन्नरों को काफी राहत मिली लेकिन उनके निधन के बाद किन्नरों की स्थिति जस की तस हो गई। आशा देवी यहां से रिकार्ड मतों से जीती थीं। जून 2013 में उनका देहान्त हो गया।
(साभार – योर स्टोरी)